में कौन हूं? सिर्फ इतना ही पूछो! फिर फिर पूछो और जब तक स्वयं को srasti की सर्वोच्च वास्तविकता न जान लो तब तक हल्ला गुल्ला न मचाई! पहले "मैं" को विलीन हो जाने दो और तभी सच्ची सेवा अपने आप ही सुरु हो जायेगी! और चुप,शांत,मौन हो जाओ! इसके लिए फिर फिर स्वयं से केवल पूछो कि,मैं कौन हूं? एक बार ही पूछकर चुप,मौन ,शांत और अंतर्मुख होकर स्मरण स्वयं का! जागरूकता में ठहर जाएं। परम मौन को मौन से ही जानो! अभी अल्प में संतुष्ट क्यों?