भारतेंदु को आधुनिक नाटक का पितामह माना जाता है। जब महिला पात्रों के लिये कोई भी नारी तैयार नहीं थी तो भारतेंदु मंडल के नाटककारों ने स्वयं ही इसमें अपनी भूमिका निभाई। इतिहास के पन्ने ऐसे ही लिख जाते हैं। इसी तरह की कहानी कुल्लू में चांद कुल्लवी के नाम से प्रसिद्ध लाल चंद प्रार्थी जी ने गढ़ी है।
स्वयं प्रार्थी जी के शब्दों को उधार लेकर कहें तो:-
खुश्क धरती की दरारों ने किया याद अगर
उनकी आशाओं का बादल हूँ, बरस जाऊँगा।
इसी तरह कुल्लवी नाटी के रूप में खुशियों की बूंदें टपक रही हैं। सात समंदर पार तक पैरों की थरकन से सभी को नचाने पर विवश करने वाली कुल्लवी नाटी का सूत्रपात भी प्रार्थी जी की देन है। उनके समय में सिर्फ पुरुष ही इस नाटी में हिस्सेदारी करते थे। जबकि महिलाएं महज देव कारज में लालड़ी नृत्य किया करती थीं । लेकिन 60 के दशक में कुल्लू के इस लाल की बदौलत से महिलाओं को कुल्लवी नाटी में शिरकत करने का अवसर मिला। सुखद पहलू तो यह रहा कि जब समाज में महिलाओं ने आगे आने में डर व शर्म महसूस की तो उन्होंने अपनी बेटियों को अग्रिम पांत में नचाया।
नाटी की तैयारी के दौरान जालफू राम जी व दिले राम शबाब जी भी मौजूद रहे। उन्हीं की अगवाई में ऊझी घाटी के नग्गर व जगतसुख की महिलाएं दिल्ली में 26 जनवरी कार्यक्रम में प्रथम बार पुरूषों के साथ कुल्लवी नाटी करती नजर आईं । तब से लेकर अब तक यह कारवा बढ़ता जा रहा है जिसका ज्वलंत उदाहरण हमें अन्र्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कुल्लू दशहरे में देखने को मिला जब महिलाओं द्धारा दशहरे के दौरान वर्ल्ड रिकार्ड में अपना नाम अंकित किया गया ।
आज हम आज का व्यक्तित्व कार्यक्रम के अंतर्गत बात करने जा हैं प्रार्थी जी की टीम की नाटी लीडर हिमी देवी जी व बंती देवी जी से । बंती देवी जी वो महिला हैं जिन पर उस समय वृतचित्र भी बनाया गया था ।
17 июл 2019