जय सिया राम
जनकसुता जग जननि जानकी । अतिसय प्रिय करुना निधान की ।।
ताके जुग पद कमल मनावउँ । जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ ।।
ये चौपाई गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस (1.1.18) है । इसे मानस गायत्री मंत्र कहते है , अर्थात् श्री रामचरितमानस का गायत्री मंत्र । इस चौपाई में जगजननी मां सीता की वंदना करी गई है कि उनकी कृपा से हमें निर्मल मति प्राप्त हो ।
वैदिक ब्रह्म गायत्री का फल भी यही होता है । परंतु बिना उपनयन संस्कार के और बिना यज्ञोपवीत धारण किए वैदिक ब्रह्म गायत्री मंत्र का जाप करना वर्जित होता है ।
इसलिए जिनका उपनयन संस्कार नहीं हुआ है और जो यज्ञोपवीत धारण नहीं करते , वे सब ब्रह्म गायत्री का तो नहीं परंतु मानस गायत्री का जाप अवश्य कर सकते है । जो पुण्य ब्रह्म गायत्री मंत्र के जाप से प्राप्त होता है , वहीं फल मानस गायत्री के जाप से भी प्राप्त होता है ।
मानस गायत्री मंत्र का जाप किसी भी वर्ण और जाति का मनुष्य निसंकोच होकर कर सकता है । मानस गायत्री का जप स्त्री पुरुष आदि सभी लिंग के मनुष्य कर सकते है । मानस गायत्री सभी मनुष्यमात्र के लिए है ।
जय सिया राम
Shri Rajendra Das Ji Maharaj (Malook Peeth Vrindavan) is initiated in a pious Virakt Parampara of Ramanand Sampraday (largest Vaishnav sampradaya). Maharajji is an Ananya devotee of Shri Ram Krishna Narayan.
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