इतिहास
देव भूमि के कण कण में भगवान बसे है। बिलावर में बिलकेश्वर जी महाराज का धाम तो नाज दरिया में भगवान वीर बजरंगबली साक्षात है। माता सुकराला और शिवालिक की मनमोहक वादियों में माता बाला सुंदरी बसी है जो हर किसी के मन की मुरादों को पूरा करती है। मंदिर का इतिहास
माता बाला सुंदरी का इतिहास पाडवों के युग यानी पाच हजार साल पहले की है। माता बाला सुंदरी मंदिर का निर्माण पाडवों के वंशज बबुरवान ने तब किया था जब कुरूक्षेत्र में युद्ध चल रहा था। तब मा के चंडी रूप का मंदिर शिवालिक की मनमोहक पहाड़ियों पर बनाया गया था। युद्ध के कारण जिसकी छत नहीं बन पाई थी। कहा जाता है कि बाद में अखनुर के एक राजा ने इसका पूरा निर्माण कर अष्टधातु का छतर मंदिर के गुंबद पर लगाया था। विशेषता
माता बाला सुंदरी के मंदिर का इतिहास पाडवों से जुडा है तो मंदिर की विशेषता यह है कि मंदिर के साथ पाडव काल से ही लगा बैर का पेड़। जो पूरे साल हर भरा रहने के साथ फल भी देता है और उसका फल किसी बिरले को ही मिलता हैं। माना जाता है कि बेर का फल माता का वरदान है। बेर का फल जोकि सही मायनों में मा की कृपा का आशीर्वाद माना जाता है।
किसी बिरले को ही मिलता है बेर का फल। कहा जाता है प्राचीन समय में यहा प्रसाद के रूप में माता बाला सुंदरी का आशीर्वाद के रुप में प्रसाद भी कहा जाता था। यहा मा के भक्तों की मनोकामना पूरी हो रही है।
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21 окт 2024