मेंघ रे धवल मेंघ व्योम से बरसो झींसी झींसी फुहार दे बरसो फुदक फुदक ठसक भर बरसो । नट मल्हार गा ठुनक ठुनक मध्यम सप्तक में झूम झूम नन्ही नन्ही बुंदों में बरसो । शास्त्रीय राग का रस झनका विपुल शीत का दे ठनका आनन्द भाव उडेलकर बरसो । सुरसुरी भर दे रस बूंदों में गुदगुदी जगा-जगा जलकण में मधुमय संगीत बन बरसो । प्रिय वसुधा पर मुस्का रही झकझोर लगा सुरमय झड़ी अंग-अंग को सरस कर बरसो ।
सखी तूँ बिन रुक रुक मेंघा झकझोर बरसे दामिनी उछल-उछल कड़के अंधेरी रात भयभीत करे भादों की रात में मन चिहुंके सखी तूँ बिन हृदय दरक तड़पे । सावन बीता सखी भादों आया अधरतिया में गरजा बदरा इधर-उधर दौड़ बरसा बदरा हर बंदिशे तोड़ झूमा बदरा सखी तूँ बिन हृदय दरक तड़पे । भाद्रपद में बौराई सृष्टि तेज बौछार से सरस हुई धरती खिरकी किबाड़ तोड फोड़ हर ओर दहशत हलचल की सखी तूँ बिन हृदय दरक तड़पे । अरे वो निष्ठुर गायक है मल्हार राग छेड़ रहा है दंश रहा अंधेरी रात मुझे बरसा की धारें बेध रहा है सखी तूँ बिन हृदय दरक तड़पे ।
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