वाराणसी में सबसे पहले गंगा आरती की शुरुआत साल 1991 में वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर हुई थी. तब से ही लगातार शाम के समय सूर्यआस्त के बाद आरती की जाती है
गंगा आरती केवल एक दृश्य नहीं बल्कि एक गहन आध्यात्मिक समारोह है। यह पवित्र नदी गंगा के प्रति श्रद्धा की अभिव्यक्ति है, माना जाता है कि यह पापों को धोती है और आध्यात्मिक शुद्धि प्रदान करती है। समारोह की भक्ति और ऊर्जा इसे वाराणसी के आध्यात्मिक सार के साथ गहरा संबंध चाहने वालों के लिए एक अनिवार्य कार्यक्रम बनाती है।
नमामि गंगे तव पाद पंकजम्,
सुरासुरैः वंदित दिव्य रूपम् ।
भुक्तिं च मुक्तिं च ददासि नित्यं,
भावानुसारेण सदा नराणाम् ॥
भक्तों बनारस की चर्चा, बनारस में प्रवाह्मान गंगा की चर्चा और गंगा के घाटों की चर्चा तबतक अपूर्ण है जबतक इनके साथ गंगा जी की आरती की चर्चा न हो। जी हाँ आजकल गंगा बनारस में होनेवाली गंगा जी की आरती देश ही नहीं समूचे विश्व के लोगों के आकर्षण और कौतूहल का केंद्र बनी है। आइये आज हम अपने लोकप्रिय कार्यक्रम दर्शन के माध्यम से आपको बनारस में होनेवाली गंगा आरती का दर्शन करवाने जा रहे हैं.
भक्तों वाराणसी में होनेवाली इस गंगा आरती के मनोरम दृश्य को देखकर न केवल हमारे और आपके मन में बल्कि हर श्रद्धालु और हर पर्यटक के मन में यही भाव आता है कि इस भव्य दिव्य और विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती का शुभारम्भ कब हुआ? कैसे हुआ? और किसके द्वारा हुआ?
गंगा आरती का श्रीगणेश:
भक्तों सर्वप्रथम काशी में गंगा जी की आरती, भगवान् शिव के स्वागत में ब्रह्माजी द्वारा निर्मित तथा काशी विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित दशाश्वमेध घाट पर वर्ष 1991 में गंगा दशहरा के शुभ अवसर पर हुई थी। इस आरती का श्रीगणेश, पंडित सतेंद्र मिश्र यानि मुंडन महाराज ने किया था। बनारस में वर्ष 1997 तक यह गंगा आरती देव दीपावली और गंगा दशहरा पर ही होती थी। वर्ष 1997 में बाबू महाराज के नाम से प्रसिद्ध वाराणसी के पं। किशोरी रमण दुबे हरिद्वार और ऋषिकेश की यात्रा पर गये। उन्होंने वहां की गंगा आरती का भव्य रूप देखा तो उनके मन में यह विचार आया कि “वाराणसी में भी इसी भव्यता और दिव्यता के साथ गंगा जी दैनिक आरती होनी चाहिए”। और वहीं उन्होंने बनारस में दशाश्वमेध घाट पर दैनिक गंगा आरती करने का संकल्प लिया। बनारस लौटने के बाद बाबू महाराज ने गंगोत्री सेवा समिति स्थापना की। और 14 नवम्बर वर्ष 1997 के दिन से वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर गंगा जी की दैनिक आरती का शुभारम्भ हुआ। जो देखते ही देखते कुछ ही वर्षों में अत्यंत भव्य और दिव्य रूप में आ गया।
आरती शब्द की उत्पत्ति और उसका तात्पर्य:
भक्तों भाषाविदों और व्याकरण शास्त्रियों के अनुसार “आरती” शब्द की उत्पत्ति ""अर्ति"" और “आर्त” शब्द से हुई। जहाँ अर्ति शब्द का अर्थ होता है दुख-पाप तो वहीं आर्त शब्द का अर्थ होता है दुखी-पापी। इसीलिये “त्रिषष्ठी श्लाका पुरूष चरित्र के कलिकाल सर्वज्ञ” आरती को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि “अर्ति अर्थात दुख, पाप” को उतारने (नष्ट करने) की प्रक्रिया आरती कहलाती है। दूसरे शब्दों में किसी दुखी या पापी व्यक्ति द्वारा ईश्वर को पुकारने की क्रिया आरती है। अतः आरती का एक तात्पर्य हुआ आर्तनाद यानि दुखी या पापी की पुकार भी है। भक्तों, कुछ विद्वानों का मत है कि “आरती” शब्द का प्राकट्य “आरात्रिक” शब्द से बना है। जिसका संधि विच्छेद हुआ (आ = आरंभ, मर्यादा) +(रात्रि + रात की) + ( इक = होनेवाली, की जानेवाली)। अर्थात् रात के प्रारंभ में या संध्याकाल में की जाने वाली नीरांजन प्रक्रिया आरात्रिक कहलाती है। कालांतर आरात्रिक का अपभ्रंश आरतिय और आरतिय का अपभ्रंश आरती हो गया है।
आरती का महत्व:
हो स्कंद पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु ने कहा है कि जो व्यक्ति घी के दीपक से आरती करता है वो कोटि कल्पों तक स्वर्गलोक में निवास करता है और जो व्यक्ति कपूर से आरती करता है तो उसे अनंत में प्रवेश मिलता है। जो व्यक्ति आरती के दर्शन करता है, उसे परमपद की प्राप्ति होती है.
आसपास के पर्यटन स्थल:
भक्तों अगर आप गंगा आरती के दर्शन हेतु काशी जाने का प्लान बना रहे है और दर्शन पूजन के अलावा पर्यटन में भी रुचि रखते हैं तो काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, दशाश्वमेध घाट, असीघाट, मणिकर्णिका घाट, दुर्गा कुंड मंदिर, चुनार का किला, रामनगर किला, सारनाथ, लोलार्क कुंड, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, जैन मंदिर, गोडोवालिया मार्केट, जंतर-मंतर, भारत माता मंदिर, संकट मोचन मंदिर, ललिता गौरी मंदिर, नेपाली मंदिर, कालभैरव मंदिर, डंडी राज गणेश मंदिर, अन्नपूर्णा माता मंदिर, साक्षी गणेश मंदिर, तुलसी मानस मंदिर, महामृत्युंजय मंदिर और गंगा जी के घाट अन्य लोकप्रिय दर्शनीय स्थल है जहां आप नेपाली मंदिर की यात्रा के दौरान जाकर पर्यटन का आनंद ले सकते हैं।
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15 окт 2024