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Nari Moksha ki Adhikari _ Women in Jainism / Gurudev, Dr HS Sinha 

The Quest
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1 апр 2024

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Комментарии : 25   
@dharmendramishra1348
@dharmendramishra1348 3 месяца назад
Pranam Guruji🙏
@jitendravishwakarma3682
@jitendravishwakarma3682 3 месяца назад
Jai gurudev ji 🙏 naman 🙏 ♥️
@NandiniBorkar-vq8wy
@NandiniBorkar-vq8wy 3 месяца назад
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
@pritipipalia924
@pritipipalia924 3 месяца назад
🙏🏻vastra rakhne se parigrah hota he,jab tak parigrah he tab Tak sansar chhuta nahi he.Aparigrah munidasha ,moksh marg me jaruri he,mere khyal se yah Karan he .🙏🏻
@MahaveerOnline-qe3zy
@MahaveerOnline-qe3zy 3 месяца назад
* डा साहब ने बहुत कुछ जाना है दिगंबरत्व के बारे मे किन्तु अभि भी बहुत सारी जानकारी का अभाव है। जो की मै सत्य बताना चाहता हूँ। क्योकि मेरा मानना है कि गलत फहमी दूर हो जानी चाहिये अन्यथा लोग कुछ के कुछ अर्थ निकालेंगे। देखिये हम या जैन कौन होते है किसी भी नारी को मुक्तिमार्ग मे रोकने वाले। मुक्तिमार्ग तो जो है सो है। और वैसा ही रहेगा ना। हमारे मानने या ना मानने से सच नही बदल सकता। और जैसा जो प्राकर्तिक संसार का नियम है तो है। जैन दर्शन को उनके समर्थको ने सत विज्ञान माना है। मतलब यही वास्तविक सत्य है इस संसार का। ये जगत कैसा है? इसका स्वरुप क्या है? ये सब अर्हंत केवलि यानि सर्वज्ञ के ज्ञान मे आता है जिनके द्वारा जगत के जीवो को ज्ञात होता है। इसलिये जो जैसा स्वरुप सर्वज्ञ भगवान ने अपने आत्मिक ज्ञान से जाना वह जिनवानी कही जाती है। और यही जिनवानी ही जैन धर्म है। और इसी जिनवानी के अनुसार मोक्षमार्ग मे लोग चलते है। .......ये तो मैने मोटी मोटी रूपरेखा बता दीं। अब रही बात नारी मुक्ति की तो देखिये जैन धर्म आत्मा की बात करता है। नारी हो या पुरुष, सब जीव है। लेकिन मुक्ति के लिये जीव को पुरुषार्थ करना पड़ता है लेकिन गति और पर्याय का निमित्त होना ज़रूरी है। और वो गति सिर्फ मनुष्य गति ही होती है जहा से मोक्ष यानि निर्वाण सम्भव है। और मनुस्य गति मे भी पुरुष पर्याय से ही मोक्ष सम्भव है ना की स्त्री पर्याय या नपुंसक पर्याय से। अब इसके कारण मै बताने जा रहा हूँ ताकी सही समझ हो सके और अन्यथा अर्थ ना निकले- 1. स्त्री के उसी भव मे मोक्ष ना जा पाने का कारण उसके कपड़े से विशेष लेना देना नही बल्कि उसके शरीर मे सहनन ना होना है। क्योकि मोक्ष जाने के लिये उत्तम सहनन अनिवार्य है जो सिर्फ पुरुष मे ही हो सकता है। वो भी चतुर्थ काल तक के पुरुषो मे होता था। आज के पुरुषो मे भी नही है। अत: इस काल मे कोई भी जीव मोक्ष नही जा सकता। ना पुरुष ना स्त्री। 2. स्त्री का स्वभाव चंचल व भावो की स्थिरता नही हो सकती। क्योकि उसकी पर्याय ही एसी है। और बिना भावो की स्थिरता के कोई भी जीव शुक्ल ध्यान मे लीन नही हो सकता। और बिना शुक्ल ध्यान के मोक्ष असम्भव है। इसलिये स्त्री मोक्ष असम्भव सिद्ध हुआ। यही दो मुख्य कारण है स्त्री के मोक्ष ना जा पाने के। अगर वह वस्त्र उतार भी दे तब भी मोक्ष नही जा पायेंगी। हम तुम कौन होते है रोकने वाले बल्कि वो कोशिश करके भी मोक्ष उसी भव मे नही जा सकती। जैन दर्शन मे तो जीव प्रधान है। किन्तु जीव अपने कर्मो के अनुसार स्वर्ग नर्क मनुष्य तिर्यंच आदी गतियो और पर्यायो मे शरीर धारण करता रहता है। जीव कभी मरता नही बस शरीर बदलता है अपनी उस शरीर की आयु के अनुसार। और फिर मोक्ष मार्ग मे जीव के लिये उसकी वर्तमान पर्याय ही निमित्त होती है। अनुकूल पर्याय ना होने से वह मोक्ष नही जा पाता। वैसे जीव को भगवान जीव की दृष्टी से ही देखते है। ना कोई स्त्री, ना पुरुष, ना तिर्यंच ना ही देव। सब जीव है आत्मा है चेतना है। किन्तु पर्याय भी महत्व रखती है जब तक वो जीव संसार मे है। एक बार जब जीव कर्मो से मुक्त हो जाता है तो वह संसार से भी मुक्त हो जाता है। फिर उसके साथ शरीर नही होता व वह अपने मूल स्वभाव मे आ जाता है। जहा सिर्फ दर्शन और आनंद ही अनुभव मे आता है। ...उम्मीद है मै समझा पाया हूँ। धन्यवाद🙏
@TheQuestURL
@TheQuestURL 3 месяца назад
बहुत बहुत आभार 🙏
@Frank-castle23
@Frank-castle23 3 месяца назад
Apki sari baton ka source kya hai ?
@nehasinghrajput8200
@nehasinghrajput8200 3 месяца назад
Prem v moksha ka dwar hai ex- meera Bai lekin shart hai pyar pagalpan ki Hadd tak ho jaye Ishwar se tab
@MahaveerOnline-qe3zy
@MahaveerOnline-qe3zy 3 месяца назад
@@Frank-castle23 मैने पेहले ही कहा इसमे की ये जैन दर्शन के सिद्धान्त है। उनके पास जो ग्रंथ या आगम है वे सारे ही उसके सोर्स है। किसी भी जैन न्याय व सिद्धांताचार्य और विशेषज्ञ से जान सकते हैं।
@MahaveerOnline-qe3zy
@MahaveerOnline-qe3zy 3 месяца назад
@@nehasinghrajput8200 प्रेम राग है। और मुक्ति के लिए जीव का राग द्वेष आदि विकारी भावो से रहित एकमात्र शुद्ध आविकारी भाव से वीतरागी होना होता है। और इसी वीतराग दशा से ही मोक्ष संभव है।
@Frank-castle23
@Frank-castle23 3 месяца назад
apko ek murti bnwani chahiye guruji ki Kurukshetra mai ❤❤❤🧿
@TheQuestURL
@TheQuestURL 3 месяца назад
आपने बिलकुल ठीक कहा है 🙏🌹
@Frank-castle23
@Frank-castle23 3 месяца назад
@@TheQuestURL kabhi apse mulakat hogi tab is bare mai baat kruga, Abhi nhi aane wale kuch saalo mai tab guruji ki ek pratima bnayege hum log mil kar ❤️
@parjanyashukla176
@parjanyashukla176 3 месяца назад
स्त्रियों का मोक्ष तो क्या, उनकी तो आध्यात्मिक उन्नति ही बहुत कठिन है और बिना किसी पुरुष मार्गदर्शक के स्वतः नहीं हो सकती । आप इतिहास का कोई भी समाज उठा कर देख लीजिए, किसी समाज में भी स्त्री स्वयं साधना - उन्मुख नहीं हुई । उसे किसी पुरुष मार्गदर्शक की हमेशा जरूरत रही । और भारतीयों ने तो इसे भली - भांति समझकर इसे स्वीकार किया । आज लोग बोलते हैं कि यह अन्याय है या ऐसा कुछ । मगर यहां इसका मतलब यह नहीं कि कोई रोक रहा है । स्त्रियों का स्वरूप एक बच्चे के झूले की तरह होता है, जो मिले, उसे खाकर फिर दोबारा दूसरी दिशा में स्त्री भटकने लगती है ।
@sunilkhilare3085
@sunilkhilare3085 3 месяца назад
Ye to पुरुष के नजरोमे नारी कपडे नाही उतार सकती.kyonki purush hi girta hai nari ke sharir ke lalach मे. नारी तो स्वयम् मे मोक्ष प्राप्त करतो है लेकीन पुरुष के लिये wo kapde pahanti hai .
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