श्रीक्षेत्र कारंजा में परमहंस परिव्राजकाचार्य श्रीमद् वासुदेवानंदसरस्वती (टेंबे) स्वामी महाराज हनुमानजी के मंदिर में रुके थे। उस मंदिर के पुजारी भक्तिभाव से पूजा कर के श्री हनुमानजी को चढ़ाया हुआ भोग झट से खा लेते थे और पूजा समाप्त कर लेते थे। ऐसे करने से श्री हनुमानजी संतुष्ट हुआ करते थे। इस प्रकार भोग चढाने की प्रथा अनेक वर्षों से चल रही थी। भक्त और भगवान के बिच के प्यार का यह अनोखा व्यवहार था। श्री स्वामी महाराज वहां थे, इसलिए उनके सामने ऐसा झट से भोग खा लेना पुजारीजी को ठीक नहीं लगा। इसलिए तीव्र इच्छा होने पर भी पुजारीजी ने उनके सामने भोग भक्षण नहीं किया। उस दिन श्री स्वामी महाराज ध्यान लगाकर बैठे थे। उन्हें हमेशा की तरह श्री दत्तप्रभू के दर्शन नहीं हुए, बल्कि उनकी जगह श्री हनुमानजी के दर्शन हुए। श्री हनुमानजी की ओर देखकर उन्हें ऐसे लगा की उनको भूक लगी थी और वे कुछ खाना चाहते थे क्योंकि हनुमानजी मूह खोलकर खड़े थे। इस दर्शन का राज़ श्री स्वामी महाराज को पता नहीं चला। उन्होंने पुजारीजी को इस बारे में पूछा। तब पुजारीजी ने रोज़ भोग चढाने के बाद फ़ौरन भोग का खाना खाने की अपनी आदत के बारे में श्री स्वामी महाराज को बताया। श्री स्वामी महाराज ने उनसे कहा, “भगवान अपने भक्तों से बहुत प्यार करते है। सच्चे भक्त का विपरीत उपचार भी भगवान को अच्छा लगता है और वे उसे स्वीकार करते है। आप किसी संकोच के कारण अपने नियमों में और भावना में बदलाव न करे।”
15 окт 2024