गणेश दा पैलाग जिस मिट्टी के कण-कण, खेत खलिहान, चारों तरफ हरे भरे जंगल, झाड़ियों के बीच पग डण्डी में बीता जहां हमारा बचपन से लेकर आज तक का समय व्यतीत हुआ हो उस मिट्टी से दूर जाने में अवश्य दुख होता है लेकिन मूलभूत सुविधाओं का अभाव के कारण और रोजी-रोटी के कारण ही हमारे पहाड़ का पलायन हो रहा है। दाज्यू अपनी जन्म भूमि और ईष्ट देवी देवताओं को सदैव स्मरण करते हुवे जहां भी रहो खुश रहो।🙏🙏
वह भाई साहब मजा आ गया आपकी वीडियो को देखकर क्या सुंदर प्रस्तुति दिया आपने जो पहाड़ से पलंग का दर्द आपने अपनी आवाज से कहा है वह बहुत सुंदर आवाज दी है और पूरा कुमाऊं को भी आपने अपनी वीडियो में दिखाया है मैंने पहली बार किसी ब्लॉगर की वीडियो पूरीdaki
दाज्यू अपना घर द्वार छोड़ जाना इतना आसान नहीं होता लेकिन जब बच्चों के भविष्य की बात आती है तो कलेजे पर पत्थर रखकर निकलना ही पड़ता है ,, उत्तराखंड बीरान होते जा रहा है और आगे भी होता रहेगा क्योंकि जब तक मूलभूत सुविधाएं सरकार देगी नहीं पलायन चलता रहेगा आज आपके घर रोड स्कूल होता तो कम से कम आज का पलायन नहीं होता,और ना जाने कितने घर सरकार की अनदेखी से उजड़ गए अपना घर छोड़ कर कौन रफ्युजी जैसे रहना चाहेगा शहर में,,सरकार को जनता से ज्यादा अपनी कुर्सी की चिंता है , जनता क्या करे ,??? कागजों में पलायन रोकने की बात जरूर होती है लेकिन जो पलायन हो गया और हो रहा और जो आगे होगा ,, इसका कोई ठोस जवाब सरकार के पास है नहीं या देना नहीं चाहती ,, सायद भारत देश में ऐसा और कोई दूसरा राज्य नहीं है ,कोई बात नहीं बच्चों को पढ़ाओ भगवान ने नहीं सरकार ने चाहा तो फिर वापस जाएंगे अपनी मिट्टी में,,,, जै हिंद जै उत्तराखंड
उत्तराखंड का 24 सालों का विकास सिर्फ मैदानों तक सीमित रहा, विकास के पहाड़ चढ़ने में कमर टूट गई, और मैदान में विकास का अधिक से अधिक लाभ कौन ले रहा यह भीजग जाहिर है, उत्तराखंड को चाहिए कि विकास की गंगा अब पहाड़ों की और मोडी जाए, उत्तराखंड राज्य जिस उद्देश्य हेतु बना था,उसे उद्देश्य को पूर्ण किया जाए।
😢 आपका फ़ैसला सही है भाई आपका घर हमेशा आपका इन्तजार करेगा आपने और आपके परिवार ने बहुत कुछ सहन कर लिया लेकिन आपकी आने वाली जनरेशन को शिक्षा की बहुत जरूरत है उत्तराखंड में विकास की कोई गुंजाइश नहीं है ❤❤❤ दिल से जाईये और समय समय पर आना होगा ही 😢😢😢
उस जमाने में हमारे पूर्वज पता नहीं किस कारणवश सुदूर पर्वतों में अपना आशियाना बनाने के लिए विवश हुए होंगे। यह भी सत्य है कि पहले नौकरी करने का चलन नहीं था, खेती ही एकमात्र साधन था जीविका का। जिनकी जन्मभूमी है उन्हें तो बहुत लगाव है, पर नयी पीढ़ी की सोच ही अलग है।
Bahar kay log jo pahado mein ghar khareed rahey hai wo bhi wapis bech kar city wapis chale gaye hai. Har cheez kay liyae mohtaaj hona padta hai. Khas kar medical suvidha kay liyae.
Is ghar ko home stay ke liye air b&b me.dal do.income bhi hoti rhegi aur ghar aabad bhi rhega.Kuch log 1 month ke लिए bhi le lete hain relax kerne ke.liye दूर दराज इलाक़ों me.
अब भू कानून के लिए आवाज उठाते मिलेंगे आज से हजारों साल पहले भी लोग यहां रहते आए हैं जहां सड़क भी बन चुकी हैं वहा भी गांव खाली है आप तो फिर भी बहुत कठिन जगह है
हमारी मुख्य समस्या जनसंख्या है हमारे पूर्व के परिवार दादा के जमाने मैं बड़े होते थे तो मजबूरी मैं ही एक दो लोग गांव मैं रह कर खेती कर लिया करते थे तब गांव आबाद रहा करते थे, हमने गांव मैं बसने को बाहरी लोगों को देखा है जो आना चाह रहे जो हमारे लिऐ सही नहीं होगा😮
Dukhad Bahut he Dukhad, , Majburi may he duur jaata hai Insaan apni Jado roots se , Area to Bahut mast look hai, Chalo Aage Badho Bhai Sahib n khoob progress karo, Bhagwaan Aap k Saath rahe or holidays may Gaon aao Vapis.
पचास साल पहले हमने भी ऐसे ही घर छोड़ कर बाहर आ गए आप की कहानी हमारी है ईष्ट देवता कीक्रपा तुम्हारे साथ बनीं रहे भगवान अच्छा ही करेंगे हमारे दुःख सरकार की समझ में नहीं आयेंगे
आप आते रहना हल्द्वानी से लोगो को घूमने को भेजते रहना यह गांव मैं दो वक्त की रोटी और पर्यावरण का सुख यहीं मिलेगा आप गांव मैं अध्यापक या फौज में रहे होंगे हल्द्वानी मैं अब मकान बना लिया होगा तो स्वास्थ और अन्य जरूरत को समझ कर चले गए होंगे पर गांव को कभी भी मत छोड़ना ये अगली पीढ़ी की जरूरत होंगे आते रहना भेजते रहना घूमने को
मेरे परिवार ने अल्मोड़ा से ५० साल पहले ही पलायन कर लिया। मेरा जन्म लखनऊ हुआ। मेरे पिताजी जब तक जिंदा रहे हमेशा अपने गांव को याद करते रहे। गरीबी इतनी थी की उनको पलायन करना पड़ा। अपनी जन्मभूमि छोड़ना सबसे मुश्किल काम है।
को सुनो तेरी मेरी बाता,सौण भादौ कि छौ राता। कसी काटुला दिन य राता,कसी भुलु में पितरो की थाता। जि रैया जागि रैया,आने जाने तुम रैया।रिति रिवाज झन भुलिया, पहाड़ी बुलाड झन भुलिया,देश प्रदेश जाले छा,देब भूमि कै लाज धरिया
भैय्या जी नमस्कार में बस इतना कह सकता हूँ हिम्मत ना हारिए बिसरिए ना राम पूर्ण होंगे सब काम अपने गांव छोड़ा है तो आपकी कोई मजबूरी ही होगी इस पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता आप ही बताएं अगर सब लोग इसी प्रकार हिम्मत हारेंगे तो हमारे पहाड़ों का क्या होगा मेरा जन्म उत्तराखंड का है और मैं यूपी में रहता हूं मैंने अपना सब कुछ बेच कर सारी पूंजी लगाकर पहाड़ पर जमीन ली है और जब में किसी भी पहाड़ के व्यक्ति का पलायन देखता हूं तो मेरा मन द्रवित हो जाता है अगर मेरा जीवन रहा तो मैं कुछ ना कुछ पहाड़ पर आकर अपने लोगों के लिए जरूर करूंगा आगे जैसे मेरे भोले नाथ की इच्छा
धन्यवाद आपका बहुत अच्छा कमेंट किया भाई में और मेरा परिवार वहां अकेला रहता था न वहां सड़क न स्कूल कुछ भी नहीं है विकास के नाम पर ऐसे हालात में कौन रहना चाहता हूं कोई सुविधा नहीं है मजबूरी है 😭
Ek private ke liye road bahut jyada Kharche aata hai sir.hum shitla devi maa ke mandir ke neeche that gaun ke nivasi hai. 80 Saal ke sas sasur hai Jo aaj bhi waha rahte hamare sath Shahar nahi aana chahte.gaun mai keval teen family rahti hai.teen family ke liye jungle mai road nahi aa payegi.all the best sir
Uttarakhand के पहाड़ आज भी hospital or school ko तरस रहे हैं कोई सुध नही लेता है आप ने नया मकान बना लिया होगा हल्द्वानी में। वही लोग जा रहे जिनकी नौकरी या पेंशन है और haldwani dehradun में मकान बना दिया है
रो़जगार बहुत हैं करनें वाला चाहिए जी आज जो साधन हैं वो 1998 में होता तो मैं भी पलायन नहीं करता।दूध उत्पादन, मुख्य हैं अन्य मैं सरकार बहुत ही सस्ता लोन दे कर रो़जगार के अवसर दे रही हैं प्रयास हम लोग करते नहीं सरकार चैकबंदी करा दे इसका लाभ मिलेगा।
Palayan karna yeh solution nahi hai. Mai bhi uttarakhand ke ese hi jagah se aata hu. Humare waha bhi bahut sari problems hai.but humne kbi apna gao nhi chora. Hum sab ek hoke system se apni problem share kr skte hai. Humare gao walo ne khud apne peso se road khudwa di. Ab wahi road govt complete kar rahi 😅😅. Har problem ka solution hai. Ye palayan karna aur likes ke liye video banana kya sahi h.
3 -3:km ka up-down ,Bahut jyada Dukhad, Vaise Walking bhi ho jaata hai, Lakin haari-bemaarii,Bade-Bujurgo ko to Dikkat hoga, Trackter se ban to Sakta hai Je kaccha Rasta, kaam chalau, Bike-Trackter, small Cars ka .Lakin kaafi dur-daraj ka area hai,,,, yaha to fit banda Retirement k baad ke life masti se ,Nature ke goud may reh Sakta hai.
उत्तराखंड के इस दर्द की वजह एक ही सरकार का बना रहना भी है सरकारें बदलती रहें तो विकास के नए तरीके होते हैं नेता चाहें तो जिला पंचायत, छेत्र पंचायत, विधायक निधि, सांसद निधि, प्रधानमंत्री सड़क योजना इन पांच के अलावा अन्य तारीकों से सड़क बनाई जा सकती थी. अकेले मकानों के लिए ज्यादा दिक्क़त होती है।
देवभूमि को छोड़ना बहुत ही दुखदाई होता है। पलायन आज से नहीं बहुत पहले से होता आया है। पर जो शुद्ध आक्सीजन पानी देवभूमि पहाड़ो में मिलता है वह शहरो में नहीं मिल सकता है। सरकार को चाहिए पहाड़ो के गांव की भूमि को चंकबंदी में लाना चाहिए इससे पलायन नही होगा।
भाई आप पलायन का कारण विकास बता रहे है यह कहकर आप भजपा और मोदी सरकार का अपमान कर कर रहे हैं। पलायन का कारण आपको मुसलमानों को बताना चाहिए था जिससे भाजपा को फायदा होता
Samay bada balwan hai bhai logo, ek samay aisa bhi tha ki kisi ne agar khet ka wadu thoda sa bhi khiska diya hota tha toh maar kaat suru ho jati thi, bahut jyada ladai jhagda k baad court case tak ki naubat aa jane wala thahra tha, kya kare kisi ne nahi shocha tha aise bhi din dekhne padenge 😢😭🤗
पलायन का एक कारण, t v, मोबाइल भी है जिसे देखकर हर कोई पलायन करना चाहता है समय के हिसाब से चलना चाहता है। यही सबसे बड़ी मजबूरी है यह आवश्यक भी है। पुराने बुधिजीवि भी पहले बनाते वक़्त सोचते तो कितना अच्छा होता।
Bachpan se ab tak aap rahe ho kon se majburi hai jo ja rahe ho kon sa gaon hai aapka uncle jee aap apne bete bahu ki wajeh se ja rahe ho but bata nahi rahe ho