आया कहां से, जाना मुझे कितनी दूर है सोचा नहीं विषयों में, हम क्यों इतनी चूर है ! कल्याण यदि चाहो तो, आतम को जान लो अपने का और पराए का,अंतर पहचान लो! पग पग पर भूल भुलैया है, यह दुनिया की राहैं पथ भ्रष्ट बनाती मुझको, कंचन कामिनी की चाहें! 🙏🙏🙏
🙏🏻 👍🏻 ☝🏻 👌🏻 🙏🏻 'नहीं करूंगा' - इस "प्रण" में भी छुपा है "कर्ता" भाव, 'किया नहीं पर का अनादि से' - भाव "अकर्ता" भाव, 'करे न कोई द्रव्य अन्य का' - यह है "ज्ञाता" भाव, रहे 'नित्त्य निज-द्रव्य दृष्टि' सो - "ज्ञाता-दृष्टा" भाव ।
साधना जैन,,, मैं पर की कोई क्रिया करूं ऐसा मेरा स्वरूप ही नहीं है,, मैं सिर्फ ज्ञेयों का ज्ञाता दृष्टा हूं,जानना और देखना मेरा स्वभाव है,, स्व में रहकर पर सहज ही जानने में आता है,,, जो जानता है ज्ञान वह ज्ञान की ही रचना है,, जहां राग द्वेष का काम नहीं,,, खांसी और जुकाम नहीं,, मैं सिर्फ ज्ञानानंद स्वभावी हूं...🙏🙏🙏