बचपन में दूरदर्शन पर मंगलवार को इस कहानी का नाटकीय रूपांतरण देखा था। आंखों के आगे सारे चरित्र घूम गए। उस समय मैं इस कहानी को समझ नहीं पाई थी। आज समझी हूं। इस कहानी के माध्यम से स्त्री के मनोभावों को बहुत ही सुंदरता से दर्शाया गया है।👍🏻
यह कहानी पचास वर्ष पहले पढ़ चुकी हूँ। उस समय के अनुसार यह विचारधारा ठीक थी। आज की नारी तो नौकरी करना गर्व की बात समझती है। मैं उस समय भी नौकरी करती थी।अब तो पन्द्रह वर्ष पहले रिटायर हो चुकी हूँ
नमस्कार Dr.Abha ji 🙏💐 आपका कमेंट पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा कि आपने ये कहानी पचास वर्ष पूर्व पढ़ी है और आपका हार्दिक धन्यवाद जोकि आपने अपने अमूल्य अनुभव हमसे साँझा किए ❤️🌹😊🙏🙏