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सीकर से 16 किलोमीटर दूर
जयपुर से हर्ष पर्वत की दुरी 121 किलोमीटर
हर्ष पर्वत की ऊंचाई लगभग 3100 फीट है।
यह प्रदेश में माउंट आबू के बाद सबसे ऊंचा पर्वत माना जाता है।
इस जगह या इस पर्वत प्रसिद्धि अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि हर्ष पर्वत पर वर्ष 1834 में सार्जेन्ट डीन नामक यात्री आए। उन्होंने कोलकाता में हर्ष पर्वत पर पत्र वाचन किया तो लोग दंग रह गए।
हर्ष पर्वत पर जाने के लिए एक पैदल रास्ते (पगडंडी) का निर्माण वर्ष 1050 में तत्कालीन राजा ने कराया था।
हर्ष पर्वत पर पवन चक्कियां लगाई गई हैं। कई फीट ऊंचाई पर लगे पंखे वायु वेग से घूमकर विद्युत का उत्पादन करते हैं। जिसे विद्युत निगम विभिन्न गांव-ढाणियों में सप्लाई करता है।
बीकानेर से जयपुर के बीच हर्ष पर्वत एकमात्र हिल स्टेशन है।
सीकर. हर्ष पर्वत पर लोग अक्सर जाते हैं। पर्यटन के लुत्फ के साथ मंदिरों में शीश भी नवाते हैं। लेकिन, शायद ही किसी को मालूम हो कि इस पहाड़ी का नाम हर्ष व यहां के शिव मंदिर का नाम हर्षनाथ क्यों पड़ा।हर्ष पहाड़ी व भगवान शिव के हर्षनाथ नामकरण के पीछे पौराणिक कथा जुड़ी है। शिवपुराण में जिक्र है कि त्रिपुर राक्षस ने इंद्र व अन्य देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया था। शिलालेख के अनुसार तब देवताओं ने इसी पहाड़ी पर शरण ली थी। इसके बाद जब भगवान शिव ने त्रिपुर राक्षस का अंत किया तो प्रसन्न हुए देवताओं ने इसी पहाड़ी पर भगवान शिव की स्तुति की थी। चूंकि देवताओं ने बहुत हर्ष के साथ यह स्तुति की थी। ऐसे में इस पहाड़ी का नाम हर्ष व यहां स्थापित शिव हर्षनाथ कहलाए।प्रागैतिहासिक काल का शिव मंदिर संवत एक हजार में अजमेर सांभर के चौहान वंश के शासक सिंहराज के क्षेत्राधिकार में था। जय हर्षनाथ- जय जीण भवानी पुस्तक के लेखक महावीर पुरोहित लिखते हैं कि इस काल में रानोली का नाम रणपल्लिका था। यहां के एक ब्राह्मण सुहास्तु रोजाना पैदल चलकर इस पर्वत पर शिव आराधना किया करते थे। इन्हीं सुहास्तु के कहने पर राजा सिंहराज से हर्ष पर हर्षनाथ मंदिर निर्माण व वहां तक पहुंचने के लिए सुगम रास्ते की मांग की। इस पर महाराज सिंहराज ने विक्रम संवत 1018 (973ई.) में हर्षनाथ मंदिर की नींव रखी और पहाड़ की गोद में एक नगर बसाया। जिसका नाम हर्षा नगरी रखा गया। यही आज हर्ष गांव कहलाता है .
इतिहासकारों का कहना है कि प्राचीन शिव मंदिर पर एक विशाल दीपक जलता था। जिसे जंजीरों व चरखी के जरिये ऊपर चढ़ाया जाता था। इस दीपक का प्रकाश सैंकड़ों किलोमीटर दूर से देखा जा सकता था। इसी प्रकाश को औरंगजेब ने देखा था। जिसने खंडेला अभियान के दौरान संवत 1739 में इस पर आक्रमण कर खंडित कर दिया था।हर्ष की मूर्तियों का महत्व देश- विदेश के कई संग्रहालयों में इनके संगहण से भी समझा जा सकता है। सीकर के श्रीहरदयाल म्यूजियम के अलावा दिल्ली के राजपूताना संग्रहालय, अमेरिका के क्लीव लैण्ड ऑफ आर्ट तथा नेल्सन एटकिन्स गैलेरी तथा फिलेडोल्फिया म्यूजियम ऑफ आर्ट पेरिस के रोवर्ट रूसो के निजी संग्रह में में हर्ष की मूर्तियां है।
लिंगोद्भव मूर्ति अजमेर के संग्रहालय में है। यहां के कसौटी पत्थर की मूर्ति विदेशी ले गए।
औरंगजेब ने तत्कालीन चौहान शासकों की ओर से बनाए गए हर्षनाथ शिवजी के मंदिर को खंडित किया था। यहां की सब प्रतिमाओं को क्षतिग्रस्त कर दिया था। इन दुर्लभ और 10वीं शताब्दी की प्रतिमाओं को पुरातत्व विभाग ने संरक्षित कर इन्हें सीकर के राजकुमार हरदयाल सिंह राजकीय संग्रहालय में रखा है। शेखावाटी का महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल हर्ष पर्वत अभी भैरव पूजा व शिव मंदर के साथ ही पर्यटन के लिए भी प्रसिद्ध है।लोक मान्यता के अनुसार एक बार मुगलों के बादशाह औरंगजेब ने जीण माता और भैरो के मंदिर को तोडऩे के लिए अपने सैनिकों को भेजा था. तब लोग जीण माता की प्रार्थना करने लगे और जीण माता ने अपना चमत्कार दिखाया. आक्रमणकारी सैनिकों पर मधुमक्खियों ने हमला बोल दिया और सैनिकों को उन्हीं पैरों से वापस लौटना पड़ा. मुगल सेना की इस हालत के बाद ही औरंगजेब भी गंभीर रूप से बीमार हो गया. और मंदिरों पर हमले की अपने करतूत पर अफसोस जताते हुए माफी मांगने जीण मंदिर पहुंचा. यहां मांफी मांगी और माता को अखंड दीपक के लिए हर महीने सवा मण तेल भेंट करने का वचन दिया. इसके बाद से औरंगजेब की तबीयत भी ठीक होने लगी थी.हर्ष मंदिर में लिंगोद्भव की मूर्ति भी प्रतिष्ठित की गई थी। जो विश्व की एकमात्र मूर्ति थी। जो अब अजमेर के संग्रहालय में स्थित है। वहीं, हर्ष पर भगवान शिव की पंचमुखी मूर्ति अब भी विराजित है। जो भी दुर्लभतम मानी जाती है। संभवतया यह प्रदेश की एकमात्र व सबसे प्राचीन शिव प्रतिमा है। पुराणों में जिक्र है कि भगवान विष्णु के मनोहारी किशोर रूप को देखने के लिए भगवान शिव का यह रूप सामने आया था।
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15 сен 2024