Lyrics
सुनसान बन वो रात वो उठता हुआ धुआं
निकली पीदर को ढूंढने नन्ही सी एक जान
कहती थी बाबा जान बता दो के हो कहां
एक लाश बोल उठी मेरी बेटी मे हूं यहां
लेकर इसी सदा का सहारा पहुंच गई
रोते हुए नशेब में दुखिया पहुंच गई
बेसर जब अपने बाप को देखा नाशेब में रोइ बहुत यतीम सकीना नशेब में
1 मकतल में लाश बाप की जब सर कटी मिली
थी उम्र चार साल की बच्ची तड़प गई
बेटी जब अपने बाप को पहचान ना सकी
आवाज या अबा की यातीमा ने रोक दी
लाशा गरीब बाप का बोला नशेब में
2 लिखा है रावियों ने वो मंजर बड़ा अजीब
जंगल वो काली रात वो गुरबत वो गम नसीब आवाज़ सूनके बाप की पहुंची है जब करीब
हालत पीदर की देख के रोई बहुत गरीब
बेटी के साथ बाप भी रोया नशेब में
3 आगे बड़ी हुसैन की मजलूम गमजदा
तीरों से जिस्म बाप का देखा भरा हुआ
घबरा के तीर जिस्म से करने लगी जुदा
कमसिन थी कोई तीर ना उससे निकल सका
पाया ना जब हुसैन का सीना नशेब में
4 खाली न पाई जिस्म पे तीरों से कोई जा
करने लगी तवाफ वो बाबा की लाश का
मायूस हो के पाई थी बेटी वो गमजदा
रुखसार अपने बाप के तलवों पे रख दिया
लेकर पिदर के पांव का बोसा नशेब में
5 अपने पिदर की लाश पे ले ले के सिसकियां
वो अपना दर्द बाप से करने लगी बया
रुख पर बनी थी साफ जो जालिम की उंगलियां
बच्ची ने जब दिखाएं तमाचों के वो निशा
जख्मी बदन हुसैन का तड़पा
नशेंब में
फिर यह कहने लगी रो रो के यतीमा बाबा
मेरे बालों को सीतमगर ने जो पकड़ा बाबा
मारा जालिम ने मुझे ऐसा तमाचा बाबा
छा गया मेरी निगाहों में अंधेरा बाबा
6 कहती थी मैं यतीम हूं मुझ पर न वार कर
की मिन्नते बहुत की जरा इंतजार कर
मैं दे रही थी शिमर को बूंदे उतार कर
छीने है बे रहम ने मगर मुझको मार कर
ये दर्द जब पिदर को सुनाया नशेंब में
7 वाइज लिखेगा कौन यतीमा की बेकसी
लाशे शहे जमन से वो जिस दम जुदा हुई
लगता था अब जीए गी ना बच्ची हुसैन की
जाने लगी नशेब से जब शाह की लाडली
बाबा को अपने छोड़ के तन्हा नशेब में
20 сен 2024