#abidaparveen #eft#sufisinger #sufisongs #abidainmahotapalace#mahotapalace#shahlateef#sindhimusic#mehrantv Program : Abida Parveen Show Singer: Abida Parveen | Yar Ko Hum Ne Ja Ba Ja Dekha
There is only one Abida and no other, this land is so blessed because of her...I am so grateful that I lived in her time along w many other giants who walked this land and left their imprints never to be erased from Aziz Mian, Nusrat FAK and Mehdi Hasan to name a few along w Moen and Omar S
Mashallah voice is very beautiful hai dil kar ra hai mai be dhamal lagu hazyrat ali a.s ka kalaam is very beautiful hai Allah Pak ap ko slamat rakhe goodbuy ❤❤❤❤❤❤❤❤❤👍👍👍👍👍👍☺️☺️☺️☺️☺️
Allah ap ko islam pr chalna ke tofeek da ameen kew ap muslim hourat hai pr aj tk m ap ko hourat wala roop m nei dekha kew k islam m ladeez ko parda k hukam hai jo ap k aas paas b nei ho k guzra
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0:51 0:52 || ॐ श्री परमात्मने नमः || वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् | देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् || * यह एक बड़ी मार्मिक बात है कि मनुष्य जिन प्राकृत पदार्थोंको अपना मान लेते हैं, उन पदार्थोंके सदा ही परवश (पराधीन) हो जाते हैं | वे वहम तो यह रखते हैं कि हम इन पदार्थोंके मालिक हैं, पर हो जाते हैं उनके गुलाम ! परन्तु जिन पदार्थोंको अपना नहीं मानते, उन पदार्थोंके परवश नहीं होते | इसलिये मनुष्यको किसी भी प्राकृत पदार्थको अपना नहीं मानना चाहिये; क्योंकि वे वास्तवमें अपने हैं ही नहीं | अपने तो वास्तवमें केवल भगवान् ही हैं | उन भगवान्-को अपना माननेसे मनुष्यकी परवशता सदाके लिये समाप्त हो जाती है | तात्पर्य यह हुआ कि मनुष्य पदार्थों और क्रियाओंको अपनी मानता है तो सर्वथा परतन्त्र हो जाता है, और भगवान्-को अपना मानता है और उनके अनन्य शरण होता है तो सर्वथा स्वतन्त्र हो जाता है | प्रभुके शरणागत होनेपर परतन्त्रता लेशमात्र भी नहीं रहती---यह शरणागतिकी महिमा है | परन्तु जो प्रभुकी शरण न लेकर अहङ्कारकी शरण लेते हैं, वे मौतके मार्ग-(संसार-)में बह जाते हैं---‘निवर्तन्ते मृत्युसंसारवर्त्मनि’ (९ | ३) | इसी बातकी चेतावनी देते हुए भगवान् अर्जुनसे कह रहे हैं कि तू जो यह कहता है कि मैं युद्ध नहीं करूँगा, तो तेरा यह कहना, तेरी यह हेकड़ी चलेगी नहीं | तुझे क्षात्र-प्रकृतिके परवश होकर युद्ध करना ही पड़ेगा | * व्यवसाय अर्थात् निश्चय दो तरहका होता है---वास्तविक और अवास्तविक | परमात्माके साथ अपना जो नित्य सम्बन्ध है, उसका निश्चय करना तो वास्तविक है और प्रकृतिके साथ मिलकर प्राकृत पदार्थोंका निश्चय करना अवास्तविक है | जो निश्चय परमात्माको लेकर होता है, उसमें स्वयंकी प्रधानता रहती है, और जो निश्चय प्रकृतिको लेकर होता है, उसमें अन्तःकरणकी प्रधानता रहती है | इसलिये भगवान् यहाँ अर्जुनसे कहते हैं कि अहङ्कारका अर्थात् प्रकृतिका आश्रय लेकर तू जो यह कह रहा है कि मैं युद्ध नहीं करूँगा, ऐसा तेरा (क्षात्र-प्रकृतिके विरुद्ध) निश्चय अवास्तविक अर्थात् मिथ्या है, झूठा है | आश्रय परमात्माका ही होना चाहिये, प्रकृति और प्रकृतिके कार्य संसारका नहीं | * यदि प्राणी यह निश्चय कर लेता है कि मैं परमात्माका ही हूँ और मुझे केवल परमात्माकी तरफ ही चलना है, तो उसका यह निश्चय वास्तविक अर्थात् सत्य है, नित्य है | इस निश्चयकी महिमा भगवान्-ने नवें अध्यायके तीसवें श्लोकमें की है कि अगर दुराचारी-से-दुराचारी मनुष्य भी अनन्यभावसे मेरा भजन करता है तो उसको दुराचारी नहीं मानना चाहिये, प्रत्युत साधु ही मानना चाहिये, क्योंकि वह वास्तविक निश्चय कर चूका है कि मैं भगवान्-का ही हूँ और भगवान्-का ही भजन करूँगा | {गीताप्रेस गोरखपुरसे प्रकाशित श्रद्धेयस्वामीरामसुखदासजी की टीका श्रीमद्भगवद्गीता साधक संजीवनी के अध्याय-१८ के उन्सठवें श्लोकसे} 0:56 0:56 0:56 0:56