Vermi Compost Khad
केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost) पोषण पदार्थों से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक है। यह केंचुआ आदि कीड़ों के द्वारा वनस्पतियों एवं भोजन के कचरे आदि को विघटित करके बनाई जाती है। वर्मी कम्पोस्ट में बदबू नहीं होती है और मक्खी एवं मच्छर नहीं बढ़ते है तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता है।
Vermicompost ("केंचुआ खाद") बनाने की विधि : बुंदेलखंड के किसान ने 20 किलो केंचुए से खाद बनाने का कारोबार शुरू किया था, आज इनका लाखों में कारोबार है। कई देशों में खाद जाती है।
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इस वीडियो मे मैंने #केंचुआ #खाद के बारे में पूछे जाने वाले सवालों का जवाब दिया है| जिससे हमारे किसान भाइयों को मदद मिल सके| अगर आपको इसके अतिरिक्त कोई और सवाल पूछने है तो आप इस वीडियो के नीचे कमेंट कर सकते हैं।
वर्मी-कम्पोस्ट को वर्मीकल्चर या केंचुआ पालन भी कहते हैं। केंचुओं के मल से तैयार खाद ही वर्मी कम्पोस्ट कहलाती है। यह सब प्रकार की फसलों के लिए प्राकृतिक, सम्पूर्ण एव्र संतुलित आहार है।
वर्मी-कम्पोस्ट का उत्पादन तथा विपणन एक अच्छा पर्यावरण हितैसी रोजगार है। प्राइज़ काल से ही केचुआ किसान का मित्र माना जाता है। खेतो की मिट्टी को भुरभुरी बनाकर यह प्राकृतिक हलवाहे का काम करता है। प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तू ने केंचुओ को धरती की ऑतें कहा है और डारविन ने तो इसे भूमी की उपजता का बैरोमीटर कहा
केचुओं से खेती में लाभ: केचुओं के द्वारा भूमि की उर्वरकता, पी.एच., भौतिक अवस्था, जैव पदार्थ एवं लाभदायक जीवाणूओं मे वृद्धि होती है।
केंचुओं के मल से भूमी में 5 गुणा नत्रजन, 1.5 गुणा विनिमयी सोडियम, 3 गुणा मैग्नीशियम, 7.2 गुणा सुलभ फासफोरस तथा 11 गुणा सुलभ पोटाश बढ जाती है।
खेत में खरपतवार, कीडो एवं बीमारी मे कमी होती है । खेत मे केंचुए पालने से मटर व जंई के उत्पादन में 70 प्रतिशत, सेब उत्पादन में 25 प्रतिशत, और गेंहू के उत्पादन मे 30 प्रतिशत तक वृद्धि दर्ज की गई है।
केंचुओं की मदद से कचरे को खाद में परिवर्तित करने हेतु केंचुओं को नियंत्रित वातावरण में पाला जाता है। इस क्रिया को वर्मीकल्चर कहते हैं, केंचुओं द्वारा कचरा खाकर जो कास्ट निकलती है उसे एकत्रित रूप से वर्मी कम्पोस्ट कहते हैं।
वर्मीकल्चर लकड़ी के बॉक्स, प्लास्टिक के क्रेट, प्लास्टिक की बाल्टी अथवा ईंट व सीमेंट के छोटे टैंक में किया जा सकता है। यह एक कम गहरे गड्ढे में भी किया जा सकता है। वर्मीकल्चर के लिये 20 लीटर क्षमता की बाल्टी अथवा 45 सेमी.X45 सेमी.X30 सेमी. का लकड़ी का डिब्बा लिया जा सकता है। यदि गड्ढे अथवा टैंक में वर्मी कल्चर किया जाना है तो वह छायादार जगह में होना चाहिए और उस स्थान पर पानी एकत्र नहीं होना चाहिए।
वर्मीकल्चर हेतु उपयुक्त पात्र का चुनाव करने के बाद उसमें छोटे-छोटे छिद्र कर दिये जाते हैं ताकि उससे अतिरिक्त बाहर पानी निकल जाये। इसके बाद पात्र में वर्मी बैड तैयार किया जाता है। वर्मी बैड में सबसे नीचे वाले परत में छोटे-छोटे पत्थर ईंट के टुकड़े व मोटी रेत 3.5 सेमी. की मोटाई तक डाली जाती है। ताकि पानी का वहन ठीक प्रकार से हो। इसके बाद इसमें मिट्टी का एक परत दिया जाता है जो कम-से-कम 15 सेमी. मोटाई का होना चाहिए। फिर इसे अच्छी तरह गीला किया जाता है।
यदि सिर्फ एपीजेइक जाति अथवा एक्सोटिक केंचुए पाले जा रहे हैं तो मिट्टी के मोटे परत की आवश्यकता नहीं है, पर जब एपीजेइक और एनेसिक दोनों जाति के केंचुए एक साथ पाले जाते हैं तब मिट्टी का परत आवश्यक है। इसके लिये अपने आस-पास के परिसर से एकत्र किये गए करीब 100 केंचुए मिट्टी के परत में छोड़ दिये जाते हैं। इसके ऊपर ताजे गोबर के छोटे-छोटे लड्डू जैसे बनाकर रख दिये जाते हैं।
अब पूरे बॉक्स को लगभग 10 सेमी. मोटे सूखे कचरे की तह से ढँक दिया जाता है। इस प्रकार बने वर्मीबैड को जूट की थैली के आवरण से ढँक दिया जाता है। इस पर थोड़ा पानी छिड़क कर गीला किया जाता है। बहुत अधिक पानी डालना आवश्यक नहीं है। इस प्रकार 30 दिन तक वर्मीबैड में नमी रखना है और उसकी पक्षियों, मुर्गियों, मेंढक आदि से रक्षा करनी है। इस समय में केंचुओं का विकास और प्रजनन होता है।
How to set up Vermi-compost beds
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18 фев 2020