ममता कालिया का लघु उपन्यास ‘सपनों की होम डिलीवरी’
उपन्यास के पात्र -
रूचि शर्मा - महशूर पाक कला विशेषज्ञ (आयु 40 वर्ष)
सर्वेश नारंग - पत्रकार (रूचि का पति) (आयु 50 वर्ष)
प्रभाकर - रूचि का पहला पति
गगन - रूचि का बेटा
मंजीत - सर्वेश की पहली पत्नी
बीजी : सर्वेश की माँ
कथानक : उपन्यास की नायिका रूचि एक पाककला विशेषज्ञ है। उसका विवाह बिना उसकी सहमति के उसके दादा-दादी ने जल्दी में तय कर दिया था, जब वह एम. ए. कर रही थी। उसका पति प्रभाकर शराबी, क्रूर और दुराचारी था। इसलिए रूचि पति का घर छोड़ देती है। तलाक के बाद बड़ी बाधाओं में अपनी शिक्षा पूरी करती है। उसे टी.वी चैनल पर रसोई कला का शो मिलता है। इस शो से उसे नाम, पैसा और प्रतिष्ठा मिलती है। समस्त बंधनों से आज़ाद होती है तो उसके माता-पिता एक के पीछे एक गुज़र जाते हैं तब अकेलेपन से बाहर निकलने की कोशिश करती है।
रुचि को एक साथी की तलाश है जो सर्वेश के रूप में उसे मिलता है। सर्वेश 50 वर्ष का एक खोजी पत्रकार है। उसका भी अपने क्षेत्र में नाम है। तीन साल पहले वह अपनी पहली पत्नी से अलग हो चुका है। अपने बेटे अंश को भी खो चुका है। अपने काम में तल्लीन, पर जीवन में मौजूद कमी का अहसास उसे भी है। दोनों उम्र के इस दौर में थे कि दोनों में से किसी ने नहीं सोचा था कि वे फिर से किसी से प्यार करने लगेंगे। इस सबके बावजूद रूचि और सर्वेश बड़े रोमॅंटिक ढंग से नज़दीक आते हैं। 50 वर्ष का सर्वेश 40 वर्ष की रूचि को कार्ड भेजकर पूछता है, “क्या तुम मेरी वेलेंटाइन बनोगी?” और कुछ समय पश्चात् रूचि इसे स्वीकार भी कर लेती है|
सर्वेश रुचि के साथ रहने का प्रस्ताव रखता है। लेकिन रुचि सहजीवन (Live-in relationship) को गलत रिवाज़ मानती है। इसलिए वह सर्वेश से कहती है - ‘मैं सहजीवन को गलत रिवाज़ मानती हूं। हमारे ऊपर समाज की ज़िम्मेदारी है।‘ बाद में दोनों औपचारिक विवाह संबंध में बंध जाते है। पति-पत्नी होने के बावजूद अकारण एक दूसरे पर कोई बंधन या रोक टोक नहीं, अधिकार जताने का प्रयास नहीं। सर्वेश तो रूचि से विवाह कर इतना खुश है कि यह विवाह उसके लिए मानो 'सपनों की होम डिलीवरी" है। दोनों ही खुश थे।
रुचि ने सर्वेश को यह नहीं बताया था कि पहली शादी से उसका एक बेटा भी है, जो अपने पिता के पास रहता है। जब पिता के बर्ताव से परेशान बेटा गगन रूचि के पास आता है, तब रूचि की सहजसुलभ ममता जागृत होती है, और वह उसे अपने साथ रहने के लिए कहती है| जब सर्वेश को अचानक पता चलता है तो वह रुचि से झगड़ता है, गुस्से में सार्वजनिक स्थल पर रूचि की गर्दन पकड़ता है | सर्वेश और रुचि की ज़िंदगी में गगन का आना दरारें ज़रूर उत्पन्न करता है, मगर सर्वेश का सही निर्णय उपन्यास को नया मोड देता है। झगड़े के बाद सर्वेश और रूचि अलग रहने लगते हैं | इसी समय सर्वेश गगन को चरस के अड्डे से उठा कर अपने घर लाता है। उसे गगन में अपना बेटा अंश दिखाई देता है। सर्वेश की माँ बीजी के मन में भी गगन के प्रति ममत्व जागृत होता है| यही बिन्दु रुचि और सर्वेश को फिर से करीब लाता है।
पात्र तथा चरित्र चित्रण : रूचि बददिमाग, बदचलन और लंपट पति से असफल वैवाहिक जीवन का दंश झेलने के पश्चात जीने की नई राह पर कदम बढ़ाती है। रूचि और सर्वेश दोनों एक ही धरातल पर खड़े हैं। ठोकर खा चुके हैं। पूर्व में उनके विवाह टूट चुके हैं। उपन्यास के इन दो पात्रों के जीवन में समस्याएँ हैं। उनके अपने मानसिक, सामाजिक और आर्थिक संघर्ष हैं। इसके बावजूद उपन्यास का मूल स्वर सकारात्मक है। सर्वेश का एक संवाद है - 'मुझे अतीत से, अतीतजीवियों से चिढ़ है | मैं आज में जीनेवाला इंसान हूँ|'
स्त्री और पुरुष मनोविज्ञान पर लेखिका की ज़बरदस्त पकड़ है और यही वजह है कि हर पात्र स्वाभाविक लगता है। उपन्यास में रुचि के पूर्व पति प्रभाकर की पुरुष वर्चस्ववादी मानसिकता दिखाई देती है|
समस्याओं का चित्रण:
परिवार विघटन का बच्चों पर प्रभाव : उपन्यास में परिवार विघटन से उत्पन्न होनेवाली समस्या का चित्रण है। टूटते परिवारों का असर बच्चों पर ज्यादा पड़ता है। इसके अलावा उपन्यास आधुनिक शहरी जीवन में मौजूद एकाकीपन, समाज का दबाव, काम का दबाव, असुरक्षा इत्यादि सभी पहलुओं को छूता है।
स्त्री मुक्ति आन्दोलन : आज आर्थिक दृष्टि से महिलाओं में आत्मनिर्भरता की भावना का संचार हो गया है। उसे एहसास हो रहा है कि उसके जीवन का अधिकतर समय रसोई में कटता है | रूचि का एक संवाद है, जो वह अपनी सहेलियों से कहती है - "बेवकूफ लड़कियों, क्या तुम्हे नहीं मालूम, हिंदुस्तानी औरत की गुलामी की नींव रसोईघर में ही पड़ती है|"
लेखिका यह भी बताना चाहती है कि नारी की स्वतंत्रता समाज के लिए उपयोगी है | नारी घर की सीमा के बंधन से बाहर निकली जरूर है, लेकिन उसका हेतु घर और परिवार ही है।
मीडिया का प्रभाव : आजकल मीडिया कैसे जनजीवन में हावी है, यह भी उपन्यास दिखलाता है। आप हमेशा कैमरे की नज़र में हैं और आपके व्यक्तिगत पलों को कभी भी कोई भी संसार के सामने ला सकता है।
ममता कालिया बताती हैं कि, 21वीं सदी में रिश्ते भले ही टूट रहे हैं, लेकिन रिश्तों को बचाने की इच्छा अभी ख़त्म नहीं हुई है। रिश्तों को न बचा पाने के पर नए रिश्ते बनाने और उन्हें सँवारने की सहज मानवीय भावना भी अभी बनी हुई है। इस बात को अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि एक अक्खड़, अहंकारी लगने वाला पुरुष भले ही न कहे, लेकिन स्त्री के बग़ैर अपने जीवन को अधूरा तो महसूस करता ही है, और एक कामयाब, खुद के पैरों पर खड़ी स्त्री भी पुरुष का साथ चाहती है| रूचि और सर्वेश दोनों विवाहित होकर भी बंधनमुक्त हैं, इसीलिए रुचि, सर्वेश को अपना 15 अगस्त कहती है और सर्वेश, रुचि को अपनी 26 जनवरी। उपन्यास शुरू से लेकर आखिर तक पठनीय है। आज के जीवन के कई पहलुओं को छूता यह उपन्यास अंत तक अपनी रोचकता बरकार रखता है। उपन्यास खत्म होने पर सोचने के लिए भी कई मुद्दे दे देता है।
24 сен 2024