Тёмный

Annapurna Varth Katha |अन्नपूर्णा व्रत कथा 

सत्य की विजय
Подписаться 325
Просмотров 129
50% 1

Annapurna Varth Katha |अन्नपूर्णा व्रत कथा
इतने में क्या देखता है की काशी विश्वनाथ के मंदिर ने खड़ा हुआ है | माता का वरदान ले कर धनंजय घर आया और सुलक्षणा से सब बात कही | माताजी की कृपा से अटूट संपत्ति उमड़ने लगी | छोटा घर बहुत बड़ा गिना जाने लगा |
जैसे शहद के छत्ते में मक्खियाँ जमा हो जाती है उसी प्रकार अनेक सगे-संबधी आकर उसकी बड़ाई करने लगे | इतना धन, इतना बड़ा सुन्दर घर संतान नहीं तो इस कमी का कौन भोग करेगा | सुलक्षणा के संतान नहीं है, इसलिए तुम दूसरा विवाह करो |
अनिच्छा होते हुवे भी धनंजय को दूसरा विवाह करना पड़ा | सटी सुलक्षणा को सौत का दुःख उठाना पड़ा | इस तरह दिन बीतते गए फिर अग्घन मास आया और नए बंधन से बंधे पति से सुलक्षणा ने पति से कहलवाया की व्रत व्रत के प्रभाव से हम सुखी हुए हैं, इस कारण यह व्रत हमें छोड़ना नहीं चाहिए | यह माता जी का प्रताप है, हम इतने सम्पन्न व् सुखी हुए है |
सुलक्षणा की बात सुन कर धनंजय उसके यहाँ आया और व्रत में बैठ गया | नै वधु को इस बात की खबर नहीं थी | वह धनंजय के आने की राह देख रही थी |
दिन बीतते गए और व्रत पूरा होने में तीन दिवस रहे की नै पत्नी को खबर मिली और उसके मन में इर्ष्या की ज्वाला दहक रही थी | सुलक्षणा के घर पहुची और झगडा करके वह धनंजय को अपने साथ ले आई और नए घर में धनंजय को थोड़ी देर के लिए निद्रा ने आ घेरा |
उसी समय नयी पत्नी ने उसके व्रत का सूत्र तोड़कर अग्नि में फेंक दिया | अब तो माताजी बड़ी क्रोधित हुई | घर में अचानक आग लग गयी, सब कुछ जलकर राख हो गया | सुलक्षणा जान गयी और अपने पति को वापस अपने घर ले आई |
नयी पत्नी रूठकर अपने पिता के घर जा बैठी | संसार में दो जीव थे उनमे से अब एक ही रह गया | पति को परमेश्वर मानने वाली सुलक्षणा बोली- हे नाथ ! घबराना नहीं | माताजी की कला अलौकिक है पुत्र कुपुत्र हो जाता है पर माता कुमाता नहीं होती, आप माता में श्रृद्धा रखें और फिर आराधना शुरू करें | वे अवश्य हमारा कल्याण करेंगी | धनंजय फिर माता का व्रत करने लगा |
फिर वही सरोवर सीढ़ी प्रकट हुई उसमे अन्नपूर्ण माँ कह कर उतर गया | वहां माता के चरणों में रुदन करने लगा | माता प्रसन्न होकर बोली - यह मेरी स्वर्ण की मूर्ति ले और इसका पूजन करना तू फिर सुखी हो जायेगा |
जाओ तुमको मेरा आशीर्वाद है तेरी पत्नी सुलक्षणा ने श्रृद्धा से मेरा व्रत किया है उसको मैंने पुत्र दिया | धनंजय ने आँखें खोली और खुद को काशी विश्वनाथ मंदिर में खड़ा पाया, वहां से फिर उसी प्रकार घर आया | इधर सुलक्षणा के दिन चढ़े और महिना पूरे होते ही पुत्र का जन्म हुआ | ग्राम में आश्चर्य की लहर दौड़ गयी |
मान्यता आने लगी | इसीप्रकार उस ग्राम के निःसंतान सेठ के पुत्र होने से उसने माता अन्नपूर्णा का सुंदर मंदिर बनवाया | जिसमे धूमधाम से माताजी पधारी |
यज्ञ किया और धनंजय को मंदिर का आचार्य पद दिया और जीविका के लिए मंदिर की दक्षिणा और रहने के लिए बड़ा सुंदर भवन बनवा दिया | धनंजय स्त्री-पुत्र के साथ वहां रहने लगा | माताजी की चढौत्री से भरपूर आमदनी होने लगी |
इधर नयी वधु के पिता के घर डाका पड़ा, सब कुछ लूट गया, वे भिक्षा मांग कर पेट भरने लगे | सुलक्षणा ने जब यह सब सुना तो उन्हें बुला भेजा | अलग घर में राख दिया और उनके अन्न-वस्त्र का प्रबंध कर दिया | धनंजय, सुलक्षणा और उसका पुत्र माताजी की कृपा से आनंद करने लगे | माताजी ने जैसे इनके भंडार भरे वैसे सबके भरे |
मन्त्र
अन्नपूर्णा सदा पूर्णा शंकर प्राणवल्लभे
ज्ञान वैराग्य सिद्ध्यारार्थम भिक्षम देहि च पार्वती ||
माता में पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः
बान्धवः शिवाभाक्ताश्च स्वदेशो भुव्त्रयम ||

Опубликовано:

 

18 сен 2024

Поделиться:

Ссылка:

Скачать:

Готовим ссылку...

Добавить в:

Мой плейлист
Посмотреть позже
Комментарии    
Далее
Prank Orchestra
00:10
Просмотров 1,6 млн
Ramayan Bala Rawan Ka Janm Kaise  Huaa #Ramlila #Ramayan
14:26
Shree Bhaktambar sutra
48:18
Просмотров 2,5 млн
Prank Orchestra
00:10
Просмотров 1,6 млн