साक्षर नहीं शिक्षित बनो। बिनोद बाबू का नारा था पढ़ो और लड़ो मगर कैसे सरकार की मंशा आम आदमी के बच्चों को केवल साक्षर बनाकर अपना झंडा ढोने और रैली में भीड़ इकट्ठा करने का प्रयास कर रही है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि सरकारी विद्यालयों में सुविधा की कोई कमी नहीं है, समय पर खाना, बैठने के लिए शानदार बैंच डेस्क, जबरदस्त बिल्डिंग (भवन) में आकर्षक कलर, शानदार गेट, शौचालय, किताब, कॉपी, ड्रेस, जूता मोजा, दोपहर में खाने की वैरायटी, फंड्स की कोई कमी कभी नही रही, लेकिन जब बात आती है इन गरीब, मजदूर, असहाय लोगों के बच्चे को पढ़ाने की तो 200 बच्चों पर एक टीचर है ऊपर से उन्हे विभाग की तरफ से इतना काम दे दिया जाता है कि वह चाहकर भी बच्चों के लिए प्रयाप्त समय नहीं दे पाते है। यह सब देखकर तो यही प्रतीत होता है सरकार चाहती है इन बच्चों को केवल साक्षर बनाना ही सरकार की मंशा है। शायद उन्हें डर है कि गरीब का बच्चा यदि अच्छा से पढ़ ले तो उनकी राजनीति के लिए संकट पैदा हो सकता है।
100 रुपया देकर या मुर्गा दारू पिलाकर वोट नहीं ले पाएंगे।
21 окт 2024