श्रीमन्नित्यनिकुंजविहारिणे नम:
श्रीस्वामी हरिदासो विजयतेतराम्
रसिकवर स्वामी श्री भगवतरसिक देव जू महाराज कौ पद -
कोऊ सुकिया कोऊ परकिया कलप किये मत बादि ।
जोरी भगवत रसिक की नित्य अनंत अनादि ॥
नित्य अनंत अनादि लोक तें रीति बिलच्छन ।
श्रुति स्मृति बिलगाय देखि अनुभव के अच्छन ॥
सहज प्रेम माधुर्य रहत अनुरागे दोऊ ।
ललिता सखी प्रसाद बिना तहँ जात न कोऊ ॥
के आधार पर श्री बाबाजी महाराज "श्रृंगार रस के भेद एवं स्वकीया और परकीया रस से निकुंज माधुर्य रस का आस्वादन भिन्न क्यों है ?" वर्णन करने की कृपा कर रहे हैं।
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5 окт 2024