महोदय-ये पद भगवान श्री कृष्ण के नामकरण से पहले का है, अतः माता यशोदा उन्हें अपने स्वभाव से लटकन नाम से बुला रहीं हैं, कहती हैं-अपने लटकन(श्री कृष्ण)पर वारी जाऊं भगवान पालने में रहते हैं चलना सीखा नहीं है और अपने हाथ पैर फेंकते हैं, तो माता के छाती को स्पर्श करते हैं माता कहती हैं जमीन पर नहीं मेरी छाती पर पैर रखकर चलना सीखो, दूसरी पंक्ति में माता कहती हैं रे कमलनयन वारी जाऊं तुझ पर दो छोटे छोटे दाँत जिनकी मुख की शोभा बढ़ा रहे हैं, गिरधर लाल जी रो रहे हैं, तो माता उन्हें चुप कराने के लिए जो उनके घर में गऊ(गाय)हैं वो गिना रही हैं ऊँगली पकड़कर कहती हैं एक मेरी एक तेरी एक बाबा नन्द जी की और बलभद्र भईया की एक इसकी जो दासी आपको पलना झूलाती है, जय श्री कृष्ण
@@ankitofficial393 bahot ati ati aabhar bhakt ji apka kyunki shayad apne alas ke karan main shayad search bhi na karta ya koi aur karan hota par apki daya se itna sunder arth janne ko mila so dhanyawad bhakt ji Ant me ....... Shre Radhe shyam apko aur apke pariwar ko 😊
जरा सोचिए जब ये महानुभाव इतने भाव और मन को आनंदित करने वाले इस पद को गा रहे तो जब हरिदास जी और सूरदास नरसिंह जी जैसे भक्त गाते होंगे तो भगवान स्वयं आए बिना नही रह पाते थे इसका अंदाजा इनके भजन से लगा सकते है सभी को जय श्री कृष्ण ,,,🙏🙏🙏🙏🚩🚩
Koi shabd nahi hai ,,guru ji ke liye ,,,,itna surila or aatmiya pad ,,jaisa sakhsat ,,ma Saraswati jivha par viraj Maan ho ,,,🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 charno me shat shat Naman
Kya pad gaya h mnn ho har liya ...thakur ji k ese ananaya bhakt h jo apne bhajan s sbka mann hr le....jai jai shri radhe radhe❤💞💞🙇♂️🙇♂️🙇♂️🙇♂️🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹🌹
Jai ho jai ho...... Maine aapki awaz jariye pyare shyam sundar ko mehsus Kiya hai.....❤❤❤❤ Aj aapke darshan kar ke acha lga.... Jai ho.... Hare Krishna🙏🙏🙏🙏🙏
ये पद भगवान के नामकरण से पहले का है। भगवान का कोई नाम नहीं है अतः स्वभाव से माता उन्हें 'लटकन' बुला रही हैं। यशोदा कहती हैं - हे मेरे लटकन तुझपे वारी जाऊं! भगवान पालने में रहते हैं ; हाथ-पैर फेंकते हैं ; तो माता के छाती पर पैरों से स्पर्श होता है।चलना सीखे नहीं हैं तो - यशोदा कहतीं हैं तुम जमीन पर चलना मत सीखो मेरे सीने पर पैर रखकर चलना सीखो। पहली पंक्ति में लटकन कहा दूसरी में कमलनयन कहा है। माता कहतीं हैं - रे कमलनयन! तेरे मुख पे वारी जाऊं जिसमें दूध के दो छोटे-छोटे दाँत सुशोभित हो रहे हैं। गिरिधर लालजी रो रहे हैं तो उन्हें चुप कराने के लिये माता को गिनती सूझी। यशोदा उन्हें हाथ पकड़कर उनकी ऊंगली गिना रही हैं । उनके घर में जो गउऐं हैं उसे निर्दिष्ट कर माता उंगलियों को पकड़कर कहती हैं... यह मेरी, यह तेरी , यह बाबा नंद जूं की , यह बलभद्र भैया की, और पाँचवी उसकी जो तेरा पलना झुला रही है....।