साल 1944 में टिहरी रियासत में एक ऐतिहासिक भूख हड़ताल हुई. एक नौजवान ने हुक्मरानों के अत्याचारों के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की और 84 दिनों की अभूतपूर्व भूख हड़ताल के बाद अपने प्राणों की आहुति दे दी लेकिन सत्ताधीशों के आगे घुटने नहीं टेके. उस वक्त का शासन इतना क्रूर था कि शहादत के बाद इस क्रांतिकारी का शव तक उसके परिजनों को नहीं सौंपा गया. बल्कि जेल प्रशासन ने इसे एक कम्बल में लपेट कर भागीरथी और भिलंगना के संगम के तेज प्रवाह में फेंक दिया. लेकिन श्रीदेव सुमन नाम के इस वीर सेनानी की शहादत से पूरी टिहरी रियासत में विद्रोह की ऐसी आंधी उठी कि वहां एक सशस्त्र क्रांति हुई और राजसत्ता को जड़ से उखाड़ फेंका गया.
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15 сен 2024