'सुनहु साधक प्यारे'
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा
स्वरचित काव्य रचना की व्याख्या।
दिनांक 16 नवम्बर, 2002.
श्री महाराज जी के शब्दों में,
"देखिये! एक बात ध्यान से समझ लीजिये, संसार में कोई पर्सनालिटी, कोई व्यक्ति किसी के लिये तभी कुछ कर सकता है, जब वो पहले स्वयं भगवत्प्राप्ति करके आनंद प्राप्त कर ले। स्वर्ण अक्षरों में लिख लो सब लोग खोपड़ी में।"
24 сен 2020