।।सत साहेब गुरुजी सादर प्रणाम, साहेब कबीर सुजान बंदगी अखण्ड सारशब्द सुमिरण चित्त में पाकर संवर गई हम सभी संत हंसों की मानव जिन्दगी। सादर नमन गुरुजी।।00।।
चेतन की सत्ता का जब इस पंच भौतिक शरीर से अलगाव होता हैं तब सारी योग क्रियाएं निस्तेज हो जाती हैं और अंततः सारा देखा गया खेल ज्योति, अनाहत नाद, पारब्रह्म आदि सब गायब हो जाते है। इसलिए कबीर साहेब ने इन सबको काल्पनिक बताया है। निज स्वरूप की भी गलत व्याख्या की है। लाल की लाली में नहीं सिर्फ लाल में ठहरना है उसी को जानना है। साहेब बंदगी। जय सत कबीर।
साहेब अकल बिहूने कबीर साहेब बोलते है कहें कबीर अक्षर दो भाख बोल। सुमिरन कर और आप एक छुड़ा रहे हो वैसे तो आपने वो दोनो अक्षर ही छोड़ रखे है आप बोल रहेगी। दो अक्षर। का भेद बताए तो आपने ये अर्थ नही अनर्थ कर दिया। सही ये है एक अक्षर जीव आत्मा को लखाएग ज्ञान कराएगा। और दूसरा अक्षर आपको यह से छुड़ाएगा