इंदौर. सिरपुर तालाब के बीच बनी 300 साल पुरानी हजरत दावल शाह वली की मजार तक जायरीनों को
आठ माह नाव में जाना पड़ता है। वहां के सेवक रोज नाव से जाकर खिदमत करने से
साथ लोबान की धूप देते हैं। इसमें एक दिन भी गैप नहीं होती,
चाहे बारिश हो या कोई और मौसम। सिर्फ गर्मी में पैदल जाने का रास्ता मिलता है।
आठ माह नाव से जाकर जायरीन करते हैं हजरत दावल शाह वली की खिदमत।
500 एकड़ तालाब के बीच बनी है मजार
दरगाह के सदर सादिक पटेल ने बताया, वैसे तो गुजरात में हजरत दावल शाह वली की मुख्य मजार है।
वे कुछ समय के लिए इस स्थान पर आकर ठहरे थे। तब सिरपुर तालाब के स्थान पर ग्राम बांक था।
होलकर राजा ने जनहित में तालाब के लिए जमीन लेकर बांक को दूसरी जगह बसाया।
यहां सरकार का छल्ला है। मजार की सेवा मुजावर छीतू बाबा करते हैं।
उनके रुकने के लिए भी मजार के पास व्यवस्था है। ५०० एकड़ तालाब के बीच बनी मजार के
आसपास लगभग ४ एकड़ का टीला है। यहां बगीचा बना है। मजार को छूकर पानी वापस उतर जाता है।
पाल पर भी बनाया टीला
जो जायरीन मजार तक नहीं जा पाते उनके लिए पाल पर भी टीला बनाया है।
जायरीन वहां चादर व फूल चढ़ाकर सेवा करने आते हैं। रविवार और गुरुवार को ज्यादा भीड़ होती है।
जून में उर्स भी मनाया जाता है। मान्यता है कि इस मजार का रुतबा अलग ही है।
यहां जायरीनों की मुराद पूरी होती है।लोबान से हमेशा महकता है मजार
सिरपुर तालाब के बीच बनी 300 साल पुरानी हजरत दावल शाह वली की मजार पर
हर दिन चढऩे वाले लोबान से पूरा मजार क्षेत्र लोबान की खुशबू से महक उठता है।
जायरीन यहां बाबा से मन्नतें मांगते हैं। दरगाह के सदर सादिक पटेल का कहना है,
हजरत दावल शाह वली की मजार की गई दुआ कबूल होती है।
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21 сен 2024