हमेशा की तरह आज भी पुरानी यादों को ताजा कर दिया है आप लोगों ने इसी प्रकार से जब भी हम अपने गांव जाते हैं जाड़े के दिनों में हम भी जंगल से छिलका लाने का काम करते है इन सब का आनंद ही कुछ अलग आता है
बहुत ही अच्छा ब्लॉग बनाया मोहन दा🙏🙏👌👌 मोहन दा ब्लॉग मै चेतना जी की एंट्री हो और वह ब्लॉग अच्छा ना हो ये होहि नही सकता मोहन दा और चेतना जी आप लोगों ने हम को अपने उत्तराखंड के पुराने दिनों की याद ताजा करा दी तो बोले उस के लिए आप लोगों का धन्यवाद 🙏🙏
बहुत बड़ियां लगा आपका ये ब्लॉग अमित भाई। पहाड़ की याद आ गई वो बचपन भी याद आ गया जब मीले अपन दगड़िया दागेड़ी जंगऊ जांछी और बारी बारिल वाबटीक घा, लाकड़ ठीट, baget, छिलूक, झूंतुर व पीरूख घर ल्यूंछी। आहारे वू ले kadu भाल दिन छी। मोहन्दा चेतना आप पहाड़ के ऐसे ही सुन्दर सुंदर वीडियो दिखाया करो। धन्यवाद।
आप लोगों के दैनिक क्रिया कलापों को देखकर मन हर्षित होता है। पहाड़ों का जीवन संघर्षपूर्ण व श्रमशील होता है जिसका उदाहरण आप लोग हैं। परिश्रम ही सफलता की कुंजी है। पूरी टीम बधाई की पात्र है। चेतना के कतार से लगे कद्दू व पपीते अच्छे लगे। हास्य विनोद युक्त सुंदर प्रस्तुति।