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हम बौद्ध क्यों बनें।।हम सम्मान के बौद्ध धर्म अपनाए  

Sharwan Ambedkarwadi Official
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हम बौद्ध क्यों बनें ?
मैं आज के अपने भाषण में इस महत्वपूर्ण प्रश्न पर कि मैंने भगवान बुद्ध के चलाये हुए धर्म के प्रचार के महान् कार्यभार को अपने कन्धों पर क्यों लिया है, अपने विचार प्रगट करना चाहता हूं। कई विचारशील व्यक्तियों का और मेरा अपना विचार है कि कल का सभारंभ आज होना चाहिए था और आज का सभारंभ कल। किन्तु जो होना था सो हुआ। अब आज इस प्रश्न का विचार करना कोई महत्व नहीं रखना है।
बहुत से लोगों ने मुझसे यह प्रश्न किया है कि इस महान् सभारम्भ के लिए नागपुर की क्यों चुना है अन्य कोई स्थान क्यों नहीं चुना? कुछ का कहना है कि इस शहर में राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ का केन्द्र होने के कारण उन्हीं की आंखों के सामने कुछ करके दिखाने के लिए मैंने इस स्थान को चुना है। लेकिन यह बात सच नहीं है। मेरा ऐसा उद्देश्य नहीं है। नाक को खुजला कर किसी को भी अपशकुन करने की मेरी कोई इच्छा नहीं है और न मेरे पास ऐसी निरर्थक बातें करने के लिए समय है। जो महान् कार्य मैंने अपने कंधों पर लिया है वह इतना महत्वपूर्ण है कि उसके सम्बन्ध में एक-एक मिनट भी मेरे लिए बड़ा महत्व रखता है। इस स्थान को चुनते समय कभी भूल से भी आर.एस.एस. का विचार मेरे मन में नहीं आया।
जिन लोगों ने बौद्धधर्म के सम्बन्ध में इस देश के प्राचीनकाल के इतिहास का अध्ययन किया है उन्हें मालूम है कि भगवान बुद्ध के धर्म के फैलाने का महान् श्रेय नाग जाति के लोगों को है। नाग लोग आर्यों के कट्टर शत्रु थे। आर्यों और अनार्थों में आपस में कई बड़ी-बड़ी लड़ाइयां हुईं। आर्य लोग नाग लोगों का समूल नाश करना चाहते थे। इस विषय में बहुत-सी कहानियां पुराणों में मिलती हैं। अर्जुन ने नागों को जलाया था। अगस्त मुनि ने एक 'सर्प' नाग की रक्षा की थी। उस नाग के वंशज आप लोग हैं। जिन नागों को छल और कपट से पतित बनाया गया था उन्हें उठाने के लिए एक महापुरुष की आवश्यकता थी और वे महापुरुष उन्हें भगवान् बुद्ध के रूप में मिले। नागों ने ही सारे भारत में बौद्धधर्म का प्रचार किया। आप उन्हीं नागों की सन्तान हैं। वीर नागों की प्रमुख आबादी नागपुर में थी। नागों की आबादी के कारण इस नगर को नागपुर कहा गया है। इस नागपुर से 27 मील की दूरी पर बहने वाली नदी का नाम भी "नाग" पड़ा हुआ है। इससे ऐसा मालूम पड़ता है कि इसी नदी के आसपास नागों की आबादी थी। नागपुर को इस महान् सभारम्भ के लिए चुने जाने का कारण यही है। दूसरा कोई कारण इसके पीछे नहीं है। इसलिए इसे कोई भी गलत न समझे। किसी और बात पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ विरोध सम्भव है लेकिन इस स्थान को किसी ने भी उनको चिढ़ाने के लिए पसन्द नहीं किया है।
जिस महान कार्य को मैंने प्रारम्भ किया है और जिसे आप सब लोगों ने स्वीकार किया है उसकी बहुत से समाचार पत्रों ने बहुत ही कटु आलोचना की है। उनके मतानुसार मैं अपने बन्धुओं को गलत मार्ग पर ले जा रहा हूं। ये अस्पृश्य ऐसे ही अछूत बने रहेंगे। इस धर्मान्तर से हमारा कुछ भी भला नहीं होगा। कई पत्रों ने तो यहां तक भ्रामक तथा मिथ्या बातें कही हैं कि आज जो अछूतों को राजनीतिक अधिकार मिले हुए हैं कि वे सब धर्मान्तर से समाप्त हो जाएंगे। यह सब कुछ पागलपन का प्रचार है। उन लोगों का कहना है कि नये रास्ते से न जाकर पुराने रास्ते से या उसी पगडंडी से हमें जाना चाहिए। सम्भव है कि ऐसे व्यक्तियों का थोड़ा-सा प्रभाव हमारे तरुणों और बुजुर्गों पर अवश्य पड़े, इसलिए मैं इस प्रश्न का जवाब दिए वगैर नहीं रहना चाहता। संशय को दूर करने से हमारे आन्दोलन को बल मिलेगा। इसलिए इसी प्रश्न पर मैं बहुत कुछ कहना चाहता हूं।
"महार चमार मरी हुई गाय-भैसों को न उठाएं और न मरी हुई गाय-भैंसों के मांस को ही खाएं।" इस बात का प्रचार मैंने आज से 30 वर्ष पूर्व किया था। इस प्रकार के सर्वण हिन्दुओं को बड़ा आघात पहुंचा। मैंने उनसे पूछा कि गाय-भैंसों का दूध तुम पिओ और इसके मरने पर उठाकर हम बाहर फेंकें। ऐसा क्यों? अगर वे अपनी बूढ़ी मां के मरने पर उसे खुद उठा ले जाते हैं तो मरी हुई गाय और भैंस को स्वयं क्यों नहीं उठा ले जाना चाहते। जब मैंने ऐसे प्रश्न उनके सामने रखे तो वे लोग बहुत चिढ़े। मैंने उनसे कहा कि अगर तुम अपनी मरी हुई मां को बाहर फेंकने के लिये हमें दे दो तो हम अवश्य ही मरी हुई गाय को भी उठा कर ले जायेंगे। इस पर 'केसरी' में एक चित्तपावन ब्राह्मण ने कई पत्र प्रकाशित करके यह बताने का प्रयत्न किया कि प्रति वर्ष मृत पशुओं के न उठाने से महार-चमारों को कितना नुकसान होगा। इसके लिये उन्होंने कई प्रकार के आंकड़े देकर अपनी बात को सिद्ध करने का प्रयत्न किया।

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6 сен 2024

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Комментарии : 1   
@vikkiraj3318
@vikkiraj3318 Месяц назад
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