परिचय
विवाह को जीवन के लिए पवित्र गठबंधन माना जाता है, यह केवल दो व्यक्तियों के बीच एक संघ नहीं है, लेकिन दो परिवारों के बीच है। हिन्दू धर्म मे एक बार विवाह हो जेने के बाद पति व पत्नी अलग नही हो सकते । बहरहाल, यह दो लोगों के बीच एक संबंध है और चूंकि कोई इंसान सही नहीं है इसलिए यह बेहद संभव है कि दो लोग एक दूसरे के साथ संगत नहीं महसूस करते हैं ताकि पूरे जीवन में एक साथ रह सकें। इसलिए, हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 द्वारा विवाह विच्छेद का प्रावधान जोड़ा गया। यह देखा जा सकता है कि तलाक के मामलों में भारत जैसे देशों में भी तेजी से बढ़ रहे हैं जहां विवाह स्वर्ग में किया जाता है। इन परिस्थितियों में, यह हमेशा बेहतर होता है कि जोड़ी परस्पर सहमति से तलाक लें। जिससे आगे के विवाद, समय और धन की बचत हो।
हिन्दू विवाह अधिनियम में तलाक दो तरह से लिया जा सकता है।
(1) किसी एक पक्षकार द्वार विवाह विच्छेद का प्रार्थना पत्र पेश कर।
इसके लिए प्रावधान हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 में किया गया है।
(2) आपसी सहमति से तलाक :-
पहले आपसी सहमति से वूवन विच्छेद का कोई प्रावधान नही था। परंतु परिस्तियों के कारण 1976 में संशोधन द्वारा इसे हिन्दू विवाह अधिनियम में धारा 13 (ख) के रूप में जगह दी गयी।
कहाँ प्रस्तुत होगी:-
धारा 19 के अनुसार जिला न्यायालय में या जहा कुटुम्ब न्यायालय ( family court) है तो उस न्यायालय में जिसकी स्थानीय अधिकारिता में :-
(1) वह विवाह संपन्न हुआ हो।
(2) जहां दोनों पक्षकार अंतिम बार एक साथ रहे हों।
(3) जहां पत्नी निवास करती हो
आपसी सहमति से तलाक की आवश्यकताएं
हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत तलाक लेने के लिए जिन आवश्यकताओं को पूरा किया जाना है, वे इस प्रकार हैं:
(1) पक्षकार कम से कम एक वर्ष की अवधि से अलग रह रहे हैं
(2) वे एक साथ नही रह सके हैं, और
(3) उन्होंने पारस्परिक रूप से सहमत है कि विवाह विच्छेद कर लिया जाना चाहिए।
पहली आवश्यकता यह है कि तलाक की याचिका दायर करने से पहले पक्षकारों को कम से कम एक वर्ष की अवधि के लिए अलग से रहना चाहिए। यह समझना आवश्यक है कि शब्द "अलग रहना" का क्या मतलब है।
विभिन्न मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा है कि अभिव्यक्ति "अलग रह रहे हैं" का अर्थ जरूरी नहीं है कि शारीरिक जुदाई या अलग-अलग रहना। इसका अर्थ है कि पति पत्नी के बीच कोई वैवाहिक दायित्व नहीं है और वे एक साथ बतौर पति और पत्नी नहीं रह रहे हैं। चाहे वे एक ही छत के नीचे राह रहे हो।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति "एक साथ नहीं रह सके है" का अर्थ है कि टूटे विवाह की अवधारणा इतनी अधिक है कि किसी भी सामंजस्य की कोई संभावना नहीं है। पक्षकारों को इस तथ्य को स्थापित करने की जरूरत नहीं है कि वे एक साथ रहने में सक्षम नहीं हैं। तथ्य यह है कि उन्होंने परस्पर सहमति से एक याचिका पेश की है इस तथ्य का संकेत है कि वे एक साथ नहीं रह पाए हैं। हालांकि, यह तय करना बेहद जरूरी है कि दोनों पक्षों द्वारा दी जाने वाली सहमति मुक्त है और किसी भी प्रकार की बल, धोखाधड़ी या अनुचित प्रभाव से प्राप्त नहीं की गई है।
उपरोक्त दो आवश्यकताओं को संतोषजनक और पारस्परिक सहमति से तलाक के लिए एक संयुक्त याचिका दायर करने के बाद, पार्टियों को कम से कम छह महीने के लिए इंतजार करना चाहिए, जिन्हें आमतौर पर "शीतलन अवधि" कहा जाता है। यह अवधि पार्टियों को दी जाती है कि उनका निर्णय फिर से सोचें। इस अवधि के अंत के बाद, यदि दोनों पक्षकार या संयुक्त रूप से प्रारंभिक याचिका वापस नहीं ली गई है, तो दोनों पक्षकार संयुक्त दाखिल करने की प्रारंभिक तिथि से 18 महीने की निर्धारित अवधि के भीतर कोर्ट द्वारा तलाक की डिक्री पारित कर दी जाएगी।
क्या 6 माह की अवधि आज्ञापक है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस संबमध मे civil appeal no. 11158/2017 में दिनांक 12 सितंबर 2017 को यह मत दिया कि यह 6 माह की अवधि आज्ञापक न होकर निदेशात्मक है।न्यायालय इसे कम कर सकती है।
अपील
न्यायलय द्वारा पारित विवाह विच्छेद की डिक्री के विरुद्ध अपील हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 28 के अनुसार क्षेत्राधिकार के उच्च न्यायालय में होगी।
धारा 13 अंतर्गत एक पक्षकार द्वारा प्राथना पत्र पर तलाक के video के लिए लिंक पर जाएं :-
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21 окт 2024