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मुंशी प्रेमचंद की कहानियां सुनना मानो एक भूले बिसरे बचपन की कटी पतंग को पकड़ना।पतंग की झिलमिल कतरनें चमकती सफेद रोशनी में सतरंगी होती जाती हैं, कहानी आगे बढ़ती जाती है। बचपन सारी मुंडेरों टापता, सड़कें छतें फांदता, उस अरमानों जड़ी के पीछे बेलौस दौड़ता है, और दौड़ते दौड़ते पहुंच जाता है कभी स्कूल की हिंदी क्लास में, कभी कॉलेज की थीसिस में, तो कभी गर्मी की छुट्टियों में पढ़ी गई अनगिनत किताबों में। चारों तरफ मुंशी जी की कहानियां बिखरी मिलती है।
प्रेमचंद की कालजई कलम नें जहां नमक का दरोगा और बूढ़ी काकी जैसी हृदय विदारक रचनाएं लिखी, तो वहीं दो बैलों की कथा, निमंत्रण आदि जैसी दिल को गुदगुदाने वाली भी कहानियां उन्हीं की देन हैं। ऐसी ही एक हल्की फुल्की गुदगुदाहट से भरी कहानी है दरोगा जी। दरोगा जी का ठाठ बाट एक तरफ और उनका पुराना इश्क़ दूसरी तरफ़! और इसी जंजाल में फंसे उलझे दरोगा जी!
सुनियेगा ज़रूर!
4 янв 2020