♥️♥️🙏🙏 सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन तो कभी भी किसी से पराजित नहीं हुए। ♥️💙विराट युद्ध में केवल अकेले ही पूरी हस्तिनापुर को जिसमें भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, अश्वत्थामा,कर्ण जैसे योद्धा थे जिनमें से प्रत्येक अकेले ही एक सेना के समान थे को परास्त किये दो दो बार सभी को। ♥️💙द्रुपद जिसे कर्ण पूरी हस्तिनापुर सेना के साथ मिलके भी नहीं हरा पाए उसे केवल पांच पांडव ही विशेषकर अर्जुन ने बंदी बनाकर अपने गुरु को सौंप दिए।यह है सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन की वीरता। ♥️💙जयद्रथ वध के समय पूरी कौरव सेना मिलकर भी एक अर्जुन को नंही रोक सके जयद्रथ वध से और अर्जुन ने अपनी प्रतिज्ञा भी पूरी कर ली,ऐसा बाण चलाये जिससे जयद्रथ का सिर उसके पिता की ही गोद में जा गिरा और अर्जुन के प्राण भी बच गए। ♥️💙 अर्जुन की वीरता का ऐसा भय था सब में कि जयद्रथ रात में ही हस्तिनापुर छोड़ अपने राज्य भागने लगा, द्रोणाचार्य, कर्ण के रहते हुए भी,यह है सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन का पराक्रम। ♥️💙B.R Chopra महाभारत देखिए उसमें इस बात का वर्णन कहीं नहीं है कि हनुमान जी अर्जुन के रथ पर विराजमान थे, यह बात केवल नये वाले महाभारत में दिखाया गया है कलयुग में अर्जुन को कमजोर साबित करने के लिए। ♥️💙अर्जुन निहत्थे कर्ण पर बाण नहीं चला रहे थे परन्तु श्री कृष्ण जी के ये कहने पर की आज धर्म की बात करने वाले यह अंगराज कर्ण ने कैसे सबके साथ (8-8 महारथियों के साथ) मिलके एक अकेले अभिमन्यु वध किया,तब वो भी पैदल ही था और इसी की भांति निहत्था भी। तब जाके नर अर्जुन ने कर्ण पर बाण चलाये। ♥️💙 भीष्म पितामह इच्छा मृत्यु के वरदान का कवच लेके युद्ध में उतरे तो क्या यह उचित था,उनका वध तो कोई देवता भी नहीं कर पाते,फिर भी अर्जुन उनके वध का कारण बने। ♥️💙द्रोणाचार्य जी को भी यह वरदान प्राप्त था कि स्वयं उनके अतिरिक्त उन्हें कोई और नहीं हरा सकता था, फिर भी अर्जुन ने उन्हें कई बार परास्त किये। भला वो अपने गुरु का वध तो नहीं न करते, उन्होंने तो धृष्टद्युम्न को भी रोका अपने गुरु का वध करने से।अपने गुरु का वध उनके लिए तो महापाप था, इसलिए तो उन्होंने नहीं किया। ♥️💙 पूरे महाभारत में केवल एक अर्जुन के पास ही सभी दिव्यास्त्रों सहित अमोघ अस्त्र पशुपातास्त्र था जिसके प्रयोग से पूरी सृष्टि का विनाश संभव था, फिर भी उन्होंने उसका प्रयोग मानवों जैसे कर्ण,भीष्म, द्रोणाचार्य पर नहीं किए। उसे बचा कर रखें और महाभारत युद्ध के बाद उसका प्रयोग अमोघ अस्त्र सुदर्शन चक्र के विरुद्ध किए अपनी बचाव में श्री कृष्ण जी के विरुद्ध। फिर श्री कृष्ण जी से भी वह परास्त न हो सके। ♥️💙 अतः महादेव के अतिरिक्त और किसी के लिए अर्जुन को परास्त करना सरल नहीं था।
कुरू सेना की अर्जुन के द्वारा क्रूर हार के बाद दुर्योधन की प्रतिक्रिया🔥 "कौरवों में श्रेष्ठ धृतराष्ट्र के पुत्र को शीघ्र ही होश आ गया और उसने इन्द्र के समान वीर पार्थ को देखा। उसने देखा कि पार्थ युद्ध के मैदान से दूर अकेले खड़े हैं। उसने तुरन्त पूछा, "वह तुम्हारे हाथ से कैसे बच गया? उस पर अत्याचार करो, ताकि वह बच न सके।" शांतनु के पुत्र ने हँसते हुए उत्तर दिया, "तुम्हारी बुद्धि कहाँ चली गई? तुम्हारा पराक्रम कहाँ चला गया? तुमने अपना रंग-बिरंगा धनुष और बाण त्याग दिया था। उस समय तुम पूर्ण शांति में लीन थे। बिभत्सु क्रूर कर्म करने में असमर्थ है। उसका मन कभी पाप में लीन नहीं होता। वह तीनों लोकों के लिए भी अपने धर्म को नहीं छोड़ेगा। 205 यही कारण है कि हम सभी इस युद्ध में मारे नहीं गए। हे कौरवों में श्रेष्ठ ! शीघ्र ही कुरु राज्य में लौट जाओ। पार्थ को अपने जीते हुए पशुओं के साथ लौट जाने दो।" पितामह के इन वचनों को सुनकर, जो उनके कल्याण के लिए थे, दुर्योधन ने युद्ध करने की सारी इच्छा त्याग दी। असहिष्णु राजा ने गहरी आह भरी, लेकिन चुप रहा। अन्य सभी ने भीष्म के वचनों में बुद्धिमत्ता देखी और धनंजय के भीतर बढ़ती आग को पहचाना। इसलिए उन्होंने लौटने का मन बना लिया और सावधानी से दुर्योधन की रक्षा की।" विराट पर्व(गो ग्रहण पर्व)- अध्याय ६५७ (६१)
कर्ण और अर्जुन का दूसरा युद्ध🏹 अर्जुन ने कहा, "तुम मुझसे युद्ध करते समय पहले ही युद्ध भूमि से भाग गए थे। हे राधेय! यही कारण है कि तुम अभी तक जीवित हो, यद्यपि तुम्हारा छोटा भाई मारा गया है। तुम्हारे अतिरिक्त ऐसा कौन पुरुष होगा जो अपने भाई को मरा हुआ देखकर युद्ध के अग्रभाग से भाग जाए? फिर भी तुम सत्यवादियों के बीच में ऐसी बातें करते हो।" वैशम्पायन ने कहा, "कर्ण से ऐसा कहकर अपराजित विभत्सु ने उस पर आक्रमण किया और कवच को भेदने वाले बाण छोड़े। कर्ण ने अग्नि की लपटों के समान बाणों से उसका प्रतिकार किया और वर्षा ऋतु के बादलों के समान बाणों की बड़ी वर्षा की। बाणों के उस भयानक जाल ने सब ओर घेरा बना लिया। वे बाण उसके 163 घोड़ों, भुजाओं और हाथों के रक्षकों को अलग-अलग छेदकर मार गिराए। इसे सहन न कर पाने के कारण उसने एक सीधे नुकीले बाण से कर्ण के तरकश का पट्टा काट डाला। अपने तरकश से अन्य बाण पकड़कर कर्ण ने पांडव के हाथ में ऐसा छेद किया कि उसकी पकड़ कमजोर हो गई। तब महाबाहु अर्जुन ने कर्ण का धनुष काट डाला। उसने उस पर भाला फेंका, परन्तु पार्थ ने बाणों से उसे काट डाला। तब राधेय की विशाल पैदल सेना ने आक्रमण किया। परन्तु गांडीव से छोड़े गए बाणों से वे यम के घर पहुंच गए। तब विभत्सु ने अपना धनुष कानों तक चढ़ाया और भारी भार उठाने वाले तीखे बाणों से उसके घोड़ों को मार डाला। वे भूमि पर गिरकर मर गए। महाबाहु और पराक्रमी कौंतेय ने दूसरा ज्वलन्त बाण उठाकर कर्ण की छाती में मारा। बाण उसके कवच को छेदता हुआ उसके शरीर में घुस गया। वह अंधकार में डूब गया और कुछ समय के लिए बेहोश हो गया। अत्यन्त पीड़ा से पीड़ित होकर वह युद्धभूमि से उत्तर दिशा की ओर चला गया। अर्जुन और महारथी उत्तर ने उसकी निन्दा करनी आरम्भ की।' गो-ग्रहण पर्व- अध्याय ६५१(५५)
❤💙🙏🙏वभ्रुवाहन अर्जुन का पुत्र था, यह बात अर्जुन को ज्ञात नहीं था।फिर भी रक्त,रक्त को पहचान ही लेता है। पहले ही मिलन में वभ्रुवाहन को देखकर न जाने क्यों अर्जुन का प्यार उसपर उमड़ने लगा। अर्जुन का उसे देखकर उसपर पर पुत्र जैसा प्यार उमड़ने लगा। अतः अर्जुन उसका वध नहीं करना चाहता था। ❤❤"तु अर्जुन को गदा युद्ध में परास्त नहीं कर सकता वभ्रुवाहन,तुझे किसी और सस्त्र का प्रयोग करना होगा"❤❤अर्जुन से गदा युद्ध में न जीत पाने पर ये बात वभ्रुवाहन ने स्वयं से कहा। फिर उसने भाला युद्ध किया,उसमें भी वह अर्जुन से न जीत सका,फिर उसने तलवार युद्ध किया,उसमें भी वह अर्जुन से न जीत सका, फिर उसने धनुष-बाण युद्ध किया, उसमें भी वह अर्जुन को परास्त नहीं कर सका।❤ अंत में उसने "मां गंगा का दिया हुआ "अर्जुन वध" के लिए" वो बाण का प्रयोग किया किंतु उसने सोचा- मैं अपनी माता को क्या मुंह दिखाऊंगा क्योंकि चित्रांगदा ने अर्जुन को केवल परास्त करने को कहा था उसका वध करने को नहीं। अर्जुन की मृत्यु के बाद चित्रांगदा ने रोते हुए वभ्रुवाहन से कहा- मैंने उनको केवल परास्त करने को कहा था पुत्र,उनका वध करने को नहीं; ❤💙 🙏🙏तो फिर वभ्रुवाहन ने कहा- माते -"अर्जुन आपके वर्णन और मेरी कल्पना से कहीं अधिक वीर था" ❤"यदि मैं उसका वध नहीं करता (मां गंगा का दिया हुआ अर्जुन से उनकी प्रतिशोध के कारण वो बाण द्वारा) तो वो मेरा वध कर देता। "❤ 🙏🙏 ❤💙अर्जुन को वभ्रुवाहन ने नहीं अपितु मां गंगा ने मारा क्षल से उसके पुत्र के रूप में क्योंकि अर्जुन अपने पुत्र का वध तो नहीं न कर पाता, ❤💙अन्यथा ॐपशुपतास्त्र भी था केवल उनके पास पूरे महाभारत युग में जिसके फलस्वरूप श्री कृष्ण जी भी नहीं हरा सके अर्जुन को एक युद्ध में (अर्जुन का एक राजा का प्राण बचाने के युद्ध में) ❤💙🙏🙏अतः मेरे अनुसार अर्जुन को केवल भगवान महादेव ही परास्त कर सकते थे। ❤❤ये बात स्वयं श्रीकृष्ण जी ने भी कहा सुभद्रा हरण के समय-♥️💙"महादेव के अतिरिक्त और कौन है जो उसे(अर्जुन) युद्ध में हराने को सोच भी सके"; अद्भुत वाक्य ❤❤🙏🙏 जय श्री कृष्ण🙏🙏
❤💙🙏🙏वभ्रुवाहन अर्जुन का पुत्र था, यह बात अर्जुन को ज्ञात नहीं था।फिर भी रक्त,रक्त को पहचान ही लेता है। पहले ही मिलन में वभ्रुवाहन को देखकर न जाने क्यों अर्जुन का प्यार उसपर उमड़ने लगा। अर्जुन का उसे देखकर उसपर पर पुत्र जैसा प्यार उमड़ने लगा। अतः अर्जुन उसका वध नहीं करना चाहता था। ❤❤"तु अर्जुन को गदा युद्ध में परास्त नहीं कर सकता वभ्रुवाहन,तुझे किसी और सस्त्र का प्रयोग करना होगा"❤❤अर्जुन से गदा युद्ध में न जीत पाने पर ये बात वभ्रुवाहन ने स्वयं से कहा। फिर उसने भाला युद्ध किया,उसमें भी वह अर्जुन से न जीत सका,फिर उसने तलवार युद्ध किया,उसमें भी वह अर्जुन से न जीत सका, फिर उसने धनुष-बाण युद्ध किया, उसमें भी वह अर्जुन को परास्त नहीं कर सका।❤ अंत में उसने "मां गंगा का दिया हुआ "अर्जुन वध" के लिए" वो बाण का प्रयोग किया किंतु उसने सोचा- मैं अपनी माता को क्या मुंह दिखाऊंगा क्योंकि चित्रांगदा ने अर्जुन को केवल परास्त करने को कहा था उसका वध करने को नहीं। अर्जुन की मृत्यु के बाद चित्रांगदा ने रोते हुए वभ्रुवाहन से कहा- मैंने उनको केवल परास्त करने को कहा था पुत्र,उनका वध करने को नहीं; ❤💙 🙏🙏तो फिर वभ्रुवाहन ने कहा- माते -"अर्जुन आपके वर्णन और मेरी कल्पना से कहीं अधिक वीर था" ❤"यदि मैं उसका वध नहीं करता (मां गंगा का दिया हुआ अर्जुन से उनकी प्रतिशोध के कारण वो बाण द्वारा) तो वो मेरा वध कर देता। "❤ 🙏🙏 ❤💙अर्जुन को वभ्रुवाहन ने नहीं अपितु मां गंगा ने मारा क्षल से उसके पुत्र के रूप में क्योंकि अर्जुन अपने पुत्र का वध तो नहीं न कर पाता, ❤💙अन्यथा ॐपशुपतास्त्र भी था केवल उनके पास पूरे महाभारत युग में जिसके फलस्वरूप श्री कृष्ण जी भी नहीं हरा सके अर्जुन को एक युद्ध में (अर्जुन का एक राजा का प्राण बचाने के युद्ध में) ❤💙🙏🙏अतः मेरे अनुसार अर्जुन को केवल भगवान महादेव ही परास्त कर सकते थे। ❤❤ये बात स्वयं श्रीकृष्ण जी ने भी कहा सुभद्रा हरण के समय-♥️💙"महादेव के अतिरिक्त और कौन है जो उसे(अर्जुन) युद्ध में हराने को सोच भी सके"; अद्भुत वाक्य ❤❤🙏🙏 जय श्री कृष्ण🙏🙏
❤💙🙏🙏वभ्रुवाहन अर्जुन का पुत्र था, यह बात अर्जुन को ज्ञात नहीं था।फिर भी रक्त,रक्त को पहचान ही लेता है। पहले ही मिलन में वभ्रुवाहन को देखकर न जाने क्यों अर्जुन का प्यार उसपर उमड़ने लगा। अर्जुन का उसे देखकर उसपर पर पुत्र जैसा प्यार उमड़ने लगा। अतः अर्जुन उसका वध नहीं करना चाहता था। ❤❤"तु अर्जुन को गदा युद्ध में परास्त नहीं कर सकता वभ्रुवाहन,तुझे किसी और सस्त्र का प्रयोग करना होगा"❤❤अर्जुन से गदा युद्ध में न जीत पाने पर ये बात वभ्रुवाहन ने स्वयं से कहा। फिर उसने भाला युद्ध किया,उसमें भी वह अर्जुन से न जीत सका,फिर उसने तलवार युद्ध किया,उसमें भी वह अर्जुन से न जीत सका, फिर उसने धनुष-बाण युद्ध किया, उसमें भी वह अर्जुन को परास्त नहीं कर सका।❤ अंत में उसने "मां गंगा का दिया हुआ "अर्जुन वध" के लिए" वो बाण का प्रयोग किया किंतु उसने सोचा- मैं अपनी माता को क्या मुंह दिखाऊंगा क्योंकि चित्रांगदा ने अर्जुन को केवल परास्त करने को कहा था उसका वध करने को नहीं। अर्जुन की मृत्यु के बाद चित्रांगदा ने रोते हुए वभ्रुवाहन से कहा- मैंने उनको केवल परास्त करने को कहा था पुत्र,उनका वध करने को नहीं; ❤💙 🙏🙏तो फिर वभ्रुवाहन ने कहा- माते -"अर्जुन आपके वर्णन और मेरी कल्पना से कहीं अधिक वीर था" ❤"यदि मैं उसका वध नहीं करता (मां गंगा का दिया हुआ अर्जुन से उनकी प्रतिशोध के कारण वो बाण द्वारा) तो वो मेरा वध कर देता। "❤ 🙏🙏 ❤💙अर्जुन को वभ्रुवाहन ने नहीं अपितु मां गंगा ने मारा क्षल से उसके पुत्र के रूप में क्योंकि अर्जुन अपने पुत्र का वध तो नहीं न कर पाता, ❤💙अन्यथा ॐपशुपतास्त्र भी था केवल उनके पास पूरे महाभारत युग में जिसके फलस्वरूप श्री कृष्ण जी भी नहीं हरा सके अर्जुन को एक युद्ध में (अर्जुन का एक राजा का प्राण बचाने के युद्ध में) ❤💙🙏🙏अतः मेरे अनुसार अर्जुन को केवल भगवान महादेव ही परास्त कर सकते थे। ❤❤ये बात स्वयं श्रीकृष्ण जी ने भी कहा सुभद्रा हरण के समय-♥️💙"महादेव के अतिरिक्त और कौन है जो उसे(अर्जुन) युद्ध में हराने को सोच भी सके"; अद्भुत वाक्य ❤❤🙏🙏 जय श्री कृष्ण🙏🙏
♥️♥️🙏🙏 सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन तो कभी भी किसी से पराजित नहीं हुए। ♥️💙विराट युद्ध में केवल अकेले ही पूरी हस्तिनापुर को जिसमें भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, अश्वत्थामा,कर्ण जैसे योद्धा थे जिनमें से प्रत्येक अकेले ही एक सेना के समान थे को परास्त किये दो दो बार सभी को। ♥️💙द्रुपद जिसे कर्ण पूरी हस्तिनापुर सेना के साथ मिलके भी नहीं हरा पाए उसे केवल पांच पांडव ही विशेषकर अर्जुन ने बंदी बनाकर अपने गुरु को सौंप दिए।यह है सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन की वीरता। ♥️💙जयद्रथ वध के समय पूरी कौरव सेना मिलकर भी एक अर्जुन को नंही रोक सके जयद्रथ वध से और अर्जुन ने अपनी प्रतिज्ञा भी पूरी कर ली,ऐसा बाण चलाये जिससे जयद्रथ का सिर उसके पिता की ही गोद में जा गिरा और अर्जुन के प्राण भी बच गए। ♥️💙 अर्जुन की वीरता का ऐसा भय था सब में कि जयद्रथ रात में ही हस्तिनापुर छोड़ अपने राज्य भागने लगा, द्रोणाचार्य, कर्ण के रहते हुए भी,यह है सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन का पराक्रम। ♥️💙B.R Chopra महाभारत देखिए उसमें इस बात का वर्णन कहीं नहीं है कि हनुमान जी अर्जुन के रथ पर विराजमान थे, यह बात केवल नये वाले महाभारत में दिखाया गया है कलयुग में अर्जुन को कमजोर साबित करने के लिए। ♥️💙अर्जुन निहत्थे कर्ण पर बाण नहीं चला रहे थे परन्तु श्री कृष्ण जी के ये कहने पर की आज धर्म की बात करने वाले यह अंगराज कर्ण ने कैसे सबके साथ (8-8 महारथियों के साथ) मिलके एक अकेले अभिमन्यु वध किया,तब वो भी पैदल ही था और इसी की भांति निहत्था भी। तब जाके नर अर्जुन ने कर्ण पर बाण चलाये। ♥️💙 भीष्म पितामह इच्छा मृत्यु के वरदान का कवच लेके युद्ध में उतरे तो क्या यह उचित था,उनका वध तो कोई देवता भी नहीं कर पाते,फिर भी अर्जुन उनके वध का कारण बने। ♥️💙द्रोणाचार्य जी को भी यह वरदान प्राप्त था कि स्वयं उनके अतिरिक्त उन्हें कोई और नहीं हरा सकता था, फिर भी अर्जुन ने उन्हें कई बार परास्त किये। भला वो अपने गुरु का वध तो नहीं न करते, उन्होंने तो धृष्टद्युम्न को भी रोका अपने गुरु का वध करने से।अपने गुरु का वध उनके लिए तो महापाप था, इसलिए तो उन्होंने नहीं किया। ♥️💙 पूरे महाभारत में केवल एक अर्जुन के पास ही सभी दिव्यास्त्रों सहित अमोघ अस्त्र पशुपातास्त्र था जिसके प्रयोग से पूरी सृष्टि का विनाश संभव था, फिर भी उन्होंने उसका प्रयोग मानवों जैसे कर्ण,भीष्म, द्रोणाचार्य पर नहीं किए। उसे बचा कर रखें और महाभारत युद्ध के बाद उसका प्रयोग अमोघ अस्त्र सुदर्शन चक्र के विरुद्ध किए अपनी बचाव में श्री कृष्ण जी के विरुद्ध। फिर श्री कृष्ण जी से भी वह परास्त न हो सके। ♥️💙 अतः महादेव के अतिरिक्त और किसी के लिए अर्जुन को परास्त करना सरल नहीं था।
@@duo3552 सही कहा भाई जबकि उसका एक भाई विराट युद्ध में मारा गया था तो बाकी सब कुरुक्षेत्र युद्ध में😂जातिवाद को बढ़ाकर समाज में और विष जो घोलना है इसलिए उसे किसी से भी जोड़ दिया।
But bhism to kisi ko hara sakte the...phir Arjun se har Gaye...aur agar aesa tha to phir Krishna ki jarurat nahi thi....akele Arjun hi yudh lad leta...Arjun ko kabhi takatvar dikhate to kabhi Krishna ke rahem pe
@@kiran1rathodpitamah, karna aur drona bhi Arjun ke baano ka samna nahi kar sakte the. Unko maarne ke liye Shri Krishna ke updesh chaiye the. Hara to Arjun sabko Chuka hai 😂😂. Mahadev ke atirikt koi bhi use dhanurvidya me nahi Hara sakta tha.