राम है बड़ा है राम का नाम राम राम जपतै जपतै करते जा बंदे भलाई का काम कर भला तो हो भला नर सैवा हि नारायण सैवा मानव सैवा ही माधव सैवा ऐक भलाई कै अनेक लाभ राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम जी
आपने कलयुग के बारे में जो कहा है, वह सत्य कहा है. जो पाँच स्थान हैँ, वहीं पर hai, सभी स्थान पर नहीं. परन्तु हमारी बुद्धि भ्र्ष्ट है. सब वहीं से हो रहा है. आपको नमन है.
तीसरी आंख का रास्ता अंदर की तरफ खुलता हे और उसी रास्ते से आत्मा शरीर मे ऊपर कि तरफ बैठाई जाती हे उसी रास्ते से ऊपर कै लौकौ मे जाती हे शरीर मे नौ दरवाजे बाहर की तरफ खुलते हे मगर दसवा,द्वार दरवाजा अंदर दौनौ आंख के बीच से अंदरकी तरफ खुलता हे जिसमे एक ऑख, एक कान ,एक नाक मौजूद हे । आतमा चेतन है , शरीर जङ, , जङ शरीर आंख से बाहर के दृष्य दिखाई पङते है, अंदर की आख खुलने पर अंदर की सृष्टि के। मरने पर आत्मा इसी रास्ते से नर्क, स्वर्ग, बैकुंठ गन्धर्व लौकौ की शेर करती हुई ईश्वर के देश मे साधना अनुसार, कर्मा अनुसार जाती है। फिलहाल तो सभी नर्क मे जा रही है, जिसे तुम्हे कही बाहर जाना हे तौ कैसे जाओगे , चल कर ही जा सकते हौ, या तो पैदल चल कर, या साईकल से, या किसी गाङी से, रेल,हवाईजहाज, से , कहने का मतलब चल कर ही जावौगे जब शरीर गाङी मे बेठेगा तौ ऑतमा भी शरीर के साथ चलेगी !,जेसे भोपाल, दिल्ली, लंदन, पैरिस आदि नाम कौई शहर ,बस्ती होने पर रखे गये हे ! तौ स्वर्ग , बैकुंठ नाम जौ रखे है कही ना कही तौ हौगा , तौ वहा जाने का कुछ साधन भी हौगा तौ वौ क्या हे, बस मरने पर कह दिया मैरी मा का स्वर्ग वास हो गया अरे जिते जी तो गया नही मरने के बाद क्या जाएगा, कैसे जायेगा कभी सोचा नही? शरीर तो यही जला दिया तो फिर गया क्या ? बस कह दिया हवा निकल गई बस इसी भूल भूल इया मे सब पङे है किसी को भी नही मालूम हम कहॉ से आये है कहॉ चले जायेगे! स्वर्ग मे ना ऐसा पानी हे,नाआग है, वायु है,धरती है,ना आकाश है वहा की सृष्टि इन तत्वो की है ही नही वहा ना ऐसी भूख हे ना प्यास, ना रोग,शोक,लगाई झगडा,कमाने जाना कौई झगडा नही वहा तो आनंद ही आनंद , सुख ही सुख हे, वहा इस्त्री, पुरूष, सुंदर सदा जवान रहते है, उनके गले मे पङी माला कभी मुरझाती नही, उनके वस्त्र कभी मैले नही होते हे, वह सभी स्वेच्छा चारी होते हे कहीआ जा सकते है, वहा का ,भोग ऑखो से किया जाता हे वहा का भोजन नाक से सुगंध के रूप मे लिया जाता हे स्वर्ग सुगन्ध से भरपुर हे वहा का शरीर लिगं शरीर हे जो सत्रह तत्वो का रहता हे जिसमे रजो गुण,तमो गुण,सतो गुण प्रधान रहते हे! वहा हर दम नाच, गाना होता हे सुगंध की लपट चलती रहती है सुदंर पहाङ ,झरने, तालाब,बगीचे,फूल,सुंदर सुंदर अप्सरा रहती जौ राग रागिनिया,सुनाती हे लुभाती है तो वहा जाती क्या हे आत्मा जाती हे जिसे जी तो जाने का साधन किया नही ? ना किसी से पूछा की रास्ता क्या है ? ना कोई ऐसा पुण्य कर्म किया कि स्वर्ग मिले तो कैसे मिलेगा ? बस वही खाना पीना सोना भोग भोगना पशु की तरह जिदंगी जी कर अनमोल श्वास की पूंजी को बर्बाद कर नर्क का मार्ग अपने लिए प्रस्थ, तैयार कर रहे हो, बातो की चाटुकार लुभावनी बातो मे फंसकर बुद्धी विलास मै लगै हो सच्चे गुरू की तलाश करो दुनिया के लिए इतना रोते हो कभी उस मालिक के लिए दो आंसू बहाव वो कोई अंधा बहरा नही चिटी के पैर की आवाज भी सुनता हे बस सच्ची तङफ होना चाहिए,कोई ना कोई रास्ता, जरीया मिलने का माध्यम बना देगा ! जहॉ चाह हे वहा राह हे! जय गुरू देव नाम प्रभू का
PRATAH SMARNIY ANANT SHREE VIBHUSHIT _ PARAM PUJYA SANT SADGURU _ MAHARSHI MEHI PARAM HANS JI MAHARAJ JI KE CHARAN KAMAL ME ANANT KOTI SAH NAMAN , 🙏🌹🙏❤️🙏🌹🙏❤️🙏🌹🙏❤️🙏🌹
JAI HO++JAI HO++DHANYE HAI GURU DEV ++CHARNO MEH HAMESHA SISH JOKA RAHE ++ LAKO LAKO BAAR CHARNO MEH PARNAAM SWEEKAR HO++JAI JAI GURU DEV++JAI JAI SHRI RADHE KRISHNA .