सबकुछ जाणकारी एक विश्वास कीं जरूरत है सच्चाई जाणणा सम्यकज्ञान है. पंडीत जी आपणे बहोत बाते जिसकी मिथ्यात्वी एक अज्ञानता का भूत सवार है. मिथ्यात्व कीं बात और विस्तार से कहना जरूरी है .और एक प्रवचन में असंख्यात प्रदेशी कीं बात है, मगर मालूमात करना की बात है ,जैनभूगोल कीं जाणकारी किसी को भी हो जाणकारी नहीं ना. जैनभूगोल द्वारा, तीन लोक की महिमा दिखा रहे है और जीवात्मा असंख्यात प्रदेशी अखंडित स्वयंभू को जाणणेसे श्रध्दा से सम्यक्त्व ज्ञान से निर्णय है. असंख्यात प्रदेशी लोकप्रमाण आत्मा समजना ही सच्ची रोशनी है . कृपया मार्गदर्शन हो .