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Rai Praveen Mahal | Orchha इंद्रजीत-राय प्रवीण की प्रेम कहानी भी बाजीराव-मस्तानी की तरह अधूरी रह गई! 

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Rai Praveen Mahal | Orchha इंद्रजीत-राय प्रवीण की प्रेम कहानी भी बाजीराव-मस्तानी की तरह अधूरी रह गई!
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बुंदेलों का साम्राज्य गढ़कुंडार से प्रारंभ होता है। और उसके बाद गढ़कुंडार से आकर इन्होंने ओरछा को अपना साम्राज्य बनाया। शेरशाह को खदेड़ने वाले भारतीयचंद बुंदेला के निधन उपरांत उनके अनुज मधुकर शाह जूदेव गद्दी पर आए। वह कट्टर हिंदूवादी थे। अकबर के दरबार में हमेशा तिलक लगाकर जाते थे जबकि अकबर ने इस पर मनाही कर रखी थी। ऐसे साहसी पुरुष,उनके 8 पुत्र हुए थे। उन आठ पुत्रों में से पांचवें पुत्र राजा इंद्रजीत, जेष्ठ पुत्र राजाराम शाह थे। राजाराम शाह को राजकाज में कोई रुचि नहीं थी। वे भक्ति में लीन रहते थे। मधुकर शाह के निधन उपरांत जेष्ठपुत्र होने के नाते राजा रामशाह को राजतिलक होता है।
लेकिन उन्होंने अपने राजकाज को संभालने के लिए अपने विश्वासपात्र अनुज इंद्रजीत को कछुवा से ओरछा बुलाया। और उन्हें बताया कि कार्य तुम करोगे हस्ताक्षर मैं करूंगा। राजा इंदरजीत कछुवा का राज देखते थे, ओरछा का राज देखते थे, उनका अक्सर कछुवा से ओरछा आना जाना लगा रहता था। राजा मधुकर शाह ने अपने जीवन काल में अपने 8 बेटों को अलग-अलग जागीर सौंप दी थी। बड़ौनी की जागीर वीरसिंह जूदेव को मिली थी। जो कि बहुत महत्वकांक्षी थे। वे बडोनी की जागीर तक सीमित नहीं थे ओरछा का भी राजकाज चाहते थे। लेकिन ओरछा का राजकाज राजा इंद्रजीत संभालते थे।
राजा इंद्रजीत का ओरछा से कछुवा आना जाना लगा रहता था, इसी बीच उनकी मुलाकात राय प्रवीण से हुई। अक्सर काफी सारे इतिहासकारों ने अपने लेखों में राय प्रवीण को एक वेश्या बताया है लेकिन यह सत्य नहीं है।। इतिहासकार बाबू श्यामसुंदर दास ने सबसे पहले अपने लेख में उन्हें वेश्या लिखा है। उसके बाद गौरीशंकर बेदी ने अपने बुंदेल वैभव नामक ग्रंथ में उसको वेश्या ही लिखा। इसीलिए जो शोधार्थी जो शोध करते हैं, वे पूर्वर्ती लेखन को ही अपना आधार मानकर उस पर तर्क वितर्क करते हैं।
इसी वजह से काफी सारे इतिहासकार और शोधकर्ताओं ने उसे वेश्या, नृत्यकी, राज नृत्यकी का टाइटल दे दिया।
अब प्रश्न यह उठता है कि मुगल बादशाह अकबर ने अगर अपने आगरा के हरम के लिए राय प्रवीण को तलब किया। लेकिन राजा रामशाह और राजा इंद्रजीत, अकबर को मना कर देते हैं। मुगल बादशाह अकबर ओरछा को नेस्तनाबूद भी कर सकता था। वह बहुत शक्तिशाली राजा भी था। यहां पर सोचने की बात यह बनती है कि ऐसा कौन सा राजा नासमझ हो सकता है। कि वह एक वैश्या या एक नृत्य की के लिए अपनी रियासत को दांव पर लगा देगा। यह बात आराम से गले नहीं उतरती।।
लेकिन हमारे इतिहास में तो एक परंपरा सी हो गई है की पूर्ववर्ती लेखों में जो लिखा है वही प्रमाण है और उसी को पीढ़ी दर पीढ़ी बताया जाता है।
यदि हम राय प्रवीण की बात करें तो वह एक लोहार की लड़की थी जो गांव बरधुवा, जिला दतिया मध्य प्रदेश की रहने वाली थी। और राजा इंद्रजीत जब ओरछा से कछुवा जा रहे थे। तो यहा वरधुवा गांव रास्ते में पड़ता है हो सकता है कि उन्होंने राय प्रवीण को वहां पर मसान चलाते हुए देखा होगा।
रायपुर में दिखने में बहुत ही सुंदर थी और उसके बाद राजा इंद्र जीत उसे अपने साथ ओरछा ले आए।
तो यहां पर राय प्रवीण को आचार्य केशवदास से शिक्षा दिलवाई गई। केशव दास जी राजा इंद्रजीत के राजकवि थे। उनके विश्वासपात्र थे। और उसके बाद आचार्य केशवदास ने उन्हें नृत्य,गायन, वादन, संगीत चित्रकला और काव्य कला की शिक्षा दी। राय प्रवीण नृत्यकी नहीं थी, वह राजा इंद्रजीत की प्रियसी थी।

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6 авг 2024

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