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Bhagavad Gita - Chapter 11 (Complete Sanskrit recitation) 

sacredverses
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Sanskrit recitation of the complete eleventh chapter of the Bhagavad Gita.
CHAPTER 11:
Vishwaroopa Darshana Yoga (55 verses): On Arjuna's request, Krishna displays his "universal form" (Viśvarūpa), a being facing every way and emitting the radiance of a thousand suns, containing all other beings and material in existence.
OVERVIEW:
The Bhagavad Gita is a 700-verse scripture that is part of the Hindu epic Mahabharata. This scripture contains a conversation between Pandava prince Arjuna and his guide Lord Krishna on a variety of theological and philosophical issues.
Faced with a fratricidal war, a despondent Arjuna turns to his charioteer Krishna for counsel on the battlefield. Krishna, through the course of the Gita, imparts to Arjuna wisdom, the path to devotion, and the doctrine of selfless action.
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21 сен 2024

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Комментарии : 54   
@birendrachhetri1164
@birendrachhetri1164 4 года назад
Jai Shri Krishna! Jai Shri Ram! Jai Srimad Bhaagavat Gita! Jai Param Kalyankari Amritmaya Gita! Aapki Jai ho! Please keep inspiring and enlightening the people of the world! Sanskrit Bhasa is divyam, saralam, maduram and pavitram. It is the language of God 🙏. Nothing in the world is greater than the message of Holy Gita. Jai Shri Krishna! 🙏🙏🙏
@renurai8723
@renurai8723 3 года назад
🔥🙏🔥 HARE KRISHNA 🔥🙏JAI AHREE KRISHNA🔥🔥🙏🔥🔥
@lekhadholakia3323
@lekhadholakia3323 3 года назад
so nice n sweet voice
@rameshchandradas65
@rameshchandradas65 7 лет назад
ong namha bhagabate basudebaya Jay Jagannath Swami Nayana pathagami vaba Tume Jay sreekrishnna
@karunsai
@karunsai 5 лет назад
Jai Sri Krishna Thank you so much of your beautifully sharing the excellent "Bhagavad Gita " Chapter 11 Gopika Jeevana Smaranam Govinda Govinda!
@nilkanthgamer6334
@nilkanthgamer6334 4 года назад
Very nice
@Dhanraj-wx9ji
@Dhanraj-wx9ji 7 лет назад
Hare Krishna 🙏
@MusicallySunny
@MusicallySunny 7 лет назад
Heartfelt thanks. Jai Shri Krishna!
@lekhadholakia3323
@lekhadholakia3323 3 года назад
v. helpful to learn
@madhumaniar1801
@madhumaniar1801 7 лет назад
Thank you very much for Bhagwat Gita chanting, all 18 adhyaya. V clear n peaceful. Helpful for non-sanskritists.
@sudhakarbhalekar3431
@sudhakarbhalekar3431 6 лет назад
very beautiful to listen
@mrinalkataria6851
@mrinalkataria6851 4 года назад
दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्‌ । सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम्‌ ॥ (११) भावार्थ : इस विश्वरूप में अनेकों मुँह, अनेकों आँखे, अनेकों आश्चर्यजनक दिव्य-आभूषणों से युक्त, अनेकों दिव्य-शस्त्रों को उठाये हुए, दिव्य-मालाऎँ, वस्त्र को धारण किये हुए, दिव्य गन्ध का अनुलेपन किये हुए, सभी प्रकार के आश्चर्यपूर्ण प्रकाश से युक्त, असीम और सभी दिशाओं में मुख किए हुए सर्वव्यापी परमेश्वर को अर्जुन ने देखा। (१०-११) दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता । यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः ॥ (१२) भावार्थ : यदि आकाश में एक हजार सूर्य एक साथ उदय हो तो उनसे उत्पन्न होने वाला वह प्रकाश भी उस सर्वव्यापी परमेश्वर के प्रकाश की शायद ही समानता कर सके। (१२) तत्रैकस्थं जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकधा । अपश्यद्देवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा ॥ (१३) भावार्थ : पाण्डुपुत्र अर्जुन ने उस समय अनेक प्रकार से अलग-अलग सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को सभी देवताओं के भगवान श्रीकृष्ण के उस शरीर में एक स्थान में स्थित देखा। (१३) ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनञ्जयः । प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत ॥ (१४) भावार्थ : तब आश्चर्यचकित, हर्ष से रोमांचित हुए शरीर से अर्जुन ने भगवान को सिर झुकाकर प्रणाम करके और हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हुए बोला। (१४) (अर्जुन द्वारा विश्वरूप की स्तुति करना) अर्जुन उवाच पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेषसङ्‍घान्‌ । ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थमृषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान्‌ ॥ (१५) भावार्थ : अर्जुन ने कहा - हे भगवान श्रीकृष्ण! मैं आपके शरीर में समस्त देवताओं को तथा अनेकों विशेष प्राणीयों को एक साथ देख रहा हूँ, और कमल के आसन पर स्थित ब्रह्मा जी को, शिव जी को, समस्त ऋषियों को और दिव्य सर्पों को भी देख रहा हूँ। (१५) अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रंपश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम्‌ । नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिंपश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप ॥ (१६) भावार्थ : हे विश्वेश्वर! मैं आपके शरीर में अनेकों हाथ, पेट, मुख और आँखें तथा चारों ओर से असंख्य रूपों को देख रहा हूँ, हे विश्वरूप! न तो मैं आपका अन्त, न मध्य और न आदि को ही देख पा रहा हूँ। (१६)
@mrinalkataria6851
@mrinalkataria6851 4 года назад
(चतुर्भुज रूप के दर्शन की दुर्लभता और अनन्य भक्ति द्वारा सुलभता) अर्जुन उवाच दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तव सौम्यं जनार्दन । इदानीमस्मि संवृत्तः सचेताः प्रकृतिं गतः ॥ (५१) भावार्थ : अर्जुन ने कहा - हे जनार्दन! आपके इस अत्यन्त सुन्दर मनुष्य रूप को देखकर अब मैं स्थिर चित्त हो गया हूँ और अपनी स्वाभाविक स्थिति को प्राप्त हो गया हूँ। (५१) श्रीभगवानुवाच सुदुर्दर्शमिदं रूपं दृष्टवानसि यन्मम । देवा अप्यस्य रूपस्य नित्यं दर्शनकाङ्‍क्षिणः ॥ (५२) भावार्थ : श्री भगवान ने कहा - मेरा जो चतुर्भज रूप तुमने देखा है, उसे देख पाना अत्यन्त दुर्लभ है देवता भी इस शाश्वत रूप के दर्शन की आकांक्षा करते रहते हैं। (५२) नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेज्यया । शक्य एवं विधो द्रष्टुं दृष्ट्वानसि मां यथा ॥ (५३) भावार्थ : मेरे इस चतुर्भुज रूप को जिसको तेरे द्वारा देखा गया है इस रूप को न वेदों के अध्यन से, न तपस्या से, न दान से और न यज्ञ से ही देखा जाना संभव है। (५३) भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन । ज्ञातुं द्रष्टुं च तत्वेन प्रवेष्टुं च परन्तप ॥ (५४) भावार्थ : हे परन्तप अर्जुन! केवल अनन्य भक्ति के द्वारा ही मेरा साक्षात दर्शन किया जा सकता है, वास्तविक स्वरूप को जाना जा सकता है और इसी विधि से मुझमें प्रवेश भी पाया जा सकता है। (५४) मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्तः सङ्‍गवर्जितः । निर्वैरः सर्वभूतेषु यः स मामेति पाण्डव ॥ (५५) भावार्थ : हे पाण्डुपुत्र! जो मनुष्य केवल मेरी शरण होकर मेरे ही लिए सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को करता है, मेरी भक्ति में स्थित रहता है, सभी कामनाओं से मुक्त रहता है और समस्त प्राणियों से मैत्रीभाव रखता है, वह मनुष्य निश्चित रूप से मुझे ही प्राप्त करता है। (५५) ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायांयोगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे विश्वरूपदर्शनयोगो नामैकादशोऽध्यायः॥ इस प्रकार उपनिषद, ब्रह्मविद्या तथा योगशास्त्र रूप श्रीमद् भगवद् गीता के श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद में विश्वरूप दर्शन-योग नाम का ग्यारहवाँ अध्याय संपूर्ण हुआ॥ ॥ हरि: ॐ तत् सत् ॥
@vydhyanathg5037
@vydhyanathg5037 6 лет назад
Hare Krishna🚩🕉️
@birendrachhetri1164
@birendrachhetri1164 4 года назад
Our humble obeisances for your great work, Swamiji! Thank you very much for inspiring and enlightening the world with The Sacred Work. Nothing is higher than the 700 verses of Holy Gita which is spoken by Bhagavan Shri Krishna himself. Aapki Jai ho!☀️☀️☀️🙏🙏🙏🌹🌹🌹
@gouribhat9837
@gouribhat9837 4 года назад
Good
@mrinalkataria6851
@mrinalkataria6851 4 года назад
मदनुग्रहाय परमं गुह्यमध्यात्मसञ्ज्ञितम्‌ । यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम ॥ (१) भावार्थ : अर्जुन ने कहा - मुझ पर कृपा करने के लिए आपने जो परम-गोपनीय अध्यात्मिक विषयक ज्ञान दिया है, उस उपदेश से मेरा यह मोह दूर हो गया है। (१) भवाप्ययौ हि भूतानां श्रुतौ विस्तरशो मया । त्वतः कमलपत्राक्ष माहात्म्यमपि चाव्ययम्‌ ॥ (२) भावार्थ : हे कमलनयन! मैंने आपसे समस्त सृष्टि की उत्पत्ति तथा प्रलय और आपकी अविनाशी महिमा का भी वर्णन विस्तार से सुना हैं। (२) एवमेतद्यथात्थ त्वमात्मानं परमेश्वर । द्रष्टुमिच्छामि ते रूपमैश्वरं पुरुषोत्तम ॥ (३) भावार्थ : हे परमेश्वर! इस प्रकार यह जैसा आप के द्वारा वर्णित आपका वास्तविक रूप है मैं वैसा ही देख रहा हूँ, किन्तु हे पुरुषोत्तम! मै आपके ऐश्वर्य-युक्त रूप को मैं प्रत्यक्ष दर्शन करना चाहता हूँ। (३) मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो । योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयात्मानमव्ययम्‌ ॥ (४) भावार्थ : हे प्रभु! यदि आप उचित मानते हैं कि मैं आपके उस रूप को देखने में समर्थ हूँ, तब हे योगेश्वर! आप कृपा करके मुझे अपने उस अविनाशी विश्वरूप में दर्शन दीजिये। (४) (भगवान द्वारा विश्वरूप का वर्णन) श्रीभगवानुवाच पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः । नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च ॥ (५) भावार्थ : श्री भगवान ने कहा - हे पार्थ! अब तू मेरे सैकड़ों-हजारों अनेक प्रकार के अलौकिक रूपों को और अनेक प्रकार के रंगो वाली आकृतियों को भी देख। (५) पश्यादित्यान्वसून्रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा । बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याश्चर्याणि भारत ॥ (६) भावार्थ : हे भरतश्रेष्ठ अर्जुन! तू मुझमें अदिति के बारह पुत्रों को, आठों वसुओं को, ग्यारह रुद्रों को, दोनों अश्विनी कुमारों को, उनचासों मरुतगणों को और इसके पहले कभी किसी के द्वारा न देखे हुए उन अनेकों आश्चर्यजनक रूपों को भी देख। (६) इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम्‌ । मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टमिच्छसि ॥ (७) भावार्थ : हे अर्जुन! तू मेरे इस शरीर में एक स्थान में चर-अचर सृष्टि सहित सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को देख और अन्य कुछ भी तू देखना चाहता है उन्हे भी देख। (७) न तु मां शक्यसे द्रष्टमनेनैव स्वचक्षुषा । दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्य मे योगमैश्वरम्‌ ॥ (८) भावार्थ : किन्तु तू अपनी इन आँखो की दृष्टि से मेरे इस रूप को देखने में निश्चित रूप से समर्थ नहीं है, इसलिये मैं तुझे अलौकिक दृष्टि देता हूँ, जिससे तू मेरी इस ईश्वरीय योग-शक्ति को देख। (८) (संजय द्वारा धृतराष्ट्र के समक्ष विश्वरूप का वर्णन) संजय उवाच एवमुक्त्वा ततो राजन्महायोगेश्वरो हरिः । दर्शयामास पार्थाय परमं रूपमैश्वरम्‌ ॥ (९) भावार्थ : संजय ने कहा - हे राजन्‌! इस प्रकार कहकर परम-शक्तिशाली योगी भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को अपना परम ऐश्वर्य-युक्त अलौकिक विश्वरूप दिखलाया। (९) अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भुतदर्शनम्‌ । अनेकदिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम्‌ ॥ (१०)
@sudarsandas8173
@sudarsandas8173 5 лет назад
I am learning
@basantpareek6294
@basantpareek6294 8 лет назад
अति शोभनम्
@jenishasapkota4763
@jenishasapkota4763 6 лет назад
Basant Pareek भजन हिंदीभजन हिंदीभजन हिंदीभजन हिंदीभजन हिंदीभजन हिंदीभजन हिंदीभजन हिंदीभजन हिंदीBasant Pareek भजन हिंदीभजन हिंदीभजन हिंदीभजन हिंदीभजनBasant Pareek भजन हिंदीभजन हिंदीभजन हिंदीभजन हिंदीभजन हिंदीभजन हिंदीभजन हिंदीभजन हिंदीभजन हिंदी हिंदीभजन हिंदीभजन हिंदीभजन हिंदीभजन हिंदी
@akashrajmanu9735
@akashrajmanu9735 3 года назад
@@jenishasapkota4763 !
@mrinmay1395
@mrinmay1395 3 года назад
Plz don't add any advertisement in between.. Humble request 🙏
@onlyawareness4608
@onlyawareness4608 5 лет назад
Please show shloka alongside. thanks. very nice.
@भवशङ्करदेशिकमेशरणम्
They Are Having One More Playlist... With ShlokA.... Played On Screen Too
@gouribhat9837
@gouribhat9837 4 года назад
Super
@ashishsolar
@ashishsolar 3 года назад
🙏🏽🙏🏽🙏🏽
@manishbhushan945
@manishbhushan945 6 лет назад
too much music and interrupts the smooth flow of the verses
@dnyanuvikhe5806
@dnyanuvikhe5806 2 года назад
भाऊ तुम्ही सर्व अध्यायाचे पारायण पूर्ण व्हिडिओ टाकला तर छान होईल
@sumandokania9198
@sumandokania9198 9 лет назад
It is beautiful
@dipankarnaskar8840
@dipankarnaskar8840 5 лет назад
Very good,🙏🙏 but subtitle is essential for us..
@mrinalkataria6851
@mrinalkataria6851 4 года назад
अर्जुन उवाच स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च । रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्‍घा: ॥ (३६) भावार्थ : अर्जुन ने कहा - हे अन्तर्यामी प्रभु! यह उचित ही है कि आपके नाम के कीर्तन से सम्पूर्ण संसार अत्यन्त हर्षित होकर आपके प्रति अनुरक्त हो रहा है तथा आसुरी स्वभाव के प्राणी आपके भय के कारण इधर-उधर भाग रहे हैं और सभी सिद्ध पुरुष आपको नमस्कार कर रहे हैं। (३६) कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन्‌ गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे । अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत्‌ ॥ (३७) भावार्थ : हे महात्मा! यह सभी श्रेष्ठजन आपको नमस्कार क्यों न करें क्योंकि आप ही ब्रह्मा को भी उत्पन्न करने वाले हैं, हे अनन्त! हे देवादिदेव! हे जगत के आश्रय! आप अविनाशी, समस्त कारणों के मूल कारण, और आप ही परमतत्व है। (३७) त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्‌ । वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ॥ (३८) भावार्थ : आप आदि देव सनातन पुरुष हैं, आप इस संसार के परम आश्रय हैं, आप जानने योग्य हैं तथा आप ही जानने वाले हैं, आप ही परम धाम हैं और आप के ही द्वारा यह संसार अनन्त रूपों में व्याप्त हैं। (३८) वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्‍क: प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च । नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ॥ (३९) भावार्थ : आप वायु, यम, अग्नि, वरुण, चन्द्रमा तथा सभी प्राणीयों के पिता ब्रह्मा भी है और आप ही ब्रह्मा के पिता भी हैं, आपको बारम्बार नमस्कार! आपको हजारों बार नमस्कार! नमस्कार हो!! फिर भी आपको बार-बार नमस्कार! करता हूँ। (३९) नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व । अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वंसर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः ॥ (४०) भावार्थ : हे असीम शक्तिमान! मैं आपको आगे से, पीछे से और सभी ओर से ही नमस्कार करता हूँ क्योंकि आप ही सब कुछ है, आप अनन्त पराक्रम के स्वामी है, आप ही से समस्त संसार व्याप्त हैं, अत: आप ही सब कुछ हैं। (४०) सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति । अजानता महिमानं तवेदंमया प्रमादात्प्रणयेन वापि ॥ (४१) यच्चावहासार्थमसत्कृतोऽसि विहारशय्यासनभोजनेषु । एकोऽथवाप्यच्युत तत्समक्षंतत्क्षामये त्वामहमप्रमेयम्‌ ॥ (४२) भावार्थ : आपको अपना मित्र मानकर मैंने हठपूर्वक आपको हे कृष्ण!, हे यादव! हे सखा! इस प्रकार आपकी महिमा को जाने बिना मूर्खतावश या प्रेमवश जो कुछ कहा है, हे अच्युत! यही नही हँसी-मजाक में आराम करते हुए, सोते हुए, वैठते हुए या भोजन करते हुए, कभी अकेले में या कभी मित्रों के सामने मैंने आपका जो अनादर किया हैं उन सभी अपराधों के लिये मैं क्षमा माँगता हूँ। (४१,४२) पितासि लोकस्य चराचरस्य त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान्‌ । न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिकः कुतोऽन्योलोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव ॥ (४३) भावार्थ : आप इस चल और अचल जगत के पिता और आप ही इस जगत में पूज्यनीय आध्यात्मिक गुरु हैं, हे अचिन्त्य शक्ति वाले प्रभु! तीनों लोकों में अन्य न तो कोई आपके समान हो सकता हैं और न ही कोई आपसे बढकर हो सकता है। (४३) तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायंप्रसादये त्वामहमीशमीड्यम्‌ । पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढुम्‌ ॥ (४४) भावार्थ : अत: मैं समस्त जीवों के पूज्यनीय भगवान के चरणों में गिरकर साष्टाँग प्रणाम करके आपकी कृपा के लिए प्रार्थना करता हूँ, हे मेरे प्रभु! जिस प्रकार पिता अपने पुत्र के अपराधों को, मित्र अपने मित्र के अपराधों को और प्रेमी अपनी प्रिया के अपराधों को सहन कर लेता हैं उसी प्रकार आप मेरे अपराधों को सहन करने की कृपा करें। (४४) (अर्जुन द्वारा चतुर्भुज रूप के लिए प्रार्थना) अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा भयेन च प्रव्यथितं मनो मे । तदेव मे दर्शय देवरूपंप्रसीद देवेश जगन्निवास ॥ (४५) भावार्थ : पहले कभी न देखे गये आपके इस रूप को देखकर मैं हर्षित हो रहा हूँ और साथ ही मेरा मन भय के कारण विचलित भी हो रहा है, इसलिए हे देवताओं के स्वामी! हे जगत के आश्रय! आप मुझ पर प्रसन्न होकर अपने पुरूषोत्तम रूप को मुझे दिखलाइये। (४५) किरीटिनं गदिनं चक्रहस्तमिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव । तेनैव रूपेण चतुर्भुजेनसहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते ॥ (४६) भावार्थ : हे हजारों भुजाओं वाले विराट स्वरूप भगवान! मैं आपके मुकुट धारण किए हुए और हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म लिए रूप का दर्शन करना चाहता हूँ, कृपा करके आप चतुर्भुज रूप में प्रकट हों। (४६)
@rukminikrishna8162
@rukminikrishna8162 6 лет назад
It would be very good if there was lyrics as usual on 11 and 18 Chapter as well very good
@rkagrawal8553
@rkagrawal8553 8 лет назад
beautiful recitation
@suchitakrishnaprasad281
@suchitakrishnaprasad281 3 года назад
Terrible to have an ad in the middle
@jaiprakashyadav6916
@jaiprakashyadav6916 4 года назад
Jay Radha Madhav
@nishutripathiltp
@nishutripathiltp 6 лет назад
18 वाँ अध्याय संपूर्ण नही है कृपया संपूर्ण अध्याय डालने की कृपा करें। जय श्री हरि
@cloud_game_yt
@cloud_game_yt 6 лет назад
Rajveer
@भवशङ्करदेशिकमेशरणम्
पहला भी नहीं है पूरा ... 🙏
@rajivrastogi2942
@rajivrastogi2942 7 лет назад
helped me so much....
@ranvirbazaz199
@ranvirbazaz199 6 лет назад
From Its chapter to 10, it is o k.,but from 11 to 18 it should be written too
@aloksharma3619
@aloksharma3619 8 лет назад
very beautifull
@amritashv.6021
@amritashv.6021 5 лет назад
12:22
@akashrajmanu9735
@akashrajmanu9735 3 года назад
0
@anirudhmaharaj9609
@anirudhmaharaj9609 9 лет назад
The Raag sung from verses 1-14 are incorrect. The Raag from Vs 15- 50 are authentic but introducing and quoting the speaker eg. Arjuna uvacha, Makes tremendous noise and brakes the flow of devotion. In several cases his pronunciations are incorrect.
@devanitlakha1451
@devanitlakha1451 Год назад
Raag used in first 14 shlokas is authentic Anushtup chandah which is for shlokas of 32 syllables. Later one is ISKCON temple tune..
@oklol3080
@oklol3080 5 лет назад
natishobhanam
@sudarsandas8173
@sudarsandas8173 5 лет назад
Easy peasy lemon sqeeshy 😜😜
@nagendrapathak1265
@nagendrapathak1265 6 лет назад
Llikha hua bhi aana chahiye
@cloud_game_yt
@cloud_game_yt 6 лет назад
Rajveer
@КЕНГЙАН
@КЕНГЙАН 5 лет назад
Аллах Акбар !
Далее
Vishnu Sahasranamam Ms. Subbulakshmi
31:27
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HA-HA-HA 👊  #countryball
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Chapter 11 | Gita Chanting | Swami Brahmananda
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Powerful Vishnu Sahasranamam by ms subbalakshmi
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