कानपुर के लोग बकवास नहीं करते हैं कानपुर का यह शान है कानपुर का यह दादा कानपुर का ही नहीं यह पूरे कीर्तन जगत का दादा है आने वाले समय का तेज तर्रार शेर है कानपुर के लोग ज्ञान की बात करते
ज्यादा मुह चलाना चन्द्रभान जी की कीर्तन का जबाब नहीं हो सकता |"श्री रघवीर प्रताप ते सिंधु तरे पाषाण "ये तुलसीदास जी की कलम से निकला है | जहाँ नाम की महत्ता है वहाँ तुलसी ने नाम की महिमा गाई है, लेकिन यहाँ क्यों नहीं लिख दिया ?" राम के नाम प्रताप ते सिंधु तरे पाषान" सागर ने भी प्रताप शब्द का प्रयोग किया है -'प्रभु प्रताप 'मैं जाब सुखाई |उतरहिं कटकु न मोरि बड़ाई || और गौर फरमाइए- नाथ नील नल कपि दोउ भाई |लरिकाईं रिषि आसिख पाई || तिन्ह कें परस किएँ गिरि भारे |तरिहहिं जलधि ' प्रताप ' तुम्हारे ||