परमपुरुष, परमपूज्य और श्रधेय ऋषि सत्ता के वाहक महात्मन आपको कोटिशः नमन।ऐसा धुरंदर और विशिष्ट ज्ञानी हमने आज तक नही देखा। आप अनंत काल तक लोककल्याण में संलग्न रहें यही परमात्मा से विनती है।
भगवद्गीता, भक्ति प्रधान ग्रन्थ है उपरांत ज्ञानयोग कर्मयोग ध्यानयोग आते हैं, सर्व धर्म परिताज्य मामेक शरणम् वज्र,,शरणागति महत्वपूर्ण है भगवान श्री कृष्ण कीं,,जय श्री कृष्ण जय भगवद्गीते कृष्ण वंदे जगद्गुरु
Gita does not give such sweeping statements that only bhakti is superior. ध्यानेनात्मनि पश्यन्ति केचिदात्मानमात्मना | अन्ये साङ् ख्येन योगेन कर्मयोगेन चापरे || 13: 25|| तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते | प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रिय: ।। 7:17 Tanslations पर निर्भर रहोगे फिर ऐसा ही समझोगे। कृष्ण के उत्तर अर्जुन के प्रश्नो के संद्रभ मे है। जिस संद्रभ मे प्रश्न वैसा उत्तर। भगवान कृष्ण का जोर " योगस्त " अवस्था की और है। भक्ति, कर्म, ध्यान, ज्ञान का पडाव सब योग मे स्थितप्रज्ञ होना है। यह सारे एक दूसरे के परियाय है। गीता को कृष्ण के संस्कृत श्लोक से जान ने का प्रयास करो । अगर शब्दो पे जाऐ तो श्लोक मे जहाँ योग या योगस्त कहाॅ है उसे translation मे भक्ति बताया है कुछ भक्ति वेदांती आचार्यो ने। ज्ञान की प्राप्ती के लिऐ श्रध्दा (भक्ति) चाहिऐ और बिना ज्ञान के भक्ति पूर्ण नहि हो सकती। अस्तिक रहित कर्म के लिऐ भक्ति और ज्ञान चाहिऐ। If you do not know sanskrit read mutiple translations of acharyas. Would recommend Shankarbhasya and Ramanuj bhasya of Gita Press.
@@ANISHNAIR87 श्री भगवद्गीता योग समन्वय हैं सभी योगों का समन्वय कर दिया योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण ने ,साधक संजीवनी जेसी टीका भाष्य नहीं हुआ आजतक आपने जो शंकराचार्य रामानुजन ईसकोन औशो रामकृष्ण मिशन अरविंदो आदि सभी भाष्य पढें हैं मैने कोई भी साधक संजीवनी जेसा अध्यात्मिक ज्ञान नहीं छू सके 🙏🙏😀😀
@@darkenergy9644 मेरा मत् कृष्ण कया कह रहे उस पर है । जब आप रस्वयं मान रहे है समन्वय की बात तो गीता केवल भक्ति प्रधान कैसे हुई। ऐसा होता तो 18 अध्याय कहना ही क्यो पढ़ता । आप के दुसरे से मत से सहमती है, असहमती केवल पहले मत से थी जिसका खंडन आपने स्वयं कर दिया। धन्यवाद
@@ANISHNAIR87 18 अध्याय इसलिए कहने पड़े कि भगवान के समझाने के बाद भी अर्जुन की जिज्ञासा शांत नहीं हुई और अर्जुन की उलझनें फिर भी दूर नहीं हुई, तब तक वह प्रश्न पर प्रश्न कर रहे थे तब क्यों कि अर्जुन भगवान के अति प्रिय थे तब भगवान ने अंत में विशेष कृपा करके अर्जुन से कहा कि, अब भी अगर तुझे कुछ संशय है तो मैं तुझे अंतिम और सबसे अधिक रहस्य वाली बात बताता हूँ कि तू कुछ भी मत कर जैसा मैंने पहले कहा है, तू बस संसार के धर्म, नियम, कर्तव्य त्यागकर केवल एक मात्र मेरी शरण में आ जा, मैं तुम्हारे समस्त पापों को धो दूंगा और तुम्हे शाश्वत शांति प्रदान करूँगा॥ भगवान के ऐसा कहने के बाद अर्जुन ने फिर कोई प्रश्न नहीं किया और अर्जुन भगवान से बोले कि अब मुझे कोई और संशय नहीं है, मुझे स्मृति की प्राप्ति हो गयी और अब आप जैसे जो भी कहेंगे, मैं वो ही करूँगा ॥ इस प्रकार भगवान की पूर्ण रूप से शरणागति ही गीता का सार है, एक वासुदेव के सिवाय कुछ भी नहीं है, यह पूर्ण रूप से स्वीकार कर लेना ही भगवान की असली शरणागति है वासुदेव: सर्वम्
विशिष्टाद्वैत वेदान्त के प्रवर्तक रामानुजाचार्य जी एक ऐसे वैष्णव सन्त थे जिनका भक्ति परम्परा पर बहुत गहरा प्रभाव रहा। श्री रामानुजाचार्य बड़े ही विद्वान और उदार थे। उन्हें कई योग सिद्धियां भी प्राप्त थीं। आइये Ramanujacharya के जीवन के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातों को जानते हैं - भक्ति के महान आचार्य ‘रामानुजाचार्य’ Ramanujacharya भारत की भूमि वो पवित्र भूमि है जिसपर कई संत-महात्माओं ने जन्म लिया। उन्हीं महान संतों में श्री रामानुजाचार्य जी का नाम होना गौरव की बात है जिन्होंने अपने सत्कर्मों द्वारा लोगों को धर्म की राह से जोड़ने का कार्य किया। श्री रामानुजाचार्य द्वारा अपने शिष्यों को दिए गए अन्तिम निर्देश : सदैव वेदादि शास्त्रों एवं महान वैष्णवों के शब्दों में पूर्ण विश्वास रखो । भगवान् श्री नारायण की पूजा करो और हरिनाम को एकमात्र आश्रय समझकर उसमे आनंद अनुभव करो। भगवान् के भक्तों की निष्ठापूर्वक सेवा करो क्योंकि परम भक्तों की सेवा से सर्वोच्च कृपा का लाभ अवश्य और अतिशीघ्र मिलता है । काम, क्रोध एवं लोभ जैसे शत्रुओं से सदैव सावधान रहो, हमेशा बचकर रहो।
@ 31:01 ब्रह्म के पांच रूप हैं सबसे पहला सबसे उंचा रूप है 1.परब्रह्म = वसुदेव -सबका मालिक है सारे जगत को चलाने वाला मुझे चलाने वाला रक्षा करने वाला दूसरा रूप है वयू 3 वयू हैं a. वयू = संकरशन है = जिसे शेशनाग भी कहते हैं = के अवतार -बलदेव - के अंदर १.बल तथा २.संसार को चलाने की शक्ति b. वयू परद्युमन के अंदर एशव्रय आनन्द देने वाली शक्ति एवं वीरतव तथा c. अनिरुद्ध = वरदायनी शक्ति है अपने को छोटा या बड़ा रूप करके संसार को चलाने के लिए रूप बदलना मैनीफैसटेशन पावर आफ ब्रहम ( प्रकटीकरण की शक्ति ) 3 विभव रूप है विभव - भव - पराभव - वैभव भव का मतलब है होना भव का मतलब है वैभव यानि संपन्नता, पेड़ों पर प्रचुर फल, चिड़िया का गाना नदीयों की कलकल आनन्द देने के लिए संपन्नता ही भगवान का विभव रूप में दिखाई देना है विभव रूप में ही अवतार आते हैं 4. अंतरयामी है = जीव रूप में हमारे अंदर बैठा रहता है इसलिए अंदर की सब बात जानता है @ 38:54 5. अर्चवातार = मूर्ति रूप जैसी तेरी भावना है भगवान के प्रति वह वैसे रूप में आस्था को दृढ़ करने के लिए प्राप्त हो जाउंगा मूल श्लोकः ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्। मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।4.11।। स्वामी रामसुखदास द्वारा हिंदी अनुवाद ।4.11।। हे पृथनन्दन ! जो भक्त जिस प्रकार मेरी शरण ग्रहण करते हैं, मैं उन्हें उसी प्रकार आश्रय देता हूं; क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे मार्गका अनुकृति करते हैं। हिंदी अनुवाद स्वामी तेजोमयानंद द्वारा ।4.11।। जो मुझे जैसे भजते हैं, मैं उन पर वैसे ही अनुग्रह करता हूं; हे पार्थ मनुष्य सब प्रकार से, मेरे ही मार्ग का अनुवर्तन करते हैं।।
*_श्रीमद्रामानुज आचार्य की व्यवस्था में, भक्ति या भक्ति का प्यार अज्ञात संस्था के लिए बेजोड़ प्रेम नहीं है। कुछ दार्शनिकों ने प्रेम और ज्ञान के पथ को बहुत अलग बताया है। उनमें से कुछ ने ज्ञान को प्रेम से उच्चतम बताया है। दूसरों ने प्रेम को ज्ञान से श्रेष्ठ बताया है, और लोगों को प्रेम से ही जानने का आग्रह किया है। स्वामी रामानुज के लिए, ज्ञान और प्रेम एक मार्ग हैं। व्यक्तिगत आत्मा और भगवान को वेदांत से सटीक समझ, और परमेश्वर की सेवा के रूप में सभी कार्यों के परिणामस्वरूप प्रदर्शन - न कि शासन के बाहर, लेकिन समझ की प्राकृतिक प्रगति के रूप में - प्रेम की खेती की ओर जाता है। ज्ञान ही प्रेम में बदल जाता है, जो बदले में भगवान के अधिक ज्ञान की ओर जाता है। प्यार भगवान को जानने का एक परिणाम है, और यह भगवान को बेहतर जानने की ओर ले जाता है। जैसे कि ज्ञान से उत्पन्न होता है और अधिक ज्ञान की ओर जाता है, खुद से प्यार ज्ञान का एक रूप है। दो अलग अलग पथ नहीं हैं, लेकिन केवल एक है। ज्ञान का नतीजा प्यार है, और प्यार का परिणाम बेहतर जानना है। बेहतर जानने से बेहतर प्यार हो जाता है, और अधिक प्यार से परमेश्वर के लिए गहरा प्रेम होता है। जब गहन प्यार फलित होता है, आत्मा बंधन से मुक्त होती है और प्यार में अपने प्रभु के साथ एकजुट होती है।_* ⚙\!/श्रीमते रामानुजाय नमः\!/🐚
भारत को जोड़ने के लिए एकमात्र विकल्प । हर भारतीयों को रामानुजाचार्य की दर्शन का ज्ञान होना चाहिए । नेताओं के corruption के कारण यह ज्ञान और कर्म प्रायः लुप्त हो गया था । मोदी जी को कोटि-कोटि धन्यवाद ।
I used to be an Advaita follower but after realising Shiva 🙏🏻 that feels absurd now no more following any philosophies truth can be revealed by sadhana 🙏🏻 however vishsitadwaita is nice also Ramanujacharya ji did great work he even allowed prostitutes to seek for truth 🙏🏻 Ramanuj ji deserves the most respect 🙏🏻
@@Evaisgalaxy there is no soul in Sanatana Dharma brother. Atman is not the soul. No path is wrong they all lead to one another. It depends upon your perspective. If you see 6 from upside it appears as 9 and if you see 9 from downside it appears as 6. The presentation is different but the end goal is same i.e. to end sufferings of the "individual" by realising the "atman" or "shiva". Also yes the body might be doing it but ramanujacharya ji was a true saint he never did casteism he always lived for others for teaching others. There is no bad thing about him. He was a true gem.
ओम् ..जब सब कुछ ब्रह्म ही है तो मै कौन?कौन किसे पूजेगा कौन किसे पायेगा?यदि जीव भिन्न है तो क्यो भिन्न है क्या उद्देश्य है ..असंभव है उसकी महिमा को जांन पाना..शरणागत् ..हो जाना मात्र रास्ता है..तेरी जैसी इच्छा ईश्वर ..सर्वमान्य है❤,💯👏
Very beautiful. I Thank you Guruji, with my deepest gratitude and respect . You are really doing a great work by enlightening us. using simple and clear language for our easy understanding.
@ 10:40 ब्रहम के अंदर के भेद 1. सजातीय भेद नहीं है एको ब्रह्म द्वीतीय नास्ति 2. विजातीय भेद भी नहीं है 3. स्वगत भेद है जैसे एक ही शरीर में आंख और हाथ में भेद है
Very great personality. Great samanvayam of philosophies. Very simple and high thinker. Sankaras advaita as I understood is away of living in simple way and keeping desires to minimum. And realistion to individual will keep santust. Late Sinha sab big nidhi.
Mahatma you are really knowledgeable person and your speech is really beyond description. I am very glad to listen to your speech as well as grateful to you. Pranam Maharaj. Pls make more and more videos. It was my question that how shall I implement this idea in my daily life.
कुलम चेव धनं: चैव यौवन्मेव च। - कुल अभिमान होना चाहिए पर कुल मद ( में ऊंचा तू नीचा ) नही होना चाहिए ।-> श्री भरतुहरी। - सर्वस्य चाहम ह्यादिसंनीविष्टो ( गीताजी ) सब में भगवान हे तो कोई भी अछूत नहीं हे ।🙏🙏