ठाकुरों में कथन प्रचलित है की बनल मल्ल बिगड़ल कुर्मी अर्थात तुम लोगों में जो गरीब है वह कुर्मी जो संपन्न है वह मल्ल कहता है अपने आपको ,पहले गरीब ठाकुरों में पैठ बनाओ वैसे तुम्हारे बराबरी की एक जाति लोध है जो अपने आप को राजपूत कहती है लोनिया भी अपने आपको चौहान ठाकुर कहते है उनके साथ भी संगठन और संबंध विकसित कर सकते हो या फिर राजपूतों की विलुप्त हो चुकी कोई जाति ओढ लो। रिजर्वेशन छोड़ दो इसके लिए कुछ नहीं करना जो भी तुम्हारा भाई बहन रिजर्वेशन का प्रमाण पत्र बनवाए उसको जाति से बाहर कर दो
रामायण कालीन भगवान लक्ष्मण के पुत्र चंद्रकेतु के समय मल्ल वंसजों के इतिहास व पराक्रम को देखते हुए मल्ल युद्द में पारंगत मल्ल क्षत्रियों को मल्ल की उपाधि दी गई. ऐसा बताया जाता है कि, माता सरयू के पावन तट पर महाराजा राम चन्द्र के पुत्र लव की राजधानी थी जिनके वंशज सहस्त्र वार (सैंथवार ) माने जाते हैं.
बकवास मत करो जो भी हो बने रहो बहुत लालायित हो तो गरीब ठाकुरों में अपनी बेटियो की शादी करना शुरू करो क्योंकि संपन्न ठाकुर मन से न तो तुम्हे स्वीकार करेगा न अपनी बेटियों की शादी करेगा ।
राजपूत और क्षत्रियों का कोई संबंध नहीं क्योंकि धार्मिक ग्रंथो में राजपूतों की एक भी जाति दर्ज नहीं जबकि भी केवट भील आदि वैदिक जातियां हैं राजपूतों की उत्पत्ति हवन कुंड के शुद्धिकरण से हुई है सातवीं शताब्दी केबाद
हमारे धार्मिक संस्कृति की काले और गौरी खास पहचान यह है ,कि जिस विनाशक दल के नायक ( भगवान ) के चित्रों में सूरज बना है वह सूर्य वंशी कहे गए थे । जिनके शिर पर अर्ध चंद्र बना है वह काला । यही रंग भेद है ।
हां भाई भील केवट कोहली वैदिक जातियां है इनका इतिहास धार्मिक ग्रंथो में है जबकि राजपूतके एक भी जाति धार्मिक ग्रंथो में दर्ज नहीं तभी तो शुद्धिकरण वाले मुगल पुत्र है
अरे माधरचोद शूद्र राजपूत मतलब राजा का पुत्र राजपूत जातिय कालम मे अपने क्षत्रीय लिखते है भोषणी के हमारी नाजायज औलाद तेरी मा दादी हमारे घरो मे काम करती थी दादा के कारण प्रेगनेंट हुई तुम्हारी दादी
Actually saithwar koi kurmi ho hi nhi skta islie purvi up me mall saithwar hi hai ab inhe reservation certificate ke lie jaise mile labh wo waise bnwa lete
सैंथवार कोई जाति नहीं अपितु अनेक क्षत्रिय वंशजों का समूह है। सैंथवार संघ के क्षत्रिय वैदिक कालीन से ही क्षत्रिय से जाने जाते हैं जबकि पश्चिमोत्तर के कुछ राजवंश चौहान, चंदेल, चालुक्य, चोल, परमार, प्रतिहार, वर्धन वंशों का 6ठी शताब्दी से लेकर 11वीं शताब्दी तक शशक्त एवं मजबूत राजवंश होने के कारण उस काल को राजपूत काल के नाम से जाना जाता है और उसी काल से क्षत्रिय राजवंशों ने राजपूत शब्द का प्रयोग करने लगे।
सैंथवार कोई जाति नहीं अपितु अनेक क्षत्रिय वंशजों का समूह है। सैंथवार संघ के क्षत्रिय वैदिक कालीन क्षत्रिय हैं। 6ठी शताब्दी से लेकर 12वीं शताब्दी तक पश्चिमोत्तर के कुछ क्षत्रिय राजवंशों (चोल, चालुक्य, चौहान, चंदेल, प्रतिहार, शिशोदिया) का शाशन बहुत ही सशक्त एवं सुदृढ़ रहा उस काल को राजपूत काल या वीर गाथा काल के भी नाम से जाना जाता है तभी से क्षत्रिय राजवंशों ने राजपूत शब्द का प्रयोग में लाया। अब आप का प्रश्न है कि क्या सैंथवार राजपूत हैं तो आप समझ लीजिए कि सैंथवार संघ में सभी क्षत्रिय जातियाँ वैदिक कालीन क्षत्रिय हैं जो आजकल कालांतर में कोई क्षत्रिय तो राजपूत लिखता है।