Can we wear the japamala used for mantra japa as given by Guru, on our person (around our neck) when it is not being used for Japa? If yes, what are the precautions we need to take for its purity?
Namaskar Bharat ji, According to Dharmashastras, the japamalas to be worn and to be used for japa should be separate. It is better to keep the mala used for chanting in a small box, in the home temple.
dr.abhishek bundela नमस्कार अभिषेकजी,जपमाला का उपयाेग करते समय, माला का एक संपर्ण फेर होने पर मेरूमणी आता है । इस मेरूमणी को लांघना नहीं चाहिए । माला से नामजप दुबारा गिन्ने के लिए माला को उलटा घुमाए आैर माला के मणी अपनी आेर खींचते हुए गिने ।
+Ashish Sahu नमस्कार आशिषजी, रुद्राक्षको सिद्ध करना : ‘पहले सिद्धमंत्रका उच्चारण करते हुए रुद्राक्षपर पांचसे इकसठ बार पानी छिडककर, उसे किसी प्रतिष्ठित लिंगका (जिसकी प्राणप्रतिष्ठा की गई हो) स्पर्श करवाना चाहिए । ज्योतिर्लिंगके स्पर्श बिना रुद्राक्षमें विशेष शक्तिका संचार नहीं हो सकता; परंतु किसी विशेष अडचनके कारण ज्योतिर्लिंगका स्पर्श करवाना संभव न हो, तो प्रतिष्ठित लिंग (पिंडी अथवा अरघा) का स्पर्श करवाएं । फिर शुभ मुहूर्तपर (उदा. महाशिवरात्रि, अमृतसिद्धि इत्यादि) जिस मुखका रुद्राक्ष हो, उस मुखके विशिष्ट मंत्रका २१, ४२ अथवा १०२ बार उच्चारण कर, मृत्युंजय मंत्रसे अथवा अघोर मंत्रसे एक रुद्राभिषेक करें । इस क्रियाके उपरांत उस रुद्राक्षमें प्रत्यक्ष शिवतत्त्व अथवा मुखके अनुसार देवता (शक्ति) प्रतिष्ठापित होते हैं । इस रुद्राक्षको ‘सिद्ध रुद्राक्ष’ कहते हैं । रुद्राक्षसिद्धिको बनाए रखना : सिद्ध रुद्राक्ष धारण करनेके पश्चात उसकी सिद्धि बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है । इस हेतु निम्न नियमोंका पालन अवश्य करें । अ. भस्मधारण आ. शिवलिंगपूजन : शिवलिंगपूजन अथवा रुद्राक्षपूजन महत्त्वपूर्ण है । इ. शिवस्मरण : दिनमें दो बार सवेरे जागनेके पश्चात तथा रातको सोनेसे पूर्व शिवस्मरण करना चाहिए । ई. शुचित्व : सिद्ध किए गए रुद्राक्षोंको अन्य किसीका स्पर्श न होने दें । भूलसे यदि हो जाए, तो गोमूत्र अथवा तीर्थजलसे उस रुद्राक्षकी शुद्धि कर लेनी चाहिए । उ. निषिद्ध फदार्थ : रुद्राक्ष धारण करनेवाला मद्य, मांस, प्याज, लहसुन इत्यादि निषिद्ध फदार्थोंका सेवन न करे ।’ - गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी रुद्राक्षधारण विधि : सिद्ध रुद्राक्ष भी शुभ मुहूर्तपर ही धारण करने का विधान है । सिद्ध किए गए रुद्राक्षको धारण करनेसे पूर्व, भस्म लगाकर शिवमंत्र का उच्चारण करते हुए, मंत्रसिद्ध व्यक्ति संकल्प कर साधकके शरीरपर रुद्राक्ष बांधता है । तदुपरांत मंत्रसिद्ध व्यक्ति साधकको शिवमंत्रका जप करनेके लिए कहता है । रुद्राक्षको सोने, चांदी, तांबे अथवा ऊनके धागेमें पिरोकर धारण करें । उपरोक्त जानकारी सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘भगवान शिव (भाग २)’ से ली गर्इ है । रुद्राक्ष के विषय में अधिक जानने हेतु यह ग्रंथ आप आॅनलार्इन भी खरीद सकते है, भेट दें - sanatanshop.com/shop/hn/devta-upasana/483-bhagawan-shiv-bhag-2.html