This video discusses about the Sri Ramcharit Manas Bal kand poem 248 written by Goswamy Tulasidas.
चलीं संग लै सखीं सयानी। गावत गीत मनोहर बानी ।।
सोह नवल तनु सुंदर सारी। जगत जननि अतुलित छबि भारी ॥
भूषन सकल सुदेस सुहाए । अंग अंग रचि सखिन्ह बनाए ।।
रंगभूमि जब सिय पगु धारी। देखि रूप मोहे नर नारी ॥
हरषि सुरन्ह दुंदुभीं बजाई। बरषि प्रसून अपछरा गाई ॥
पानि सरोज सोह जयमाला। अवचट चितए सकल भुआला ॥
सीय चकित चित रामहि चाहा। भए मोहबस सब नरनाहा ।।
मुनि समीप देखे दोउ भाई। लगे ललकि लोचन निधि पाई ॥
दो० - गुरजन लाज समाजु बड़ देखि सीय सकुचानि ।
लागि बिलोकन सखिन्ह तन रघुबीरहि उर आनि ।। 248 ॥
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18 сен 2024