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24. संप्रज्ञात समाधि कितने प्रकार की होती है ? योग-दर्शन 1/17 ।  

Prahari
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वितर्कविचारानन्दास्मितारूपानुगमात् सम्प्रज्ञातः ॥ १७ ॥
शब्दार्थ- (वितर्क-विचार-आनन्द- अस्मिता रूपानुगमात्) वितर्क विचार, आनन्द अस्मिता- रूप स्थितियों के अनुभव से (सम्प्रज्ञातः) सम्प्रज्ञात समाधि होती है ।
सूत्रार्थ- वितर्क, विचार, आनन्द, अस्मिता रूप स्थितियों के अनुभव से 'सम्प्रज्ञात समाधि होती है।
व्या० भा०- वितर्कश्चित्तस्यालम्बने स्थूल आभोगः । सूक्ष्मो विचारः । आनन्दो ह्लादः । एकात्मिका संविदस्मिता । तत्र प्रथमश्चतुष्टयानुगतः समाधिः सवितर्कः । द्वितीयो वितर्कविकलः सविचारः । तृतीयो विचारविकलः सानन्दः । चतुर्थस्तद्विकलोऽस्मितामात्र इति । सर्व एते सालम्बनाः समाधयः ॥ १७ ॥
व्या० भा० अ०- 'वितर्क' का अर्थ चित्त के आलम्बन में स्थूलभूत पृथिवी आदि का साक्षात्कार है। 'विचार' का अर्थ चित्त के आलम्बन में सूक्ष्मभूत अर्थात् तन्मात्राओं का साक्षात्कार है। 'आनन्द' का अर्थ हा सुख की अनुभूति अर्थात् इन्द्रियों के साक्षात्कार से सुख की अनुभूति 'अस्मिता' = का अर्थ है (चित्त के आलम्बन में) जीवात्मा का साक्षात्कार ।
प्रथम अर्थात् वितर्कानुगत समाधि में (स्थूलभूत तन्मात्राएं इन्द्रियों और जीवात्मा ये चारों विषय (योगी के जिज्ञास्य) रहते हैं। (किन्तु स्थूल भूतों का ही साक्षात्कार होता है। शेष का सामान्य ज्ञान रहता है।) इसको चतुष्टयानुगत कहा जाता है।
द्वितीय, वितर्क से रहित विचार समाधि है। (इसमें तन्मात्राएँ इन्द्रियों और जीवात्मा जिज्ञास्य रहते हैं। किन्तु केवल तन्मात्राओं का साक्षात्कार होता है। शेष दो का सामान्य ज्ञान रहता है ।)
तृतीय, विचार से रहित आनन्द समाधि है। (इसमें इन्द्रियाँ और जीवात्मा जिज्ञास्य रहते हैं। किन्तु इन्द्रियों का ही साक्षात्कार होता है। जीवात्मा का सामान्य ज्ञान रहता है 1)
चतुर्थ, आनन्द से रहित अस्मिता समाधि है। (इसमें जीवात्मा ही जिज्ञास्य रहता है। और जीवात्मा का साक्षात्कार भी होता है। भूतादि अन्य कोई पदार्थ जिज्ञास्य नहीं रहता) ये सब आलम्बन सहित समाधियाँ है ॥ १७ ॥
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1 окт 2024

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Комментарии : 9   
@baburam-qy3hf
@baburam-qy3hf Год назад
स्वविषयासमप्रयोग चित्तस्य स्वरूपानुकार इवेन्द्रियाणाम् प्रत्याहार।। इन्द्रियाणां स्वविषया (इन्द्रियों के विषयों का), चित्तस्य स्वरूपानुकार (चित में अंकित ), असम्प्रयोग ( ना होना ), इव(हि) प्रत्याहार:(प्रत्याहार कहलाता है)। महर्षि पतंजलि यहां बताना यह चहाते हैं कि योगी को योगाभ्यास से जो प्रत्याहार की शक्ति प्राप्त हुई है उसके द्वारा योगी अपने चित पर विपयों के नए संस्कार अंकित नहीं होने देता है और योगी बनने तक विषयों के जितने संस्कार चित्त पर अंकित हैं, योगी उन संस्कारों को धारणा ध्यान और समाधि से साफ करके, कैवल्य को प्राप्त करता है।
@surajsagar6935
@surajsagar6935 4 месяца назад
कोहि मिठाई खातेखाते ध्यान कर्तेहे फिरतो अागेके बद्ले पिछेहि अायेग्गे
@ushamalik6229
@ushamalik6229 Год назад
आचार्य जी नमस्ते शुभकामनाएं आयुष्मान भव ओ३म् 🙏🏼🚩
@user-su2nu2lq7n
@user-su2nu2lq7n Год назад
मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार में विवेक और पुरुषार्थ का क्या अर्थ होता है
@shivsharma4897
@shivsharma4897 Год назад
🎤👌👌🚩🔱🌞🔱🚩🙏🙏🌻🤔🌻🌏🔥💧🌬️🌳🌈👈 पांच!!!!!?🖐️
@DeepSingh-um6xv
@DeepSingh-um6xv Год назад
Sir Pranam ! Aap ke paas clearty h .....Mai kuch khoj rha tha mujhe mil gya thanks
@SurenderSingh-tb3il
@SurenderSingh-tb3il Год назад
🙏🙏🙏
@ashokagrawal4513
@ashokagrawal4513 Год назад
सादर प्रणाम आचार्य जी
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