This video discusses about the Sri Ramcharit Manas Bal kand poem 14 written by Goswamy Tulasidas.
एहि प्रकार बल मनहि देखाई। करिहउँ रघुपति कथा सुहाई ॥
ब्यास आदि कबि पुंगव नाना। जिन्ह सादर हरि सुजस बखाना ॥
चरन कमल बंदउँ तिन्ह केरे। पुरवहुँ सकल मनोरथ मेरे ॥
कलि के कबिन्ह करउँ परनामा। जिन्ह बरने रघुपति गुन ग्रामा ॥
जो प्राकृत कबि परम सयाने। भाषा जिन्ह हरि चरित बखाने ॥
भए जे अहहिं जे होइहहिं आगें। प्रनवऊँ सबहि कपट सब त्यागें॥
होहु प्रसन्न देहु बरदानू । साधु समाज भनिति सनमानू ॥
जो प्रबंध बुध नहिं आदरहीं। सो श्रम बादि बाल कबि करहीं ॥
कीरति भनिति भूति भलि सोई। सुरसरि सम सब कहँ हित होई ॥
राम सुकीरति भनिति भदेसा। असमंजस अस मोहि अँदेसा।
तुम्हरी कृपाँ सुलभ सोउ मोरे। सिअनि सुहावनि टाट पटोरे ॥
दो0 - सरल कबित कीर्ति बिमल सोई अदरहिं सुजान।
सहज बयर बिसराइ रिपु जो सुनि करहिं बखान ॥ 14 (क) ॥
सो न होइ बिनु बिमल मति मोहि मति बल अति थोर।
करहु कृपा हरि जस कहउँ पुनि पुनि करउँ निहोर । 14 (ख).
कबि कोबिद रघुबर चरित मानस मंजु मराल।
बालबिनय सुनि सुरुचि लखि मो पर होहु कृपाल ॥ 14 (ग) ॥
सो०- बंदउँ मुनि पद कंजु रामायन जेहिं निरमयउ।
सखर सुकोमल मंजु दोष रहित दूषन सहित ॥ १४ (घ) ॥
बंदउँ चारिउ बेद भव बारिधि बोहित सरिस ।
जिन्हहि न सपनेहुँ खेद बरनत रघुबर बिसद जसु ॥ 14 (ङ) ॥
बंदउँ बिधि पद रेनु भव सागर जेहिं कीन्ह जहँ।
संत सुधा ससि धेनु प्रगटे खल बिष बारुनी ॥ 14 (च) ॥
दो० - बिबुध बिप्र बुध ग्रह चरन बंदि कहउँ कर जोरि ।
होइ प्रसन्न पुरवहु सकल मंजु मनोरथ मोरि ॥ 14 (छ) ॥
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18 сен 2024