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Nasadiya Sukta I Hiraṇyagarbha Sūkta I RigVeda I Bharat Ek Khoj 

VIREN KADAM
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Video Concept & Designed By - Viren'Kay@AtikrupaCreations
Music Artist : Khodus Wadia, Vanraj Bhatia
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#ProjectCrossToBear #VirenKay #AtiKrupaCreations #QuickQuackQuotes
नासदीय सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त दो महत्वपूर्ण हिंदू धर्मग्रंथ ऋग्वेद से सम्बंधित हैं। ये दोनों ही दार्शनिक और आध्यात्मिक विषयों पर आधारित हैं और ब्रह्मांड के उत्पत्ति और रचना के पीछे के मूल सिद्धांतों को खोजते हैं।
नासदीय सूक्त (सृष्टि सूक्त) :
नासदीय सूक्त, जिसे सृष्टि सूक्त या सृजन की स्तुति के रूप में भी जाना जाता है, ऋग्वेद के 10वें मण्डल में, 129वें सूक्त में पाया जाता है। यह वैदिक साहित्य में सबसे प्रसिद्ध सूक्तों में से एक है और सृजन के रहस्य पर गहरा विचार करता है।
इस सूक्त की शुरुआत "नासदीय सूक्त" के शब्दों से होती है, जिसे "अस्तित्व के अभाव" या "वह जो अस्तित्व में नहीं था" के रूप में अनुवाद किया जा सकता है। यह सूक्त ब्रह्मांड के उत्पत्ति से पहले के अस्तित्व की चिंतन करती है, जहां न तो सत का अस्तित्व था और न ही असत का। यह सूक्त सृजन के कारण, परमात्मा की अस्तित्व, और वास्तविकता के मूल स्वरूप पर सोचती है। इसमें मनुष्य की ज्ञान की सीमाओं को समझाने का भी प्रयास किया जाता है और ब्रह्मांड के सामने आश्चर्य और विनम्रता का भाव उत्पन्न करता है।
हिरण्यगर्भ सूक्त (सोने का गर्भ सूक्त) :
हिरण्यगर्भ सूक्त भी ऋग्वेद में पाया जाता है, 10वें मण्डल में, लेकिन 121वें सूक्त में। इसे कभी-कभी सोने के गर्भ की स्तुति या ब्रह्मांडिक व्यक्ति की स्तुति के रूप में भी जाना जाता है।
इस सूक्त में एक ब्रह्मांडिक व्यक्ति या देवता का ध्यान किया जाता है, जिसका नाम "हिरण्यगर्भ" है, जो सृजन का संपूर्ण अधिष्ठान और सृजन की समस्त उपादान सम्भवना को प्रतिष्ठित करता है। हिरण्यगर्भ को सृजन का स्रोत के रूप में और ब्रह्मांड की विविध रूपों में प्रकट होने वाले सत्ता के रूप में देखा जाता है।
हिरण्यगर्भ सूक्त इस ब्रह्मांडिक व्यक्ति को सृजन के सभी श्रेणियों के स्रोत के रूप में वर्णित करता है जो कि सभी कुछ की उत्पत्ति का आधार है। यह सूक्त एक एकीकृत और जड़े हुए ब्रह्मांड की दृष्टि प्रस्तुत करती है, जहां सभी चीजें एक ही स्रोत से उद्भवित होती हैं और सभी चीजें एक समरस समूह में जुड़ी हुई हैं।
नासदीय सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त गहरे दार्शनिक अवधारणाओं और आध्यात्मिक विचारों को खोजते हैं। ये हिंदू धरोहर के एक प्रमुख हिस्से के रूप में श्रेष्ठ माने जाते हैं जो सच्चे खोजनेवालों और दार्शनिकों को सृजन के रहस्यों, वास्तविकता के स्वरूप, और सभी चीजों के आपसी संबंधों को चिन्हित करने के लिए प्रेरित करते हैं। इन सूक्तों का अध्ययन, व्याख्यान, और विचार करना हजारों वर्षों से हो रहा है, जो भारत की समृद्ध दार्शनिक और आध्यात्मिक परंपराओं को योगदान देते हैं।

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14 авг 2020

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Комментарии : 25   
@hiteshkumar8417
@hiteshkumar8417 Год назад
आधुनिक विज्ञान के अनुसार सिन्गुलैरिटी में विस्फोट होने से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई। इसी सिन्गुलेरिटी को हजारों बर्ष पहले ॠग्वेद में हिरण्य गर्भ अर्थात काॅसमिक एग कहा गया था।
@VIRENKAY
@VIRENKAY Год назад
आधुनिक विज्ञान के अनुसार, सिंगुलैरिटी का विस्फोट ब्रह्मांड की उत्पत्ति के लिए महत्वपूर्ण घटना है। यह विस्फोट सिंगुलैरिटी के रूप में जाना जाता है, जिसमें ब्रह्मांड की सभी वस्तुएं और शक्तियाँ एक बिंदु में एकत्र हो जाती हैं। यह एक अव्यक्त और अस्तित्वरहित स्थिति है जिसमें विज्ञान के पाठक द्वारा अभिव्यक्त की जा सकती है। आपका उल्लेख है कि इसी सिंगुलैरिटी को हजारों बर्ष पहले "ॠग्वेद " में हिरण्यगर्भ या कॉस्मिक एग के रूप में व्यक्त किया गया था। ॠग्वेद मानवीय ज्ञान, धार्मिक और दार्शनिक विचारों का महत्वपूर्ण स्रोत है। यह एक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है जिसमें ब्रह्मांड और विश्व के उत्पत्ति से संबंधित भी विचारों का वर्णन है। हिरण्यगर्भ शब्द इस प्रकार के सिंगुलैरिटी या कॉस्मिक एग (Cosmic Egg) को संकेतित है, जहां सब कुछ एकत्र होता है और उत्पन्न होता है। यह महत्वपूर्ण है कि आधुनिक विज्ञान और प्राचीन भारतीय धर्म और दर्शन के विचारों को एक साथ देखा जाए। विज्ञान ने ब्रह्मांड के संबंध में नए ज्ञान को प्राप्त किया है, जबकि प्राचीन भारतीय शास्त्रों ने इस विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। यह एक रोचक विषय है और इसे और अधिक अध्ययन करना और समझना महत्वपूर्ण है।
@EternalVoice11
@EternalVoice11 11 месяцев назад
जानते हैं कौन है असली देवता। मगर पूजा नहीं करेंगे उसकी। यही है हठधर्म जो सदियों से चला आ रहा है।
@yourbeautifulworld2816
@yourbeautifulworld2816 29 дней назад
Can you elaborate on your statement
@thelustprophet
@thelustprophet Год назад
धन्यवाद भ्राता 🕉️❤️
@mastrammeena328
@mastrammeena328 3 года назад
Thanks bro Make a 2 separate video for nasadiya sukta and hiranyagarbha sukta
@vkvkvk1235
@vkvkvk1235 Год назад
Ati sundar!
@AdityaPratapV
@AdityaPratapV Год назад
Wonderful! Thanks for uploading!
@Siddharth-mb7lf
@Siddharth-mb7lf 3 года назад
Bahut badhiya
@divinerhythmicsoul9427
@divinerhythmicsoul9427 Год назад
Thank u its beautiful..
@AmreshKumar-po4fw
@AmreshKumar-po4fw 7 месяцев назад
Jai ho satya sanatan
@harikrishna-yz7uc
@harikrishna-yz7uc Год назад
👌👌👌🙏🙏
@seemadeshpande8168
@seemadeshpande8168 3 года назад
Please retain this message
@bajindernath1122
@bajindernath1122 Год назад
It's lyrics please
@gouravthakur-en8yp
@gouravthakur-en8yp 4 месяца назад
हिन्दू भाई संभलो 🌹🌹🌹🌹🌹🌹👇👇 वेदों में परमेश्वर कबीर का नाम कविर्देव वर्णित हैं। यजुर्वेद अध्याय 29 मन्त्र 25 ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मन्त्र 17 ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मन्त्र 18 ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9 यजुर्वेद अध्याय 29 मन्त्र 25
@hiakb
@hiakb 3 месяца назад
Are Bhai, kis Rampal ke chakkar me pade ho Jo jail me gaya hua hai? Inme kisi jagah satguru Kabir ka zikra nahi hai. Jhuth bolta hai wo.
@keystosuccessAcademy
@keystosuccessAcademy 10 месяцев назад
Mantra chahiye tha....naam btao kya hai
@jooniesjam7993
@jooniesjam7993 9 месяцев назад
Nasadiya sukta and Hiranyagrbha sukta
@infernoff6709
@infernoff6709 9 месяцев назад
नास॑दासी॒न्नो सदा॑सीत्त॒दानी॒म् नासी॒द्रजो॒ नो व्यो॑मा प॒रो यत् हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्॥ स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ १ ॥ अर्थ- सृष्टि के आदि में था हिरण्यगर्भ ही केवल जो सभी प्राणियों का प्रकट अधीश्वर था। वही धारण करता था पृथिवी और अंतरिक्ष आओ, उस देवता की हम करें उपासना हवि से करें| य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषं यस्य देवाः॥ यस्य छायामृतम् यस्य मृत्युः कस्मै देवाय हविषा विधेम॥ २ ॥ अर्थ- आत्मा और देह का प्रदायक है वही जिसके अनुशासन में प्राणी और देवता सभी रहते हैं मृत्यु और अमरता जिसकी छाया प्रतिबिम्ब हैं। आओ, उस देवता की हम करें उपासना हवि से करें | यः प्राणतो निमिषतो महित्वै क इद्राजा जगतो बभूव॥ यः ईशे अस्य द्विपदश्चतुष्पदः कस्मै देवाय हविषा विधेम॥ ३ ॥ अर्थ- प्राणवान् और पलकधारियों का महिमा से अपनी एक ही है राजा जो संपूर्ण धरती का स्वामी है जो द्विपद और चतुष्पद जीवों का आओ, उस देवता की हम करें उपासना हवि से ।- हिरण्यगर्भा सूक्तं यस्येमे हिमवन्तो महित्वा यस्य समुद्रं रसया सहाहुः॥ यस्येमाः प्रदिशो यस्य बाहू कस्मै देवाय हविषा विधेम॥ ४ ॥ अर्थ- हिमाच्छन्न पर्वत ये महिमा बताते हैं जिसकी नदियों सहित सागर भी जिसकी यश-श्लाघा है, जिसकी भुजाओं जैसी हैं दिशायें शोभित आओ, उस देवता की हम करें उपासना हवि से करें। येन द्यौरुग्रा पृथिवी च दृळहा येन स्वः स्तभितं येन नाकः॥ यो अंतरिक्षे रजसो विमानः कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ ५ ॥ अर्थ- गतिमान अंतरिक्ष, जिसमें धरती संधारित है आदित्य और देवलोक का जिसने है किया स्तम्भन अंतरिक्ष में जल की जो संरचना करता है,आओ, उस देवता की हम करें उपासना हवि से करें। यं क्रन्दसी अवसा तस्तभाने अभ्यैक्षेतां मनसा रेजमाने॥ यत्राधि सूर उदतो विभाति कस्मै देवाय हविषा विधेम॥ ६ ॥ अर्थ- सबकी संरक्षा में खड़े आलोकित द्यावा पृथिवी अंतःकरण में हैं निहारा करते जिसको जिससे उदित होकर सूरज सुशोभित हैआओ, उस देवता की हम करें उपासना हवि से करें। आपो ह यद् बृहतीर्विश्वमायन् गर्भं दधाना जनयन्तीरग्निम्॥ ततो देवानाम् समवर्ततासुरेकः कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ ७ ॥ अर्थ- अग्नि के उद्घाटक और कारण हिरण्यगर्भ के भी एक वह देव तब प्राणरूप से जिसने की रचना जल में जब सारा संसार ही निमग्न था । आओ, उस देवता की हम करें उपासना हवि से करें। यश्चिदापो महिना पर्यपश्यद् दक्षं दधाना जनयन्तीर्यज्ञम्॥ यो देवेष्वधि देवः एक आसीत कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ ८ ॥ अर्थ- महा जलराशि को जिसने निज महिमा से लखा यज्ञ की रचनाकारी प्रजापति की संधारक जो देवताओं के मध्य जो अद्वितीय देव है आओ, उस देवता की हम करें उपासना हवि से करें।- Hiranyagarbha Suktam मा नो हिंसीज्जनिताः यः पृथिव्या यो वा दिव सत्यधर्मा जजान॥ यश्चापश्चन्द्रा बृहतीर्जजान कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ ९ ॥ अर्थ- पीडित करे न हमें धरती का है निर्माता जो सत्यधर्मा वह जो अंतरिक्ष की रचना करता पैदा की है जिसने विस्तृत सुख सलिल- राशि आओ, उस देवता की हम करें उपासना हवि से करें। प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परि ता बभूव॥ यत् कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु वयं सरयाम पतयो रयीणाम्॥ १० ॥ अर्थ- अतिरिक्त तुम्हारे है न प्रजापति दूसरा कोई वर्तमान, भूत, भावी पदार्थों में जो रहता हमें मिले वह, यह आराधना जिस कामना से की आओ । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
@TheMalllu
@TheMalllu Год назад
Aap kahna kya chahte ho bhai
@AshishKumar-tu3df
@AshishKumar-tu3df Год назад
Doordarshan pe prasharan hone wale purane serial "Bharat ek khoj"ka title song hai
@Atul-ms1ys
@Atul-ms1ys 11 месяцев назад
बहुत गहरी बात है भाई, कोई समझ नही सकता ना समझा ही सकता है
@hiakb
@hiakb 3 месяца назад
Phir kiske liye hai? Kis kaam ka hai?​@@Atul-ms1ys
@pankajpalwe9846
@pankajpalwe9846 Год назад
I like my santan Hindu Dharma Jai Shriram Jai Hindurashtra
Далее
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