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नासदीय सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त दो महत्वपूर्ण हिंदू धर्मग्रंथ ऋग्वेद से सम्बंधित हैं। ये दोनों ही दार्शनिक और आध्यात्मिक विषयों पर आधारित हैं और ब्रह्मांड के उत्पत्ति और रचना के पीछे के मूल सिद्धांतों को खोजते हैं।
नासदीय सूक्त (सृष्टि सूक्त) :
नासदीय सूक्त, जिसे सृष्टि सूक्त या सृजन की स्तुति के रूप में भी जाना जाता है, ऋग्वेद के 10वें मण्डल में, 129वें सूक्त में पाया जाता है। यह वैदिक साहित्य में सबसे प्रसिद्ध सूक्तों में से एक है और सृजन के रहस्य पर गहरा विचार करता है।
इस सूक्त की शुरुआत "नासदीय सूक्त" के शब्दों से होती है, जिसे "अस्तित्व के अभाव" या "वह जो अस्तित्व में नहीं था" के रूप में अनुवाद किया जा सकता है। यह सूक्त ब्रह्मांड के उत्पत्ति से पहले के अस्तित्व की चिंतन करती है, जहां न तो सत का अस्तित्व था और न ही असत का। यह सूक्त सृजन के कारण, परमात्मा की अस्तित्व, और वास्तविकता के मूल स्वरूप पर सोचती है। इसमें मनुष्य की ज्ञान की सीमाओं को समझाने का भी प्रयास किया जाता है और ब्रह्मांड के सामने आश्चर्य और विनम्रता का भाव उत्पन्न करता है।
हिरण्यगर्भ सूक्त (सोने का गर्भ सूक्त) :
हिरण्यगर्भ सूक्त भी ऋग्वेद में पाया जाता है, 10वें मण्डल में, लेकिन 121वें सूक्त में। इसे कभी-कभी सोने के गर्भ की स्तुति या ब्रह्मांडिक व्यक्ति की स्तुति के रूप में भी जाना जाता है।
इस सूक्त में एक ब्रह्मांडिक व्यक्ति या देवता का ध्यान किया जाता है, जिसका नाम "हिरण्यगर्भ" है, जो सृजन का संपूर्ण अधिष्ठान और सृजन की समस्त उपादान सम्भवना को प्रतिष्ठित करता है। हिरण्यगर्भ को सृजन का स्रोत के रूप में और ब्रह्मांड की विविध रूपों में प्रकट होने वाले सत्ता के रूप में देखा जाता है।
हिरण्यगर्भ सूक्त इस ब्रह्मांडिक व्यक्ति को सृजन के सभी श्रेणियों के स्रोत के रूप में वर्णित करता है जो कि सभी कुछ की उत्पत्ति का आधार है। यह सूक्त एक एकीकृत और जड़े हुए ब्रह्मांड की दृष्टि प्रस्तुत करती है, जहां सभी चीजें एक ही स्रोत से उद्भवित होती हैं और सभी चीजें एक समरस समूह में जुड़ी हुई हैं।
नासदीय सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त गहरे दार्शनिक अवधारणाओं और आध्यात्मिक विचारों को खोजते हैं। ये हिंदू धरोहर के एक प्रमुख हिस्से के रूप में श्रेष्ठ माने जाते हैं जो सच्चे खोजनेवालों और दार्शनिकों को सृजन के रहस्यों, वास्तविकता के स्वरूप, और सभी चीजों के आपसी संबंधों को चिन्हित करने के लिए प्रेरित करते हैं। इन सूक्तों का अध्ययन, व्याख्यान, और विचार करना हजारों वर्षों से हो रहा है, जो भारत की समृद्ध दार्शनिक और आध्यात्मिक परंपराओं को योगदान देते हैं।
14 авг 2020