यह होली त्यौहार सत्तयुग से मनाते आये है।होली हिरण्यकशिपु के बहन होलिका नाम से थी जिसको अग्निहोत्री का ब्रह्मा जी का वरदान था कि व अगनी मे संपाड़ो यानि स्नान कर सकती थी लेकिन उनको साथ मे यह शराफ भी था कि अगर अग्नि स्नान करते वक्त उन होलिका के कोई भी नर का स्पर्श हुआ तो जलकर भस्म हो जायेगी। वो ही शराफ होलिका दहण पर उनका नाम अमर हुआ।तथा प्रहृलाद की भक्ति के बल अगन संपाड़ो कर हरिकीर्तन बोलता आ गया । इसलिए होली दहण के समय पहलाद पंथी बाजरा की खीच बनाते है जो पहलाद जलने के अपसोस पर सोक की रस्म मनाते है, लेकिन सुबह पता चला कि होलिका जल भस्म हो ग्ई ओर पहलादी विष्णु गुण गाते आ रहे है।तभी सभी पहलाद पंथी खुशी मनाते है ।पाहाल लेकर अच्छा खाना बनाते है फिर खुशी के साथ खेल खेलते है।
21 сен 2024