जीव शीव सब प्रगटे वो ठाकुर सब दास कहे कबीर और जाने नहि मोहि राम नाम की आस जीव से ही शिव जी की कल्पना हुई वही कल्पित शब्द स्वामी बना शेष स्वयम सब उसके दास बन गए कबीर साहेब कहते है कि मै किसी अन्य को नही जानता मै तो राम नाम की आस लगाये बैठा रहता हू मतलब हमारी काया ही काशी नगरी है जिसमे शिव जी का वास है इसलिए आत्मशोधन करना चाहिए