Fr. S. Joseph, Varanasi
फादर मार्क लिंक SJ ने अपनी प्रवचन पुस्तक इलस्ट्रेटेड डेली होमिलीज वीकडेज में विलियम बार्कले के पुस्तक से रोमन जेल में बंध एक यहूदी रब्बी की जीवन का ज़िक्र करते हैं। रब्बी ने अपने दैनिक राशन में पीने के लिए दिए हुए पानी को, पीने के लिए नहीं बल्कि खाने से पहले हाथ धोने के धार्मिक अनुष्ठान के लिए प्रयोग करते थे। धार्मिक नियमों का पालन करने के अपने दृढ़ संकल्प के कारण, वे लगभग प्यास से मर गए थे । यह कहानी हमें यह जानने में मदद करती है कि फरीसी क्यों आश्चर्यचकित हो जाते हैं जब वे यीशु के शिष्यों को धार्मिक विधिपूर्वक बिना धोए हाथों से खाना खाते हुए देखते हैं। उनकी बाहरी धार्मिक क्रियाओं का अनुष्ठान करने की चिंता कभी-कभी आंतरिक आध्यात्मिकता को कमजोर कर देती है। उन्हें प्रेम और दया जैसी आध्यात्मिक बातों से धार्मिक क्रियावों का अनुष्ठान अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है । ये धार्मिक नेताएं ईश्वर को प्रसन्न करने के तरीकों के रूप में इन नियमों को लागू करते हैं। इन परम्पराओं की उपेक्षा करने का मतलब ईश्वर को नाराज करना है।ऐसा करने में असफल होना, यहूदी लोगों की दृष्टि में स्वास्थ्य का मुद्दा नहीं, बुरे व्यवहार का मुद्दा नहीं बल्कि परमेश्वर की दृष्टि में अशुद्ध होना है। इन लोगों के लिए, अशुद्ध हाथों से भोजन करना दुष्टात्माओं के आक्रमण का और दरिद्रता का आमंत्रित करना है।
जब हम छोटे बच्चे थे, तो हमारे माता-पिता ने हमें खाने के पहले हाथ धोना सिखाये थे। खाने से पहले प्रार्थना करना सिखाये थे क्योंकि हमारे माता पिता के अनुसार हमारा भोजन ईश्वर की अनुग्रह और दया है।
ये सभी परंपराएं हमें बता रही हैं कि हम न केवल हाथ धोएं बल्कि अपने दिल को भी साफ रखें और ईश्वर के दया और अनुकाम्बा का पात्र बने। हम जानते हैं कि कहाँ परमेश्वर सबसे अधिक निवास करना चाहता है, हम जानते हैं कि कहाँ वह सबसे अधिक सम्मानित होना चाहता है , वह स्थान है हमारा हृदय। निर्मल हृदय ही वह स्थान है जहाँ ईश्वर अपने भक्तों से मिलते हैं।
आइए हम अपने हृदय को ईश्वर का सच्चा मंदिर बनाने का प्रयास करें; विनम्रता, प्रेम और दया से भरा निर्मल हृदय ही उनका मंदिर है । आइए हम अपने हृदय की शुद्धता और पवित्रता बनाए रखें।
21 авг 2024