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Hari Main Jaiso Taiso Tero || हरी मैं जैसो तैसो तेरो || विनोद अग्रवाल जी || गोविन्द की गली 

GOVIND KI GALI
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'निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र न भावा'
यानी जो मनुष्य निर्मल मन का होता है वही मुझे पाता है। मुझे कपट और छल छिद्र नहीं सुहाते इसलिए पहले मन शुद्ध होना चाहिए, क्योंकि मन ही मूलाधार है और उसके ऊपर है चरित्र। ... उन्होंने कहा कि चरित्र तभी शुद्ध होगा जब मन शुद्ध हो।
जैसे कोई रोगी किसी चिकित्सक के पास तो चला जाये परन्तु वो चिकित्सक को अपने रोगों के बारे में पुरा न बताए तो क्या वो चिकित्सक उस रोगी की पूर्ण चिकित्सा कर पायेगा? अपने रोगों को छिपाना ही उसका कपट है। रोगों को बता दिया परन्तु उस चिकित्सक द्वारा दी हुई दवा न खाना क्या उसको स्वस्थ कर देगा अर्थात उस रोगी का दवा न खाना छल है। अब मान लो वो रोगी रोग भी बता दे, दवा भी खा ले मगर उस चिकित्सक द्वारा बताए गए परहेज़ व् नियम का पालन न करे तो भी वो रोगी पूर्णत: स्वस्थता प्राप्त करने में असमर्थ ही होगा। यही कार्य उसका छिद्र है। इसलिए संतो के श्रीमुख से बारम्बार यही कहा गया कि ऐ जीव अगर तुझे उस कृपामय , करुणामय का आश्रय प्राप्त करना है तो कपट, छल, छिद्र को त्याग कर सरलता को ग्रहण कर। इसी भाव की और अधिक तार्तिक व् मार्मिक व्याख्या श्रद्धेय विनोद अग्रवाल जी की मधुर वाणी में इस भाव के द्वारा
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‪@GOVINDKIGALI‬ #Govind_Ki_Gali #हरी_मैं_जैसो_तैसो_तेरो #व्याख्या_सहित

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14 окт 2024

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ОНА БЫЛА ПЕВИЦЕЙ🤪
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