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Dhubela Bundelkhand Chhatarpur Madhya Pradesh India II धुबेला बुंदेलखंड छतरपुर मध्य प्रदेश भारत 

Sandeep Sharma
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खजुराहो के मंदिर भारत की बेमिसाल स्थापत्य कला के जीवंत प्रमाण हैं। इनका मूल स्वरूप में बचे रहना भी किसी आश्चर्य से कम नहीं है। दिल्ली में सुलतानों-बादशाहों की 700 साल की हुकूमत के दौरान देश भर में हज़ारों ऐसे प्रमाण मिट्‌टी में मिलाए गए। मगर बुंदेलखंड का यह हिस्सा बचा रहा। शायद नियति ने भारत की काबिलियत के कुछ सबूत समय के आगोश में महफूज़ कर लिए। बुंदेलखंड का पुराना नाम जुझौती है और यह वह इलाका है, जो कभी सुलतानों-बादशाहों के सामने नहीं झुका। यहाँ के वीरों ने अपना रसूख भी बनाकर रखा। महाराजा छत्रसाल उसी वीरता की मिसाल हैं। वे मुगल बादशाह औरंगज़ेब के समकालीन हैं। उन्होंने लंबी उम्र पाई थी। वे पुणे में शिवाजी से मिले थे और बाजीराव पेशवा को अपनी बेटी मस्तानी दी थी। मध्य प्रदेश के छतरपुर शहर के पास महाराज छत्रसाल की समाधि का निर्माण खुद बाजीराव पेशवा ने कराया था।
छतरपुर से करीब 20 किलोमीटर के फासले पर धुबेला नाम की जगह है, जो मऊ सहानियां गाँव के पास है। किसी समय यहाँ महाराज छत्रसाल की राजधानी रही। हरे-भरे पहाड़ों में दूर-दूर तक छत्रसाल और उनके राजवंश के बनवाए कई किले, महल, सभामंडल, मंदिर, समाधि और तालाब हैं। सबसे पहले धुबेला संग्रहालय, जो छत्रसाल महाराज के दरबार की इमारत में स्थापित किया गया। इसका उद्घाटन पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने किया था। यहाँ आसपास के इलाके से इकट्‌ठा की गई मूर्तियों और शिलालेखों के अलावा छत्रसाल महाराज के उपयोग का राजसी सामान भी देखा जा सकता है। छत्रसाल का जन्म 1649 में हुआ था। दिल्ली-आगरा में तब शाहजहां की हुकूमत थी। छत्रसाल भी शुरू में मुगलों की नौकरी में थे और दक्षिण के ऐसे ही एक अभियान में 1671 में उनकी मुलाकात पुणे में छत्रपति शिवाजी से हुई। अंदाजा लगाइए-तब छत्रपति की उम्र 41 साल थी और छत्रसाल 22 साल के। छत्रपति शिवाजी तब तक पूरे देश में अपनी ताकतवर मौजूदगी दिखा चुके थे। शिवाजी से एक भेंट ने एक ऐसा गौरवशाली इतिहास रचा कि बीच हिंदुस्तान में होने के बावजूद बुंदेलखंड कभी दिल्ली के बेरहम बादशाहों के सामने कभी झुका नहीं।
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13 окт 2024

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