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🥪गरीब ग्रिल सैंडविच वाली: संघर्ष और स्वाद की कहानी | hindimoralstory  

 Kahaniyaan ही कहानियां
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STORY: गरीब ग्रिल सैंडविच वाली: संघर्ष और स्वाद की कहानी🥪🥪
किसी छोटे से कस्बे में एक साधारण-सी औरत थी, जिसका नाम था सुशीला। लोग उसे प्यार से "गरीब ग्रिल सैंडविच वाली" कहते थे। सुशीला का जीवन आसान नहीं था। पति की अचानक मृत्यु के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उस पर आ गई थी। तीन बच्चों का पेट पालने और उनके भविष्य को संवारने के लिए सुशीला ने अपनी रसोई को ही अपना व्यवसाय बना लिया।
सुशीला ने सोचा, "ऐसा क्या बेचूं जो लोग खाना भी पसंद करें और मुझसे बार-बार खरीदें?" उसने अपनी माँ के पुराने नुस्खे याद किए, जिसमें वे स्वादिष्ट सैंडविच बनाती थीं। लेकिन गांव में कोई सैंडविच खाने का शौकीन नहीं था। लोग वहां केवल पारंपरिक भोजन ही पसंद करते थे। फिर भी, सुशीला ने हिम्मत नहीं हारी। उसने अपनी मां से सीखे नुस्खों को एक नया रूप दिया, और सस्ती, लेकिन स्वादिष्ट "ग्रिल सैंडविच" बनाने लगी।
सुशीला की सैंडविच की खासियत थी कि वह सस्ती होती थी, इसलिए गरीब हो या अमीर, हर कोई उसे खरीद सकता था। उसके सैंडविच में ताजी सब्जियाँ, थोड़ा सा मक्खन, और भरपूर प्यार होता था। सुशीला ने अपनी पुरानी टूटी-फूटी साइकिल पर एक छोटा सा तंदूर जोड़ा और कस्बे की गलियों में जाकर सैंडविच बेचने लगी।
शुरुआत में लोग उसे ताने मारते थे। कोई कहता, "अरे, ये सैंडविच हमारे यहां कौन खाएगा?" तो कोई कहता, "गरीब औरत, क्या करेगी सैंडविच बेचकर?" लेकिन सुशीला को पता था कि मेहनत और लगन से कुछ भी संभव है। वह रोज सुबह उठती, ताजे माल का इंतजाम करती, और पूरे दिल से अपना काम करती। धीरे-धीरे उसकी सैंडविच लोगों को पसंद आने लगी। बच्चे, बूढ़े, और यहां तक कि जो उसे पहले ताने मारते थे, वे भी अब उसके सैंडविच के दीवाने हो गए।
सुशीला का छोटा सा व्यवसाय अब दिन-ब-दिन बढ़ने लगा। उसने साइकिल के बाद एक छोटी-सी ठेली खरीदी, जिसमें उसने एक ग्रिल मशीन लगाई। कस्बे के हर नुक्कड़ पर लोग उसकी सैंडविच की तारीफ करने लगे। वे कहते, "गरीब ग्रिल सैंडविच वाली की सैंडविच में जो स्वाद है, वो बड़े-बड़े होटलों में नहीं मिलता!"
सुशीला के बच्चे भी अब बड़े हो रहे थे। उसकी मेहनत और संघर्ष को देखकर वे भी उसकी मदद करने लगे। सुशीला का सबसे बड़ा बेटा राजू पढ़ाई के साथ-साथ माँ के बिज़नेस में हाथ बंटाने लगा। उसकी बेटी भी पढ़ाई के बाद माँ के साथ ठेली पर खड़ी होकर सैंडविच बनाती।
धीरे-धीरे सुशीला की जिंदगी बदलने लगी। उसकी सैंडविच की चर्चा अब सिर्फ कस्बे में ही नहीं, बल्कि आसपास के शहरों में भी फैल गई थी। लोग दूर-दूर से उसकी सैंडविच खाने आते। वह अब गरीब नहीं रही, लेकिन उसका नाम "गरीब ग्रिल सैंडविच वाली" अब भी लोगों के दिलों में बसा हुआ था।
उसने कभी अपने पुराने दिनों को नहीं भुलाया। वह हमेशा कहती, "मेरे पास कुछ नहीं था, सिवाय मेहनत के। आज जो कुछ भी है, वह मेरी मेहनत और सच्चे दिल से किए गए काम का नतीजा है।" उसकी कहानी से गांव के लोग भी प्रेरित होते और कहते, "अगर सुशीला इतना कर सकती है, तो हम भी कुछ कर सकते हैं।"
सुशीला की यह कहानी सिर्फ एक सैंडविच बेचने वाली की नहीं, बल्कि संघर्ष, मेहनत और सपनों की कहानी थी। उसने दिखा दिया कि अगर दिल में सच्ची लगन हो, तो कोई भी इंसान अपने हालात बदल सकता है।
*सीख:* चाहे कितनी भी मुश्किलें क्यों न हों, अगर इंसान मेहनत और लगन से काम करे, तो उसे सफलता जरूर मिलती है।
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Опубликовано:

 

24 окт 2024

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