- साधना अकेले में, मंदिर में, हिमालय पर या किसी सिद्ध पुरुष के साथ बैठकर की जानी चाहिए। संतों तथा मुनियों ने कहा कि मनुष्य को अकेले साधना करने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि भीड़ में लोग बाधा डालने लगते है।
ओशो जी के लेक्चर सुनकर मैं एक निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि ओशो जी एक निर्गुण भक्ति के उपासक हैं और भीतर के एकांत आकाश और भीतर के प्रकाश पर बल देते हैं जिसका अर्थ आत्म भक्ति या आत्मज्ञान है । ओशो जी और अन्य निर्गुण उपासकों में एक अंतर है की अन्य निर्गुण भक्तों ने कभी सगुण भक्ति को अपशब्द नही कहे बस उन्होंने निर्गुण भक्ति के माध्यम से जन को जागृत किया जबकि ओशो का ज्ञान कुछ कुछ गौतम बुद्ध की भांति आत्मज्ञान अथवा ध्यान पर केंद्रित है।
निसंदेह निर्गुण और सगुण भक्ति का मार्ग एक ही है बस उसको समझने और समझाने के तरीके अलग अलग हैं सगुण भक्ति के उपासक भी बिना ध्यान से गुजरे परमात्मा तक नही पहुंचते जबकि निर्गुण उपासक भी ध्यान करके ही आत्मा के तत्व तक पहुंच पाते हैं । आत्मा उस परमात्मा का ही अंश है और दोनो के गुण समान है जो आत्मा के भीतर उतर गया समझो परमात्मा तक पहुंच गया।