कीर्ति काले जी,जय श्री राधे!आप की कविता का जवाब नहीं बहुत सुनता हूं और आनंद की अनुभूति करता हूं आप युगों-युगों तक सलामत रहे कविता पाठ में विश्व विजयी रहें।जय सियाराम।
एक शरीर में कितने दो हैं एक शरीर में कितने दो हैं? गिन के देखो कितने वो हैं? देखने वाली आँखें दो हैं उनके ऊपर भौहें दो हैं सूंघते हैं खुशबू जिनसे नाक तो इक है, नथुने दो हैं भाषाएँ हैं सैकड़ों लेकिन बोलने वाले होंठ तो दो हैं लाखों आवाज़ें हैं सुनते जिनसे सुनने वाले कान तो दो हैं कान भी दो, आंखें भी दो दाएं बाएं कंधे भी दो हैं दो बांहें, दो कुहनियां उनकी हाथ भी दो, अंगूठे भी तो दो हैं दो हाथों की दो हैं कलाइयाँ टाँगे दो हैं, घुटने दो हैं चलना, फिरना, उठना, बैठना दो पैरों के टखने दो हैं पैरों के नीचे दो तलवे हैं भागूं जिनसे एड़ियाँ दो हैं बंद हो तो मुट्ठी हो जाये खोलू गर हथेलियाँ दो हैं अरे, भूल गया था, मार तमाचा मेरे मुंह पे गाल भी दो हैं दोनों पहलू झांक के देखो झांकने के भी बगलें दो हैं कितने दो हैं फिर भी इक ही दिल है इक ही जाँ है एक ही आकाश एक ही सूरज इक जमीं औ इक हिन्दुस्तां है