उत्तर भारत का प्रसिद्ध बाबा वडभाग सिंह की तपोस्थली मैड़ी ऊना से 42 किलोमीटर दूर है। इसकी गणना उत्तर भारत के प्रसिद्ध तीर्थस्थलों के रुप में की जाती है। यह पवित्र स्थान सोढी संत बाबा वड़भाग सिंह (1716-1762) की तपोस्थली है। 300 वर्ष पूर्व बाबा राम सिंह के सुपुत्र संत बाबा वड़भाग सिंह करतारपुर पंजाब से आकर यहां बसे थे। कहा जाता है कि अहमद शाह अब्दाली के तेहरवें हमले से क्षुब्ध् होकर बाबा जी को मजबूरन करतारपुर छोड़कर पहाड़ों की ओर आना पड़ा था। जब बाबा जी दर्शनी खड्ड के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा कि अब्दाली की अफगान फौजें उनका पीछा करते हुए उनके काफी नजदीक आ गई हैं। इस पर बाबा जी ने आध्यात्मिक शक्ति से खड्ड में जबरदस्त बाढ़ ला दी और अफगान फौज के अध्कितर सिपाही इसमें बह गए और कुछ जो बचे वे हार मानकर वापिस लौट गए। उसके बाद बाबा जी एक स्थान पर तपस्या में लीन हो गए।
कहा जाता है कि उस समय इस स्थान पर कोई बस्ती नहीं थी। एक प्रेत आत्मा का पूरे क्षेत्र में आंतक था। कोई भी इस क्षेत्र में प्रवेश करता उसे प्रेत आत्मा अपने कब्जे में कर लेती थी और उस व्यक्ति को तरह तरह की यातनाएं दी जाती थी। इस प्रेत आत्मा ने इलाके में कई लोगों को पागल, बीमार कर अपने वश में कर लिया था। जब बाबा जी तपस्या में लीन बैठे थे तो इस प्रेत आत्मा ने उन्हें भी अपने वश में करने के लिए यत्न करने शुरु कर दिए। लेकिन उसे सफलता नहीं मिल पाई। प्रेत आत्मा द्वारा बार-बार बाबा जी की तपस्या को भंग व अवरूध करने के परिणाम स्वरुप बाबा जी व प्रेत आत्मा में जोरदार लड़ाई शुरु हो गई। इस भंयकर लड़ाई में बाबा जी ने प्रेत आत्मा को चित कर दिया। इस आत्मा को पिंजरे में कैद कर दिया। बाबा जी ने प्रेत आत्मा को वश में कर उससे दीन दुखियों की मदद करने को कहा। किवदंती के अनुसार बाबा जी ने इसे प्रेत आत्माओं से ग्रस्त लोगों का इलाज करने का आदेश दिया और वे स्वयं फिर से तपस्या में लीन हो गए।
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15 окт 2024